Glaucoma Week: आंखों की रोशनी को चुरा रहा ग्लूकोमा, जानिए कैसे कर सकते हैं बचाव

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Published : Mar 18, 2023, 8:25 PM IST

यह बोले डॉक्टर.

हमारी आंखों की रोशनी को ग्लूकोमा बहुत नुकसान पहुंचा रहा है. आखिर इसके लक्षण क्या है और कैसे इससे बचा जा सकता है. चलिए जानते हैं इस बारे में विशेषज्ञों से.

आगरा: हमारी आंखों की रोशनी का गुप्त चोर ग्लूकोमा है जो बुजुर्गों की आंखों की नसों को खराब कर रहा है. नेत्र रोग विशेषज्ञों की मानें तो ग्लूकोमा यानी काला मोतिया अब बुजुर्गों के अलावा युवाओं की दुनिया में अंधेरा कर रहा है इसलिए, नेत्र रोग विशेषज्ञ ग्लूकोमा वीक में इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरुक कर रहे हैं. ईटीवी भारत की टीम ने आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के विशेषज्ञों से खास बातचीत की. विशेषज्ञों ने बताया कि, ओपीडी में ग्लूकोमा से पीडित ऐसे बुजुर्ग आ रहे हैं. जिनकी आंखों की रोशनी अचानक कम हो गई या आंखों की रोशनी एकदम चली गई है. यह बीमारी आखों पर अंदर से तेज दबाव पड़ने से होती है. इसमें आंखो की नसें खराब (सूख) जाती हैं. फिर, इन नसों को ठीक कर पाना असंभव है. एसएनएमसी की ओपीडी में आने वाले 100 मरीज में पांच मरीज ग्लूकोमा हर दिन पहुंच रहे हैं. जिनकी उम्र 40 से 65 साल है.

यह बोले डॉक्टर.
बता दें फिर, ग्लूकोमा जैसे गंभीर नेत्र रोग को लेकर हर साल ग्लूकोमा सप्ताह मनाया जाता है. जिसमें लोगों को ग्लूकोमा को लेकर जागरूक किया जाता है. क्योंकि, ग्लूकोमा या काला मोतिया आंखों का गंभीर रोग है, जिसका सही समय पर इलाज ना होने से पीड़ित में दृष्टिदोष या दृष्टिहीन का जोखिम हो सकता है. इस साल ग्लूकोमा वीक की थीम 'द वर्ल्ड इज ब्राइट, प्रोटेक्ट योर विजन' है.

क्या है ग्लूकोमा
एसएनएमसी के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. हिमांशु यादव ने बताया कि आंख दबाव से ग्लूकोमा या काला मोतिया होता है. इसमें आंखों की ऑप्टिक नर्व खराब हो जाती हैं. इसकी समय पर जांच या इलाज होने पर आंख की दृष्टि दोष या दृष्टि हानि को बचाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि, ग्लूकोमा के तीन प्रकार होते हैं. जिनके नाम ओपन-एंगल ग्लूकोमा, एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा और नॉर्मल-टेंशन ग्लूकोमा हैं.



एसएनएमसी के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. हिमांशु यादव ने बताया कि वैसे तो ग्लूकोमा आमतौर पर 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की आंख की बीमारी है लेकिन, अब कम उम्र के लोग भी इस बीमारी की चपेट में आते हैं. इसकी वजह मधुमेह व उच्च रक्तचाप भी सामने आ रही है. ग्लूकोमा से पीड़ित मरीज जो एसएनएमसी की नेत्र रोग विभाग की ओपीडी में देरी से आते हैं. इस वजह से उनकी आंखों की रोशनी वापस नहीं आ पाती है. इस बारे में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रीति गुप्ता बताती हैं कि, ग्लूकोमा में आंख की नसें सूख जाती हैं. जो नस एक बार सूख गई. उसे दोबारा से ठीक नहीं किया जा सकता है. इसका उपचार यही है कि, दूसरी नसों को खराब होने से बचाया जा सके.

जेनेटिक हिस्ट्री ग्लूकोमा में अहम
एसएनएमसी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रीती गुप्ता ने बताया कि ग्लूकोमा की सबसे बड़ी वजह जेनेटिक्स या फैमिली हिस्ट्री है. ऐसे लोग जिनकी दादी, दादा, नाना, नानी, माता, पिता और अन्य क्लोज फैमली मैंबर यदि ग्लूकोमा की हिस्ट्री है तो वे सतर्क हो जाएं. आंख की जांच कराएं. यदि किसी का तीन से चार माह में चश्मे का नंबर बदल रहा है तो उसे आंख की जांच करानी चाहिए. मधुमेह या मोटापा है. आंखों में जलन, आंखों में दर्द और सिर दर्द लगातार हो रहा है तो ग्लूकोमा के ज्यादा चांस रहते हैं. इसलिए, जरूर आंखों की जांच कराएं. इसके साथ ही ग्लूकोमा की वजह आंखों में चोट या कोई समस्या, स्टेरॉयड या कुछ अन्य दवाओं का लंबे समय तक सेवन करना भी है.

यह करें
1- हेल्दी डाइट लें.
2- हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें.
3- ज्यादा समय मोबाइल या टीवी न देखें.
4- 40 साल की उम्र में हर साल आंखों का चेकअप कराएं.
5- नियमित व्यायाम करें.
6- अपना वजन नियंत्रित रखें.
7- रोजाना साफ पानी से आंखें अवश्य धोएं.
8- आंखों में जलन और सिर में दर्द की शिकायत पर चिकित्सक से संपर्क करें.

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