BHU ने त्रिपुरा में ऑक्सीजनिकरण के लिए जिम्मेदार नए सायनोबैक्टीरिया को खोजा, प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित

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Published : Aug 26, 2022, 5:07 PM IST

bhu botany department scientists identified new genus of cyanobacteria johannesiella tripurensis in tripura
सायनोबैक्टीरिया जोहानसेनिएला त्रिपुरेंसिस हिन्दू विश्वविद्यालय BHU ()

BHU Botany Department के शोधकर्ताओं द्वारा किए नए Cyanobacteria Johannesiella tripurensis जीनस की पहचान कर जानकारी जुटाई है. John Carroll University USA के जाने-माने फाइकोलॉजिस्ट प्रो. जेफरी आर जोहानसन के सम्मान में इस नए जीनस का नाम जोहानसेनिएला रखा गया है जबकि प्रजाति का नाम त्रिपुरेंसिस त्रिपुरा राज्य की वजह से दिया गया है. Cyanobacteria वे जीव हैं जो पृथ्वी के ऑक्सीजनिकरण के लिए जिम्मेदार हैं. BHU botany department scientists identified new genus of cyanobacteria .

नई दिल्ली/वाराणसी: सायनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) लगभग उन सभी पारिस्थितिक तंत्रों के महत्वपूर्ण घटक हैं जहां जीवन की कल्पना की जा सकती है. सरल शब्दों में Cyanobacteria वे जीव हैं जो पृथ्वी के ऑक्सीजनिकरण के लिए जिम्मेदार हैं. एक विशेष सफलता हासिल करते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के वैज्ञानिकों ने पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा से Cyanobacteria के एक नए जीनस की पहचान कर जानकारी जुटाई है. जॉन कैरोल विश्वविद्यालय (John Carroll University usa) अमेरिका के जाने-माने फाइकोलॉजिस्ट (Phycologist) प्रो. जेफरी आर जोहानसन (Jeffrey R johansson) के सम्मान में इस नए जीनस का नाम जोहानसेनिएला (Johanseniella) रखा गया है जबकि प्रजाति का नाम 'त्रिपुरेंसिस (Tripurensis)' त्रिपुरा राज्य की वजह से दिया गया है, जहां इस शैवाल के नमूने लिये गए थे.

BHU के वनस्पति विज्ञान विभाग (BHU Botany Department) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के दौरान यह खोज आधुनिक पॉलीफेसिक ²ष्टिकोण का उपयोग करके की गई है. Cyanobacteria या अन्य जीवों की पहचान करने में पॉलीफैसिक ²ष्टिकोण अन्य ²ष्टिकोणों की तुलना में अधिक सटीकता और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने में अहम है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में जैव विविधता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक जैव विविधता की पहचान और संरक्षण के लिए समर्पित प्रयास नहीं किए जाते मानव जाति के समक्ष ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है, जहां जीवों के कई प्रकार गुमनामी में ही हमेशा के लिए विलुप्त हो सकते हैं.

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पूर्वोत्तर वैश्विक जैव विविधता Hotspot: Cyanobacteria (नील हरित शैवाल) लगभग उन सभी पारिस्थितिक तंत्रों के महत्वपूर्ण घटक हैं जहां जीवन की कल्पना की जा सकती है. सरल शब्दों में, सायनोबैक्टीरिया वे जीव हैं जो पृथ्वी के ऑक्सीजनिकरण के लिए जिम्मेदार हैं. सायनोबैक्टीरिया और उनके विविध रूपों के बारे में अधिक जानकारी जुटाने के लिए वैश्विक स्तर पर गहन अध्ययन चल रहे हैं. बीएचयू का यह अध्ययन 2020 में त्रिपुरा की मूल निवासी सागरिका पाल (Sagarika Pal) द्वारा शुरू किया गया था, जो काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ प्रशांत सिंह (Dr. Prashant Singh, assistant professor Botany Department) के मार्गदर्शन में PhD कर रही हैं. बीएचयू के मुताबिक भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट (Global biodiversity hotspot) के रूप में जाना जाता है और दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों के भण्डार के रूप में प्रख्यात है.

पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैव विविधता के विभिन्न रूपों पर कई टैक्सोनॉमिक अध्ययन किए जाने के बावजूद, आधुनिक ²ष्टिकोणों का उपयोग करते हुए चुनिंदा सायनोबैक्टीरियल टैक्सोनॉमिक अध्ययन (cyanobacterial taxonomic studies) ही हुए हैं. खास बात यह है कि जोहानसेनिएला त्रिपुरेंसिस (Johannesiella tripurensis) इस क्षेत्र से खोजे गए एक नए सायनोबैक्टीरियल जीनस (Cyanobacterial genus) की पहली रिपोर्ट है, जो भारत में इस तरह के जेनेरा के गिनेचुने निष्कर्षों में से एक है. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में बड़ी संख्या में ऐसे सायनोबैक्टीरिया हो सकते हैं, जिनका पता नहीं चल पाया है और इसलिए, यह अध्ययन शोधकर्ताओं को सायनोबैक्टीरिया की खोज, पहचान और संरक्षण में मदद करने के लिए प्रेरित करने का काम करेगा.

पिछले कुछ वर्षों में डॉ. प्रशांत सिंह के (Dr Prashant Singh BHU research) शोध समूह ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों से सायनोबैक्टीरिया की कई नई प्रजातियों का वर्णन किया है. शोध समूह का उद्देश्य अधिक शोधकर्ताओं को जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में काम करने के लिए प्रोत्साहित करना है, जिसे वैश्विक जलवायु परिवर्तन (global climate change effects) के प्रभावों से व्यापक रूप से खतरा है. शोध दल में अनिकेत सराफ (RJ College Mumbai), नरेश कुमार (पीएचडी छात्र, बीएचयू) और आरुष सिंह, उत्कर्ष तालुकदार और नीरज कोहर (MSc, Botany, BHU) Aniket Saraf, Naresh Kumar PhD student, BHU and Aarush Singh, Utkarsh Talukdar and Neeraj Kohar) भी शामिल थे.

प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में प्रकाशित : इस कार्य को विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार (Board of Science and Engineering Research, Department of Science and Technology Government of India) की कोर रिसर्च ग्रांट (Core Research Grant) और बीएचयू इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस स्कीम (BHU Institution of Eminence Scheme) के तहत मिले अनुसंधान अनुदान द्वारा वित्त पोषित किया गया था. यह अध्ययन वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित शोध पत्रिका माइक्रोबायोलॉजी लेटर्स (Microbiology Letters research journal) में प्रकाशित हुआ है.

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