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सपा के मुस्लिम वोट बैंक पर कब्जा जमाने की होड़ शुरू, मुस्लिम समाज का अखिलेश यादव से मोहभंग!

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Published : Jun 29, 2022, 8:15 PM IST

राजनीतिक दलों और उलेमा काउंसिल का दावा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रामपुर और आजमगढ़ के उपचुनाव में सपा और अखिलेश यादव के 'एमवाई' (मुस्लिम-यादव) फैक्टर को तार-तार कर दिया है.

अखिलेश यादव
अखिलेश यादव

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में लगातार चुनाव हार रहे समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव से मुस्लिम समाज का मोहभंग होने लगा है. आजमगढ़ और रामपुर में हुए लोकसभा उपचुनावों में सपा की हुई हार से यह साबित हो गया है. ऐसे में अब यूपी की मुस्लिम सियासत को लेकर नया सियासी ताना बाना बुना जाने लगा है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती और असदुद्दीन ओवैसी से लेकर उलेमा काउंसिल तक ने अब यूपी में मुस्लिम समाज को सपा से दूर करने के लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया है.


राजनीतिक दलों और उलेमा काउंसिल का दावा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रामपुर और आजमगढ़ के उपचुनाव में सपा और अखिलेश यादव के 'एमवाई' (मुस्लिम-यादव) फैक्टर को तार-तार कर दिया है. बीते विधानसभा चुनावों में सूबे के मुस्लिमों ने एकजुट होकर सपा को वोट किया था. वहीं बसपा और कांग्रेस से मुस्लिम समाज ने दूरी बनाई थी. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) को भी यूपी के मुस्लिमों ने नकार दिया था. इसके चलते ही बीते विधानसभा चुनाव में सपा की सीटें 47 से बढ़कर 111 हो गईं. इन 111 सीटों में सपा से 31 मुस्लिम विधायक जीते थे. इसके बाद भी सपा मुखिया अखिलेश यादव ने मुस्लिम समाज और पार्टी के मुस्लिम विधायकों के खिलाफ प्रदेश सरकार के हुए एक्शन को लेकर आवाज नहीं उठाई.

अखिलेश के इस रवैये के खिलाफ आजम खान के समर्थक नाराज हुए. पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने नाराजगी जताई, फिर भी अखिलेश यादव ने जनता के बीच जाने और मुस्लिम समाज के मुद्दों को उठाने में संकोच किया. इसके साथ ही रामपुर तथा आजमगढ़ में चुनाव प्रचार तक करने नहीं गए, जबकि सपा के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव को एसी कमरे से बाहर निकलकर जनता के बीच जाने की सलाह दी थी. लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी सलाह की अनदेखी की. जिसका परिणाम यह रहा कि भाजपा ने आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट उपचुनावों में सपा को हरा दिया. वहीं अब बसपा अध्यक्ष मायावती से लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के मौलाना आमिर रशीदी तक मुस्लिम मतदाताओं को सियासी संदेश दे रहे हैं कि बीजेपी को हराने की ताकत और साहस सपा में नहीं है.


वहीं एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी अब यह कह रहे हैं कि मैं मुसलमानों से अपील करूंगा कि वे अपना वोट बर्बाद न करें. उलेमा काउंसिल के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशीदी कहते हैं कि सपा न तो विपक्ष की सही भूमिका अदा कर पा रही है और न ही अपने बुनियादी वोटरों के साथ खड़ी हो पा रही है. विधानसभा चुनाव में मुसलमानों का एकतरफा वोट लेने वाली सपा मुस्लिमों के मुद्दों पर अब बेरुखी दिखा रही है और पूरी तरह खामोश है. ऐसे में मुसलमानों ने भी दोनों उपचुनाव में अपना पैगाम दे दिया है. वहीं बसपा मुखिया मायावती का कहना है कि यूपी के इस उपचुनाव परिणाम ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि केवल बीएसपी में ही भाजपा को हराने की सैद्धान्तिक और जमीनी शक्ति है. मायावती साफ तौर पर दलित-मुस्लिम कॉम्बिनेशन पर ही आगे बढ़ सकती है और 2024 के लोकसभा चुनाव में इसी फॉर्मूले पर लड़ने का संकेत दे रही है.

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यूपी के मुस्लिम वोट को अपनी तरफ लाने के लिए इन दलों की सक्रियता सपा के लिए संकट खड़ा करेगी. उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता अगर सपा से छिटका तो अखिलेश यादव के भविष्य की राजनीति के लिए सियासी संकट खड़ा हो सकता है. इसकी वजह यह है कि सपा का सियासी आधार मुस्लिम वोटों पर टिका है और अगर यह वोट छिटकर बसपा या फिर किसी मुस्लिम पार्टी के साथ जाता है तो निश्चित तौर पर अखिलेश की टेंशन बढ़ सकती है. इसीलिए अखिलेश यादव को मुस्लिमों को साधने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी.

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