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100 लोगों की हत्या करने वाला खूंखार डाकू कैसे बना योगी, जानें पूरी कहानी

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Published : Jul 1, 2019, 1:57 PM IST

Updated : Jul 2, 2019, 12:15 PM IST

70 के दशक के खूंखार दस्यु सरदार रहे पंचम सिंह चौहान अब महात्मा बन चुके हैं. वह घूम-घूमकर लोगों को शांति, अंहिसा और सत्य का प्रवचन दे रहे हैं. 14 सालो तक बीहड़ों पर राज करने वाले पंचम सिंह चौहान ने पिछले सात सालों से आगरा के रुनकता ​स्थित रेणुका धाम को अपनी कर्मभूमि बना लिया है और लोगों की सेवा कर रहे हैं.

दस्यु सरदार पंचम सिंह चौहान

आगरा: 70 के दशक में पंचम सिंह चौहान ने बीहड़ में 14 साल तक अपनी सत्ता चलाई. एक समय था जब तीन राज्यों के 25 जिलों में उनका एक छत्र राज्य था. सरकार ने उन पर एक करोड़ से ज्यादा का इनाम रखा था. डाकू से योगी बने पंचम सिंह चौहान से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की और अपने बारे में बताया.

सरकार ने एक करोड़ का रखा था इनाम.

यूं बने थे पंचम सिंह चौहान डकैत
पंचम सिंह चौहान का जन्म सन 1922 में एमपी के भिण्ड जिले के सिंहपुरा में हुआ था. चौथी कक्षा तक पढ़े पंचम सिंह कहते हैं कि सिर्फ 14 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई. कोई जान-बूझकर डकैत नहीं बनता हैं, परिस्थितियां उसे मजबूर कर देती हैं.

सन 1958 में ग्राम पंचायत के चुनाव में गांव में दो पार्टी बन गईं. दूसरी पार्टी ने चुनावी रंजिश में उन्हें इतना पीटा कि पिता जी उन्हें बैलगाड़ी से हॉस्पिटल ले गए. 20 दिन तक इलाज चला. अस्पताल से जब घर आए तो फिर उनके और पिता से साथ मारपीट की. बदला लेने के लिए वह बीहड़ में डकैतों से जाकर मिल गए.

एक दिन 12 डकैत साथियों के साथ पंचम सिंह ने गांव पहुंचकर छह लोगों की हत्या कर दी और बीहड़ के डाकू बन गए. वह पहले डाकू मान सिंह बाबा, डकैत मोहरसिंह, डकैत माधोसिंह, डकैत सरयू मुखिया के साथ रहे फिर उन्होंने ​अपना गिरोह बना लिया.

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500 डकैतों के साथ पंचम सिंह चौहान ने किया था समर्पण.

556 डाकुओं ने किया था सरेंडर
पंचम सिंह बताते हैं कि बात सन 1972 की है. लोकनायक जय प्रकाश नारायण और गांधीवादी समाजसेवी डॉ. सुब्बाराम हमसे मिले. उन्होंने कहा कि सरेंडर कर दें. सरकार मदद करेगी. इस पर हम 500 डाकुओं ने बीहड़ में पंचायत की. प्रस्ताव रखा गया कि भारत सरकार आठ शर्ते मानेगी तो हम सरेंडर कर देंगे. इसमें शामिल था कि सरकार किसी भी डाकू को फांसी नहीं देगी. उन्हें परिवार के साथ रखा जाए. खुली जेल में रखा जाए. सरकार हमें जमीन दे.


इसके बाद एमपी में गांधीसेवा आश्रम जोरा में सीएम प्रकाश चंद सेठी, लोकनायक जय प्रकाश नारायण और अन्य लोगों के सामने एक साथ 556 डाकुओं ने सरेंडर किया था. इसमें डकैत मानसिंह का गिरोह, डकैत मोहरसिंह, डकैत माधोसिंह, डकैत सरयू मुखिया का गिरोह और सबसे बडे 200 डाकुओं के गिरोह के सरदार डाकू पंचम सिंह चौहान शामिल थे.

1972 में घोषित हुआ था एक करोड़ का इनाम
खूंखार डाकू पंचम सिंह के खिलाफ 100 से ज्यादा हत्या के मुकदमे, 200 से ज्यादा अपहरण, डकैती, लूट और ​अन्य मामले दर्ज थे. यूपी, एमपी और राजस्थान की ओर से सन 1970 में डाकू पंचमसिंह चौहान पर एक करोड़ का इनाम घोषित किया था.

यूं पंचम सिंह चौहान बने संत
100 से ज्यादा हत्याओं का आरोप होने पर डाकू पंचम सिंह, भोर सिंह और माधौ सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. तब डॉ सुब्बाराव ने राष्ट्रपति से मिलकर आजीवन कारावास में उनकी सजा परिवर्तित कराई. इसके बाद मुंगावली की खुली जेल में वह रहे. इस जेल में ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य संचालिका दादी प्रकाश के उपदेश और शिक्षा से प्रेरित होकर पंचमसिंह संत बन गए. सन 1980 में जब जेल से बाहर आए तो दो साल बाद ब्रह्मकुमारी आश्रम में आठ साल रहे. अब स्कूल, कॉलेज और जेलों में जाकर प्रवचन देते हैं.

कड़े होते हैं डाकुओं के नियम
पंचम सिंह ने बताया कि डाकुओं के कड़े निमय होते हैं. बिना प्रशासन के राज भी नहीं चलता है. डाकुओं में एकता होती है. एकता की शक्ति महान होती है. आज जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है वह डाकुओं के समय पर नहीं था. डाकू अमीरों से लेकर गरीबों को देते हैं. डाकू चरित्रवान होते हैं. ​

मेरे गिरोह में शामिल एक साथी उस समय किसान की बेटी के साथ अन्याय कर आया था. बाद में किसान आया और रोने लगा. मैंने अपने साथी की बंदकू ली और उसे पेड़ से बांधकर जिंदा जला दिया. इसके बाद घोषणा की, कि जो ऐसा करेगा, वो ऐसा ही भरेगा, उसे यह दंड मिलेगा.

नोटों पर सोते थे, मगर नहीं मिलता था सुकून
पंचम सिंह कहते हैं कि 25 जिलों में हमारा राज हुआ करता था. सरकार भी हमीं बनाते थे. नोटों पर सोते थे, मगर डर था शांति नहीं थी. पुलिस ने मकान जला दिया. परिवार को परेशान करते थे, पिटाई करते थे. इससे शांति नहीं मिलती थी. जब तक मनुष्य के अंदर अशक्तियां रहती हैं, इच्छाएं रहती हैं, आशाएं रहती हैं. तब तक परमात्मा से मिलन नहीं होता है. सबसे बड़ी शत्रु काम विकार है. काम वासना की अग्नि है. उन्होंने बताया कि उनके दो बेटे हैं और एक बेटी है. एक लड़का गायत्री परिवार से जुड़ा है. डाकू पंचम सिंह का पूरा परिवार आध्यात्मिक जीवन जी रहा है.

Intro:आगरा.
कभी जिसका चंबल के बीहड में चलता था राज. तीन राज्यों के 25 जिलों में चलती थी सत्ता. एमपी, यूपी और राजस्थान में नाम सुनकर थरथर कांपते थे लोग. डाकू सरदार के एक ऐलान पर बदल और बन जाती थी सरकारें. एक करोड से ज्यादा का रखा था सरकार ने इनाम. ऐसे खूंखार दस्यु सरदार अब महात्मा बन गया है. घूम—घूमकर लोगों को शांति,अंहिसा और सत्य के प्रवचन देते हैं. यह आपको सुनने में जरूरी ​िफल्मी कहानी जैसा लगेगा, मगर यह सच है. ईटीवी भारत ने 70 के दशक में बीहड में 14 साल तक अपनी सत्ता चलाने वाले दस्यु सरदार रहे और अब राजयोगी (संत) बने भाई पंचमसिंह चौहान से बात की. पंचम सिंह चौहान की सात साल से आगरा के रुनकता ​स्थित रेणुका धाम में कर्मभूमि बनी हुई है. डाकू से संत बने भाई पंचम सिंह पर आगरा से ईटीवी भारत संवाददाता श्यामवीर सिंह की स्पेशल रिपोर्ट।

Body:यूं बने थे पंचम सिंह चौहान डकैत
सन 1922 में एमपी के भिण्ड जिला के सिंहपुरा में किसान परिवार में पंचम सिंह चौहान का जन्म हुआ. चौथी तक पढे पंचम सिंह कहते हैं कि सिर्फ 14 साल की उम्र में शादी हो गई. कोई जान-बूझकर डकैत नहीं बनता हैं.परिस्थितियां उसे मजबूर कर देती है. सन 1958 में ग्राम पंचायत के चुलाव में गांव में दो पार्टी बन गईं. दूसरी पार्टी ने चुनावी रंजिश में उन्हें इतना पीटा कि पिता जी उन्हें बैलगाड़ी से हॉस्पिटल ले गए. 20 दिन तक इलाज चला. अस्पताल से जब घर आए तो फिर उनके और पिता से साथ मारपीट की. बदला लेने के लिए मैं बीहड में डकैतों से जाकर मिला. एक दिन 12 डकैत साथियों के साथ गांव पहुंच कर छह लोगों की हत्या कर दी. बीहड में कूद गया. पहले डाकू मान सिंह बाबा, डकैत मोहरसिंह, डकैत माधोसिंह, डकैत सरयू मुखिया के साथ रहे. ​अपना गिरोह बना लिया.

556 डाकुओं ने किया था सरेंडर
बात सन 1972 की है. लोकनायक जय प्रकाश नारायण और गांधीवादी समाजसेवी डॉ. सुब्बाराम हमसे मिले. कहा कि सरेण्डर कर दें, सरकार मदद करेगी. इस पर हम 500 डाकुओं ने बीहड में पंचायत की. प्रस्ताव रखा गया कि भारत सरकार आठ शर्ते मानेगी तो हम सरेंडर कर देंगे. इसमें शामिल था कि सरकार किसी भी डाकू को फांसी नहीं देगी. उन्हें परिवार के साथ रखा जाए, खुली जेल में रखा जाए. सरकार हमें जमीन दे. इसके बाद एमपी के मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी, जयप्रकाश नारायण के सामने महात्मा गांधी सेवा आश्रम जोरा, मप्र में समपर्ण किया था. एमपी में गांधीसेवा आश्रम जोरा में सीएम प्रकाश चंद सेठी, लोकनायक जय प्रकाश नारायण और अन्य के सामने एक साथ 556 डाकुओं ने मप्र में सरेंडर किया था. जिसमें डकैत मानसिंह का गिरोह, डकैत मोहरसिंह, डकैत माधोसिंह, डकैत सरयू मुखिया का गिरोह और सबसे बडे 200 डाकुओं के गिरोह के सरदार डाकू पंचम सिंह चौहान थे.

1972 में घोषित हुआ था एक करोड का इनाम
खूंखार डाकू पंचम सिंह के खिलाफ 100 से ज्यादा हत्या के मुकदमे, 200 से ज्यादा अपहरण, डकैती, लूट और ​अन्य मामले दर्ज थे. यूपी, एमपी और राजस्थान की ओर से सन 1970 में डाकू पंचमसिंह चौहान पर एक करोड़ का ईनाम घोषित किया.

यूं बने खूंखार पंचम सिंह चौहान संत
सरेण्डर के बाद जिस जेल में जाने पर 100 से ज्यादा हत्याओं का आरोप होने पर डाकू पंचम सिंह, भोर सिंह और माधौ सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई. तब डॉ सुब्बाराव ने राष्ट्रपति से मिलकर आजीवन कारावास में उनकी सजा परिवर्तित कराई. इसके बाद मुंगावली की खुली जेल में वे रहे. इस जेल में ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य संचालिका दादी प्रकाश की उपदेश और शिक्षा से प्रेरित होकर पंचमसिंह संत बन गए. सन 1980 में जब जेल से बाहर आए तो दो साल बाद ब्रह्मकुमारी आश्रम में आठ साल रहे.अब स्कूल, कॉलेज और जेलों में जाकर प्रवचन देते हैं.

कडे होते हैं डाकुओं के नियम
पंचम सिंह ने बताया कि डाकुओं के कडे निमय होते हैं. बिना प्रशासन का राज भी नहीं चलता है. डाकुओं में एकता होती है. एकता की शक्ति महान होती है. अनेकता के चलते आज भष्टाचार पफैला हुआ है. जो डाकुओ के समय पर नहीं था. डाकू अमीरों से लेकर गरीबों को देते हैं. डाकू चरित्रवान होते हैं. ​मेरे गिरोह में शामिल एक साथी उस समय किसान की बेटी के साथ अन्याय कर आया था.बाद में किसान आया. रोने लगा.मैंने अपने साथी की बंदकू ली, उसे पेड से बांधकर जिंदा जला दिया. घोषणा की, जो ऐसा करेगा. वो ऐसा ही भरेगा. उसे यह दंड मिलेगा.

नोटो पर सोए मगर नहीं था शुकून
वैसे 25 जिलो में हमारा अनुशासन था. यह एमपी, यूपी और राजस्थान में आते हैं. 25 जिलों में सरकार भी हमी बनाते थे. नोटो पर सोते थे. मगर डर था शांति नहीं थी. क्योंकि पुलिस ने मकान को जला दिया. परिवार को परेशान करते थे. पिटाई करते थे. इससे शांति नहीं मिलती थी. Conclusion:जब तक मनुष्य के अंदर आशक्तियां रहती हैं. साथ इच्छाएं रहती हैं. आशाएं रहती हैं. तब तक परमात्मा से मिलन नहीं होता है.सबसे बडा शस्त्रु काम विकार है. काम वासना की अग्नि है. दो बेटे हैं, एक बेटी हैं. एक लडका गायत्रीपरिवार से जुडा है. डाकू पंचम सिंह का पूरा परिवार आध्यात्मिक जीवन जी रहा है.
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डाकू पंचम सिंह की बाइट और विजुअल मोजो से भेजे गए हैं। स्क्रिप्ट लेपटॉप से लिखी थी। इसलिए wrap से भेजी है। डाकू रहे पंचम सिंह के फोटो के साथ। दो स्थानीय लोगों की बाइट है। जिसमें पहली बाइट पूर्व प्रधान रुनकता नवाब सिंह और दूसरी बाइट रुन कता निवासी जगन प्रसाद है।

@ डेस्क ध्यानार्थ और विशेष अनुरोध
खबर स्पेशल है। इसे इफेक्ट्स और बेहतर पैकेज से बनाई जाय तो शानदार रहेगी.
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श्याम वीर सिंह
आगरा
8387893357
Last Updated :Jul 2, 2019, 12:15 PM IST
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