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निफ्ट के स्टूडेंट्स ने जानीं राजधानी की धरोहरों की खासियत

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Published : Aug 8, 2022, 4:11 PM IST

आजादी का अमृत महोत्सव के तत्वावधान में निफ्ट रायबरेली के प्रथम वर्ष के छात्रों द्वारा शनिवार को डॉ. रवि भट्ट, इतिहासकार की देख-रेख में लखनऊ में सादत अली मुसोलियम से लेकर विधान सभा तक एक हेरिटेज वाक ऑफ लखनऊ आयोजित की गयी.

हेरिटेज वाक ऑफ लखनऊ
हेरिटेज वाक ऑफ लखनऊ

लखनऊ : राजधानी की धरोहरें विश्व प्रचलित हैं, यही कारण है कि प्रदेश भर से स्कूल, कॉलेजों के बच्चों को यहां की धरोहरें दिखाने के लिए लाया जाता है. यहां की मीनारों पर की गई कारीगरी अपने आप में खास है. आजादी का अमृत महोत्सव के तत्वावधान में निफ्ट रायबरेली के प्रथम वर्ष के छात्रों द्वारा शनिवार को डॉ. रवि भट्ट, इतिहासकार की देख-रेख में लखनऊ में सादत अली मुसोलियम से लेकर विधान सभा तक एक हेरिटेज वाक ऑफ लखनऊ आयोजित की गयी. निदेशक निफ्ट रायबरेली डॉ. भारत शाह ने बताया कि आगामी डिजाइनरों को लखनऊ की संस्कृति समाज के व्यंजन तथा वास्तुकला इत्यादि मे समाहित लोक हित की भावना से परिचित कराना इस हेरिटेज वॉक का उद्देश्य है. जिससे यह युवा पीढ़ी समाज तथा देश के विकास तथा उत्थान में भागीदार बन सके.

इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि इसे नवाब वाजिद अली शाह ने 'शोक के महल' के रूप में बनवाया था और इसका नाम कसर-उल-अजा रखा गया था. इस इमारत का प्रारंभिक उद्देश्य कर्बला में इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत के लिए 'आजादारी' (शोक) मनाने के लिए इमामबाड़े के रूप में इस्तेमाल किया जाना था. 1856 में अवध के अधिग्रहण के बाद, बारादरी का इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा अपदस्थ राजा के शासन के अधिकारियों और रईसों और उनके रिश्तेदारों द्वारा याचिकाओं और दावों के लिए अदालत आयोजित करने के लिए किया गया था. बाद में (लगभग 1923) इसे ब्रिटिश साम्राज्य की रानी के प्रति उनकी अधीनता और वफादारी के लिए प्रशंसा के संकेत के रूप में, अवध के तालुकेदारों को उनके 'अंजुमन' (संघ) के लिए सौंप दिया गया, जिसका नाम बदलकर ब्रिटिश कर दिया गया.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला




नवाब वाजिद अली शाह ने सन् 1850 में कैसरबाग के लाखी दरवाजे, एक लाख रुपए में बनवाए थे. अगर इसकी बनावट की बात करें तो फाटकों पर चार बुर्ज बने हैं और बीच में मार्टिन के मकबरे वाली सीढ़ीदार चौपड़ जो बहुत खूबसूरत नजारा पेश करती है. पहले इसके ऊपरी हिस्से पर सुनहरे गुंबद का छत्र रखा रहता था और उसी पर सल्तनत अवध का झंडा लहराया करता था. यहां मौजूद बनी मेहराबों पर तीन मछलियां बनी हुई हैं. इन मछलियों के बीच में आसफी गुलदस्ता बना हुआ है जिसे हिंदईरानी बूटा कहते हैं. लाखी दरवाजे की एक और खासियत यह है कि फाटकों में हरमसरा की तरफ त्रिपोलिया है, जबकि इसके दूसरी तरफ बस एक ही द्वार है. पूरब वाले दरवाजे में शहंशाह मंजिल, सुल्तान मंजिल, फलक सैर मंजिल और चौलक्खी कोठी की शानदार इमारतें थीं.

हेरिटेज वाक ऑफ लखनऊ
हेरिटेज वाक ऑफ लखनऊ




इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि यह हेरिटेज वॉक सादत अली मुसोलियम, परी खाना, सफेद बरादरी, लक्खी दरवाजा, लाल बारादरी, कोठी दर्शन विलास, गुलिस्तान इरम, कोठी फरहत बक्स, छतर मंजिल, वाली कोठी, टेड़ी कोठी, रेजिडेंसी, मोती महल, खुर्शीद मंजिल, तारे वाली कोठी, कोठी नूर बक्स, हजरतगंज, इमामबाड़ा, बेगम कोठी, जीपीओ, कोठी हयात बक्स से होकर विधान सभा तक हुई.

हेरिटेज वाक ऑफ लखनऊ
हेरिटेज वाक ऑफ लखनऊ

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इस हेरिटेज वॉक में निफ्ट मे अध्ययनरत देश के विभिन्न प्रदेशों के छात्र-छात्राएं प्रतिभाग कर रहे हैं. जिनको लखनऊ की तहजीब एवं इतिहास से रूबरू कराया गया. जिसके मोटिफ, स्थापत्य, शैली, कला तथा संस्कृति आदि का प्रयोग विद्यार्थी अपने उत्पादों तथा डिजाइन में करेंगे. इ

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