गोरखपुर: किसी देश की विरासत उस देश की आर्थिक, सामाजिक, कलात्मकता और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करने का आधार होती है. विरासत के संरक्षण और प्रदर्शन के लिए संग्रहालय सबसे सशक्त माध्यम होते हैं. यही वजह है कि इसकी उपयोगिता को महसूस करते हुए पूरे विश्व में 18 मई को 'विश्व संग्रहालय दिवस' के रूप में मनाया जाता है.
संग्रहालय में संग्रहित कला वस्तुएं जनसंवाद का सशक्त माध्यम हैं जो न सिर्फ यहां आने वाले दर्शकों, पर्यटकों को इतिहास का ज्ञान करातीं हैं बल्कि इतिहास से जुड़ी वस्तुओं पर शोध करने का भी बड़ा आधार बनतीं हैं. यही नहीं, तमाम विलुप्त होती चीजों को अधिकारपूर्वक यहां पर लाने, स्थापित करने में भी संग्रहालय और उसके नियम अधिनियम बड़ी भूमिका निभाते हैं. ऐसी ही भूमिका पूरे पूर्वांचल में बड़ी मजबूती के साथ पिछले 35 वर्षों से निभाने में कामयाब हुआ है गोरखपुर का राजकीय बौद्ध संग्रहालय. वर्ष 1863 में राज्य संग्रहालय लखनऊ की स्थापना हुई थी जो प्रदेश का पहला संग्रहालय था. उसी प्रकार 23 अप्रैल 1987 को राजकीय संग्रहालय गोरखपुर की स्थापना हुई जो अपनी महत्ता को स्थापित करने में जुटा हुआ है.
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राजकीय बौद्ध संग्रहालय की स्थापना का आधार : विशेषताओं की बात करें तो राजकीय संग्रहालय गोरखपुर पूर्वी उत्तर प्रदेश के उस क्षेत्र में स्थापित है जहां न सिर्फ बौद्ध धर्म के प्रमुख स्थल हैं बल्कि मौर्य, शुंग, कुषाण और गुप्त साम्राज्य का अभिन्न अंग रहा है. बौद्ध धर्म के उद्भव और विकास का हृदय स्थल भी यह क्षेत्र रहा है. भगवान बुद्ध के जीवन और धर्म से संबंधित स्थलों की क्रमबद्ध शृंखला यहां दिखाई देती है. इसमें प्रमुख रूप से कपिलवस्तु, देवदह, कोलियों का रामग्राम, कोपिया और तथागत की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गुरू गोरखनाथ की तपोभूमि भी गोरखपुर है.
कालांतर में गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम गोरखपुर पड़ा. यही नहीं, यह परिक्षेत्र मध्ययुगीन प्रसिद्ध संत, समाज सुधारक, हिंदू मुस्लिम एकता के पोषक संत कबीर की निर्वाण स्थली को भी अपने आंचल में संजोए हुए हैं. गोरखपुर का बौद्ध संग्रहालय रामगढ़ ताल क्षेत्र में स्थित है जिसमें नित नए शोध और सांस्कृतिक संपदा और संस्कृत के संरक्षण के कार्य किए जा रहे हैं. संग्रहालय में नवपाषाण काल से लेकर आधुनिक काल तक की पुरासंपदाओं का समृद्ध संग्रह है. गोरखपुर राजकीय बौद्ध संग्रहालय के उपनिदेशक डॉ. मनोज गौतम ने बताया, "संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1983 में 18 मई को विश्व संग्रहालय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया. उन्होंने कहा कि संग्रहालय हमें अपने अतीत को जानकर ही स्वर्णिम भविष्य के निर्माण का रास्ता दिखाते हैं ".
संग्रहालय का पांच वीथिकाओं में प्रदर्शन कार्य किया गया है. मौजूदा दौर में इसके साथ सज्जा का कार्य चल रहा है. इसलिए सभी वीथिकाओं की मूर्तियां और कलाकृतियां सुरक्षित कर दी गई हैं लेकिन आपको बता दें कि, प्रथम वीथिका बौद्ध धर्म के प्रख्यात विद्वान महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी को समर्पित है जिसमें भगवान बुद्ध के विविध स्वरूपों और मुद्राओं को प्रदर्शित किया गया है. इस वीथिका में मथुरा कला और गांधार कला की सुंदर बौद्ध कला कृतियों का प्रदर्शन है.
द्वितीय पुरातत्व विधिका में प्रस्तर और मृण कलाकृतियों के माध्यम से प्रदर्शन किया गया है जिसमें नवपाषाण कालीन हैंड एक्स से लेकर मध्य पाषाण कालीन ब्लेड्स एवं व्युरिन आदि का भी प्रदर्शन किया गया है. इसमें मूर्तियों के संदर्भ में बात करें तो शिव, वाराही, शेषशायी विष्णु, गरुणारूढ़, विष्णु एवं कसौटी पत्थर पर बनी पाल शैली की उमा महेश्वर की प्रतिमा मनोहारी और दर्शनीय है. तृतीय वीथिका कला के विविध आयाम विभिन्न धातु, हाथी दांत और स्टको के माध्यम से प्रदर्शन किया गया है. इसमें बौद्ध धर्म के अनेक कलाकृतियां जैसे वरद मुद्रा, अभय मुद्रा, भूमि स्पर्श मुद्रा में भगवान बुद्ध को दिखाया गया है.
चतुर्थ चित्र कला वीथिका है जो लघु चित्र और थंका पेंटिंग के माध्यम से प्रदर्शित की गई है. यह मध्ययुगीन भारतीय कला में लघु चित्रों के निर्माण की प्रक्रिया को दर्शाती है. पंचम वीथिका जैन वीथिका है जो जैन धर्म और उसके इतिहास पर प्रकाश डालती है. इसमें जैन धर्म से संबंधित कथनों को और जैन तीर्थंकरों को विशेष रूप से दिखाने का प्रयास किया गया है. कहा जा सकता है कि गोरखपुर का बौद्ध संग्रहालय भारतीय संस्कृति कला और इतिहास के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत है. संस्कृति विरासत के प्रति जागरूकता के लिए संग्रहालय द्वारा अनेक कार्यक्रम स्थाई और अस्थाई तौर पर भी होते रहते हैं. इसमें प्रदर्शनी, व्याख्यान, प्रतियोगिताएं होती रहती हैं.
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संग्रहालय में एक संदर्भ ग्रंथालय भी है जिसमें लगभग 2,000 पुस्तकों का संग्रह किया गया है. पुस्तकालय में रिसर्च स्कॉलर और अन्य जिज्ञासु जनसंपर्क कर शोध कार्य करते रहते हैं. इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि सौंदर्य की चेतना ही मानव मन में कला की अभिरुचि जागृत करती है. संग्रहालय इसी सुंदरता की ओर दो कदम और चलने की प्रेरणा देता है.
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