Independence day Special : इन महिलाओं ने देश की आजादी के लिए लगा दी थी जान की बाजी

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Published : Aug 15, 2021, 4:30 AM IST

Updated : Aug 15, 2021, 5:19 AM IST

Role

आजादी की लड़ाई में महिलाओं की भूमिका भी पुरुषाें से कम नहीं रही. उन्हाेंने स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषाें के साथ ही कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजाें का सामना किया और देश काे आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. आज स्वतंत्रता दिवस के माैके पर आइये एक नजर डालें उनके अविस्मरणीय याेगदान पर....

हैदराबाद : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास महिलाओं के योगदान का उल्लेख किए बिना अधूरा होगा. भारतीय महिलाओं द्वारा दिया गया बलिदान सर्वोपरि है. उन्होंने सच्ची भावना और अदम्य साहस के साथ लड़ाई लड़ी और हमें आजादी दिलाने के लिए विभिन्न कठिनाइयों का सामना किया. जब अधिकांश पुरुष स्वतंत्रता सेनानी जेल में थे तो महिलाएं आगे आईं और संघर्ष की कमान संभाली.

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका (Role of women in India's freedom struggle)

महिलाएं, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी..

रानी लक्ष्मी बाई, (Rani Lakshmi Bai), माता भाग कौरी (Mata Bhag Kaur), ओनाके ओबाव्वा (Onake Obavva), केलाडी चेन्नम्मा (Keladi Chennamma), बेलावाड़ी मल्लम्मा(Belawadi Mallamma), अब्बक्का रानी (Abbakka Rani), सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu), उदा देवी (Uda Devi), उमाबाई कुंडापुर (Umabai Kundapur), बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal), अज़ीज़ुन बाई (Azizun Bai), झलकारी बाई (Jhalkari Bai), रानी अवंतीबाई (Rani Avantibai), रानी वेलु नचियार (Rani Velu Nachiyar), कित्तूर चेन्नम्मा (Kittur Chennamma), लक्ष्मी सहगल (Lakshmi Sahgal) और रानी दुर्गावती (Rani Durgavati).

1. रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmi Bai)

झांसी की रानी का जन्म वर्ष 1828 में हुआ था. उनका पूरा नाम मणिकर्णिका तांबे (Manikarnika Tambe) था. वह 1857 की क्रांति के सबसे साहसी सदस्यों में से एक थीं. उन्होंने देश भर की महिलाओं को भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया और उनके जीवन से जुड़ी कहानियां आज तक महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करती हैं. उन्होंने 1858 में अपने नवजात बच्चे के साथ अपने महल की रक्षा की थी जिस पर ब्रिटिश सेनाओं ने आक्रमण किया था.

2. माता भाग कौर

वर्तमान अमृतसर के एक गांव के प्रमुख जमींदार की इकलौती बेटी माता भाग एक महान योद्धा बन गईं, जिन्होंने 1705 में मुक्तसर की लड़ाई में 10,000 मजबूत मुगल सेना के खिलाफ 40 सिख योद्धाओं के एक समूह का नेतृत्व किया. बाद में महाराष्ट्र में निर्वासन के दौरान गुरु गोबिंद सिंह के अंगरक्षक के रूप में उनकी सेवा भी की.

3. ओनाके ओबव्वा

ओबव्वा राजकुमारी नहीं थी, बल्कि चित्रदुर्ग किले के एक रक्षक ( guard) की पत्नी थीं. दक्षिण भारत में हैदर अली, सुल्तान और मैसूर साम्राज्य के वास्तविक शासक, चित्रदुर्ग को जीतने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कई प्रयासों के बाद भी कोई सफलता नहीं मिली. एक दिन, सुल्तान ने एक महिला को एक छेद के माध्यम से किले में प्रवेश करने की कोशिश करते देखा. यह देखकर, उसने अपने लोगों को किले में प्रवेश करने और जीतने के लिए उसी रास्ते का उपयोग करने का आदेश दिया. ओबाव्वा ने गतिविधि पर ध्यान दिया और चूंकि उनके पति दोपहर के भोजन के लिए बाहर थे, उन्हाेंने सुरक्षा को अपने हाथों में लेने का फैसला किया और किसी काे किले में प्रवेश नहीं करने दिया. इस दाैरान ओबाव्वा ने लगभग 100 पुरुषों को मार डाला था.

4. केलाडी चेन्नम्मा

राजा सोमशेखर नायक से शादी करने के बाद केलाडी चेन्नम्मा केलाडी (कर्नाटक) की रानी बनीं. एक बार जब शिवाजी के दूसरे पुत्र राजाराम मुगलों के आक्रमण से बचकर भाग रहे थे, तब चेन्नम्मा ने उन्हें आश्रय दिया था. इसके बाद उन्होंने राजाराम को अपने अधीन कर लिया. औरंगजेब ने उनसे लड़ने के लिए अपनी सेना को भेजा. उन्होंने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और मुगल सम्राट की सेना को हरा दिया. युद्ध के अंत में केलाडी और मुगलों के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके माध्यम से सम्राट ने केलाडी को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता दी.

5. बेलवाड़ी मल्लम्मा

महिला सेना बनाने वाली पहली महिला बेलावाड़ी मल्लम्मा राजकुमार इसाप्रभु की पत्नी थीं. उनके राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच युद्ध के दौरान, उनके पति की मौत हो गई थी. मल्लम्मा ने अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी सेना के साथ लड़ाई लड़ी. हालांकि उन्हें पकड़ लिया गया था. बाद में छत्रपति शिवाजी ने उनकी बहादुरी को देखकर उन्हें रिहा कर दिया.

6. अब्बक्का रानी

चौटा वंश (Chowta dynasty) की रानी अब्बक्का ने मैंगलोर से 8 किमी दूर उल्लाल नामक एक छोटे से तटीय शहर पर शासन किया. अपने शासनकाल के दौरान, पुर्तगाली तटीय शहर को जीतना चाहती थीं और इसे एक बंदरगाह के रूप में इस्तेमाल करना चाहती थी. उन्होंने 1525 में अपना पहला प्रयास किया, लेकिन रानी अब्बक्का ने रानी अभया (निडर रानी) नाम प्राप्त करते हुए पुर्तगालियों के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी. उल्लाल में हर साल रानी की याद में उत्सव मनाया जाता है.

7. सरोजिनी नायडू: 'द नाइटिंगेल ऑफ इंडिया'

सरोजिनी नायडू एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, कवि और राजनीतिज्ञ व विचारक थीं. उनका जन्म एक बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था. उनके पिता डॉ अघोरे नाथ चट्टोपाध्याय एक वैज्ञानिक, दार्शनिक और शिक्षक थे. उन्होंने हैदराबाद के निजाम कॉलेज की स्थापना की. उनकी मां वरदा सुंदरी देवी बंगाली भाषा की कवयित्री थीं. वह आजादी के बाद भारतीय राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनीं. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की दूसरी अध्यक्ष भी थीं. उनकी कविताओं के संग्रह ने उन्हें साहित्यिक ख्याति दिलाई. 1905 में, उन्होंने गोल्डन थ्रेसहोल्ड (Golden Threshold) शीर्षक के तहत अपनी पहली पुस्तक, कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी के आंदोलन का सक्रिय समर्थन किया. 2 मार्च 1949 को उनकी मृत्यु हो गई.

8. उदा देवी

उदा देवी ने 1857 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उदा देवी और अन्य महिला दलित प्रतिभागियों को आज 1857 के भारतीय विद्रोह के योद्धाओं के रूप में याद किया जाता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, देवी एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गई थीं, जहां से उन्होंने 32 या 36 ब्रिटिश सैनिकों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उनके इस वीरतापूर्ण पराक्रम को सम्मान देने के लिए कैंपबेल जैसे ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके पार्थिव शरीर पर अपना सिर झुका लिया था. नवंबर 1857 में उनकी मृत्यु हो गई.

9. उमाबाई कुंडापुर

उमाबाई कुंडापुर का जन्म 1892 में मैंगोलोर में हुआ था. उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई. वह 'भगिनी मंडल' के संस्थापक और हिंदुस्तानी सेवा दल की महिला विंग की नेता थी. उमाबाई कुंडापुर का जन्म 1892 में मैंगलोर में गोलिकेरी कृष्णा राव और जंगाबाई के घर हुआ था. 1924 में उन्होंने डॉ. हार्डिकर (हिंदुस्तानी सेवा दल के संस्थापक) को अखिल भारतीय कांग्रेस के बेलगाम सत्र में मदद करने के लिए 150 से अधिक महिलाओं की भर्ती में मदद की. 1932 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और चार महीने तक यरवदा जेल में रखा गया.

10. बेगम हजरत महल

अवधी की बेगम के नाम से प्रसिद्ध रूप से जाना जाता है. इनका जन्म 1820, फैजाबाद में हुआ था. बेगम हजरत महल का जन्म आर्थिक रूप से बहुत कमजोर पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था. उनका पहला नाम मुहम्मदी बेगम था. स्वतंत्रता संग्राम में उनका सबसे बड़ा योगदान अंग्रेजों से लड़ने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों को एक साथ आने के लिए एकजुट करना था. उन्होंने एक नेता के रूप में अपनी योग्यता साबित की. उन्होंने महिलाओं को अपने घरों से बाहर निकलने और स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

11. अज़ीज़ुन बाई

1832 में एक नर्तकी के यहां जन्मीं अज़ीज़ुन की मां का देहांत तब हो गया था जब वह बहुत छोटी थी. एक नर्तकी के रूप में अज़ीज़ुन बाई कानपुर में उमराव बेगम की शरण में लुरकी महिला में रहती थीं. 1857 के विद्रोह के दौरान, उनका घर सिपाहियों के लिए एक मिलन स्थल बन गया. उन्हाेंने विद्रोह का समर्थन करने के लिए महिलाओं के एक समूह का गठन किया. उन्होंने अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षित किया और नाना साहब को कानपुर में विजयी होने में मदद की.

12. झलकारी बाई

भारतीय विद्रोह में दलित महिला वीरांगनाओं (सैनिकों) की भागीदारी काे ध्यान में रखते हुए झलकारी बाई ने झांसी की महिला ब्रिगेड दुर्गा दल का नेतृत्व किया. उनके पति झांसी सेना में सिपाही थे, झलकारी बाई तीरंदाजी और तलवारबाजी में कुशल थीं. वह रानी लक्ष्मीबाई के समान थी.

13. रानी अवंतीबाई

अपने पति की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने रानी अवंतीबाई को अपना राज्य छोड़ने के लिए मजबूर किया. उन्हें शासन करने मना कर दिया गया था क्योंकि राज्य का कोई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं था. उन्हें पेंशन पर जीने के लिए मजबूर किया गया. उस समय रानी अवंतीबाई ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक सेना का गठन करना शुरू कर दिया था. 1857 के विद्रोह के दौरान उन्हाेंने अंग्रेजों पर हमला किया और कई क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर लिया.

14. रानी वेलु नचियार

रानी वेली नचियार को ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देने वाली तमिल मूल की पहली महिला माना जाता है. उनके पति की अंग्रेजों ने हत्या कर दी थी. रानी वेलु को पहला मानव बम बनाने और 1780 की शुरुआत में एक अखिल महिला सेना बनाने का श्रेय दिया गया था. उन्होंने अंग्रेजों को सफलतापूर्वक खत्म कर दिया और अपने राज्य पर कब्जा कर लिया और 10 से अधिक वर्षों तक शासन किया.

15. कित्तूर चेन्नम्मा

कित्तूर का राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गया, लेकिन कित्तूर चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया, उन्हाेंने शिवलिंगप्पा को गोद लिया और उन्हें सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित किया, उनके कार्यों ने अंग्रेजों को क्रोधित कर दिया, जिन्होंने कित्तूर पर हमला किया. लेकिन चेन्नम्मा ने हार नहीं मानी और दक्षिण भारत में ईआईसी के कलेक्टर और राजनीतिक एजेंट सेंट जॉन ठाकरे को मार डाला.

16. लक्ष्मी सहगल

लक्ष्मी सहगल भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाली एक क्रांतिकारी महिला थीं और सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना की एक अधिकारी थीं. उन्हाेंने झांसी रेजिमेंट की रानी नामक एक महिला डिवीजन का गठन किया, वहां से उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

17. रानी दुर्गावती

गोंडवाना की शासक रानी दुर्गावती अपार शौर्य, बुद्धि और पराक्रम की योद्धा थीं. जब मुगल जनरल ख्वाजा अब्दुल मजीद आसफ खान ने अपनी विशाल सेना के साथ उसके राज्य पर आक्रमण किया, तो वह अपने राज्य के लिए लड़ने के लिए युद्ध के मैदान में आ गई. बहादुरी से लड़ाई लड़ी. उनकी बहादुरी के सम्मान में उनकी पुण्यतिथि को 'बलिदान दिवस' के रूप में मनाया जाता है.

Last Updated :Aug 15, 2021, 5:19 AM IST
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