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15 सालों में ऐसे 'पापुलर' हुआ PFI, अब लगा 5 साल का बैन

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Published : Sep 24, 2022, 5:42 PM IST

Updated : Sep 28, 2022, 9:27 AM IST

केंद्र की मोदी सरकार ने आज पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर बैन लगा दिया. केंद्र के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार भी इसके खिलाफ आक्रामक थी. आइए जानने हैं कि आखिर सब किस कारण से Popular Front of India के खिलाफ हैं....

Popular Front of India
पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया

नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार ने आज पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) समेत नौ सहयोगी संस्थाओं पर 5 साल का प्रतिबंध लगा दिया है. इस प्रतिबंध को लेकर तमाम लोगों ने खुशी जाहिर की है. NIA और ED की रेड के बाद से ही पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) अर्थात् PFI चर्चा का विषय बना गया है. लगातार छापेमारी होने से केंद्र सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने इस पर बैन लगाने की बात कही थी तब से ऐसा माना जाने लगा था कि इस विवादित संगठन पर जल्द ही बड़ी कार्रवाई होगी.

उधर उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पर बैन लगाने की बात कहकर मामले को हवा दी है और पूरे प्रदेश में इसके नेटवर्क पर लगाम लगाने के लिए अपने स्तर से कार्रवाई शुरू कर दी है. अक्सर विवादों में रहने वाला यह संगठन पिछले 15 सालों में पूरे देश में फैल चुका है. अब केंद्र सरकार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार इसके खिलाफ आक्रामक मूड में है. आइए जानने और समझने की कोशिश करते हैं कि यह संगठन क्या है और किस उद्देश्य से बना और क्यों अक्सर विवादों में रहता है....

Popular Front of India
पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का सफरनामा

ऐसे हुयी थी शुरुआत (Foundation of PFI)
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया अर्थात् PFI को 22 नवंबर 2006 को देश के 3 मुस्लिम संगठनों को मिलाकर बनाया गया था. इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई एक साथ आये थे और PFI नाम का नया संगठन बनाते हुए खुद को गैर-लाभकारी संगठन बताया. हालांकि अभी PFI में कितने सदस्य हैं और कहां कहां तक फैले हैं, इसकी कोई जानकारी संगठन स्पष्ट तौर पर नहीं देता है, लेकिन समय समय पर दावा करता है कि 20 राज्यों में उसकी यूनिटें हैं. वैसे तो शुरुआती दौर में इसका हेडक्वार्टर केरल के कोझिकोड में बनाया गया था, लेकिन बाद में इसके लगातार हो रहे विस्तार के कारण इसे दिल्ली में शिफ्ट कर दिया गया. फिलहाल ओएमए सलाम इसके अध्यक्ष हैं और ईएम अब्दुल रहीमान इसके उपाध्यक्ष हैं.

जानकारी के अनुसार PFI ने अपने संगठन की एक अलग से यूनिफॉर्म भी तैयार की है, जिसे वह अपने संगठन से जुड़े लोगों को देता है. हर साल 15 अगस्त को PFI फ्रीडम परेड का आयोजन करते हुए अपना दमखम दिखाने की कोशिश करता है. 2013 में केरल सरकार ने इस परेड पर रोक लगा दी थी. वो इसलिए क्योंकि PFI की यूनिफॉर्म में पुलिस की वर्दी की तरह ही सितारे और एम्बलम लगे हुए होते थे.

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पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का सफरनामा

ऐसे बढ़ता गया नेटवर्क (PFI Network in India)
केरल के अलावा कई और दक्षिणी राज्यों में मुसलमानों के लिए तमाम संगठन काम कर रहे थे. तमिलनाडु और कर्नाटक में भी मुसलमानों के लिए काम कर रहे संगठन सक्रिय थे. ऐसे में कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी यानी KFD और तमिलनाडु में मनिथा नीति पसाराई (MNP) नाम के संगठन ने NDF के साथ मिलकर एक बड़ा नेटवर्क बनाने का काम शुरू किया ताकि जमीनी स्तर पर मुसलमानों के लिए बड़े तौर पर काम किया जा सके. नवंबर 2006 में दिल्ली में हुई एक बैठक के बाद NDF और ये संगठन एक होकर PFI बन गए. इस तरह साल 2007 में PFI अस्तित्व में आया और आज 20 से अधिक राज्यों तक जा फैला है.

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आजकल पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े संगठन

धीरे धीरे 2009 में PFI ने अपने राजनीतिक दल SDPI (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) और छात्र संगठन CFI (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) का गठन करते हुए इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की. जैसे-जैसे PFI का प्रभाव बढ़ा, कई राज्यों के अन्य संगठन भी PFI के साथ जुड़ते चले गए. गोवा का सिटीजन फोरम, पश्चिम बंगाल का नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, आंध्र प्रदेश का एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस और राजस्थान का कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशन सोसाइटी- ये सभी संगठन PFI का हिस्सा हो गए. इसीलिए देश भर में आधार बनाने के बाद PFI ने अपना मुख्यालय भी कोझिकोड से दिल्ली शिफ्ट कर लिया. आज भी ऐसा माना जाता है कि PFI देश के अधिकतर हिस्सों में एक्टिव है, लेकिन इसका मजबूत आधार दक्षिण भारत में ही है.

यूट्यूब चैनल का हो रहा इस्तेमाल

पीएफआई का यूट्यूब पर न्यूज चैनल चलाया जाता है, जिसको संगठन से जुड़ा अब्दुल सलाम नाम का व्यक्ति संचालित करता है. इस पर धार्मिक उन्माद भड़काने वाले कंटेट प्रचारित प्रसारित करने के आरोप लगते रहते हैं. इसीलिए सुरक्षा एजेंसियां इस यूट्यूब चैनल की डिटेल खंगाल रही हैं और माना जा रहा है इसके आधार पर भी बड़ी कार्रवाई हो सकती है.

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के कार्यकर्ताओं पर अक्सर कई आतंकी संगठनों से कनेक्शन होने से लेकर हत्याओं तक में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं. हालांकि, PFI का कहना है कि उनका संगठन कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से काम करता है. यह सारे आरोप बेबुनियाद और मनगढ़ंत होते हैं. सारे विरोधी संगठन केवल इसे बदनाम करना चाहते हैं.

केरल सरकार ने कसी थी नकेल (Kerala Government Action PFI)
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2010 में PFI पर आतंकी संगठन Students' Islamic Movement of India (SIMI) से कनेक्शन के आरोप भी लगे थे. इसकी वजह ये थी कि उस समय PFI के अध्यक्ष अब्दुल रहमान थे, जो एक जमाने में SIMI के राष्ट्रीय सचिव रह चुके थे. इसके साथ ही PFI के राज्य सचिव अब्दुल हमीद भी SIMI के सचिव के रूप में काम कर चुके थे. हालांकि, PFI इन आरोपों को खारिज करते हुए अपने आपको सबसे अलग करने की कोशिश करता रहता है, लेकिन लोग संगठन की दलीलें मानने को तैयार नहीं होते हैं. 2012 में केरल सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि हत्या के 27 मामलों में PFI का सीधा-सीधा कनेक्शन दिखायी देता है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर मामले RSS और CPM के कार्यकर्ताओं की हत्या से जुड़े थे.

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पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और सिमी

जुलाई 2012 में केरल के कन्नूर में एक स्टूडेंट सचिन गोपाल और चेंगन्नूर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता विशाल पर चाकू से हमला हुआ था. बाद में दोनों की मौत हो गई थी. इस हमले का आरोप PFI पर लगाया था. उसी साल केरल सरकार ने हाईकोर्ट में यह भी कहा था कि PFI कोई और संगठन नहीं, बल्कि प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) का ही नया रूप है.

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पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर सवाल

इन गतिविधियों ने बढ़ाया शक बढ़ाया

  • PFI पर जांच एजेंसियों की निगरानी
  • कई मामलों में इसके सदस्यों के आते रहे नाम
  • केरल में लव जिहाद
  • केरल में जबरन लोगों को मुसलमान बनाने के मामले
  • कुछ लोगों के लापता होने के मामले
  • लापता लोगों के सीरिया और अफगानिस्तान भेजे जाने का मामला
  • विदेशी आतंकी संगठन आईएस लोगों को शामिल करवाने का आरोप
  • PFI के फंड और देने वाले देशों के कनेक्शन
  • PFI पदाधिकारी के अरब देशों के दौरे
  • PFI के समर्थक व कार्यकर्ताओं की अरब में मौजूदगी
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पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े विवाद

ऐसे मामलों में लगे आरोप

2010 प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काटने की घटना
PFI सबसे पहले 2010 में केरल में प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काटने की घटना के बाद चर्चा में आया था. प्रोफेसर जोसेफ पर एक परीक्षा के पेपर में पूछे गए सवाल के जरिए पैगंबर मोहम्मद साहब के अपमान का आरोप लगा था. आरोप है कि PFI से जुड़े लोगों ने प्रोफेसर का हाथ काट दिया था. उस समय प्रोफेसर जोसेफ ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा था कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया आतंकवादी संगठन है, जो कट्टरपंथी विचारधारा को फैलाता और लागू करता है. उनकी गतिविधियां पूरे देश में खौफ पैदा करती हैं.

इन ताजा मामलों से चर्चा तेज
पटना में जब पुलिस ने देश के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में चार संदिग्धों को गिरफ्तार किया तो पता चला कि अतहर परवेज, मो. जलालुद्दीन, अरमान मलिक और एडवोकेट नूरुद्दीन जंगी PFI से जुड़े हैं. साथ ही पुलिस ने कहा कि PFI बिहार में 2016 से एक्टिव है. पूर्णिया जिले में संगठन ने हेडक्वार्टर स्थापित करने की तैयारियां की थीं. इसके साथ ही बिहार के 15 से ज्यादा जिलों में ट्रेनिंग सेंटर भी चलाए हैं. ऐसा कहा जाता है कि PFI अनपढ़, बेरोजगार मुस्लिम युवाओं को टारगेट करता है और उनको हक की लड़ाई लड़ने के नाम पर हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी देता है.

3 जून 2022 को कानपुर में हुई हिंसा की जांच के दौरान हुए दंगे में PFI काफी एक्टिव दिखा. हालांकि कानपुर शहर में इसका कोई ऑफिस शहर में नहीं मिला है. यूपी पुलिस का दावा है कि शहर के बाबूपुरवा इलाके में PFI की गतिविधियां दिखायी देती हैं. यहां पर पहले स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) से जुड़े लोग संगठन पर बैन लगने के बाद PFI से जुड़कर काम करने लगे हैं.

28 जून 2022 को राजस्थान के उदयपुर शहर में टेलर कन्हैयालाल की हत्या के बाद पुलिस ने हत्यारों का कनेक्शन PFI से जुड़े होने का दावा किया था. उदयपुर में गौस मोहम्मद और रियाज जब्बार नाम के दो युवकों ने दुकान में घुसकर टेलर कन्हैयालाल की हत्या कर दी थी. उदयपुर में PFI का कोई दफ्तर तो नहीं मिला, फिर भी राजस्थान में PFI का नेटवर्क को ध्यान में रखकर जांच एजेंसियां काम कर रही हैं.

कई मुस्लिम देशों से आता है फंड
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पूरे देश में नेटवर्क तैयार करने के लिए केवल देशी नहीं विदेशी पैसे का भरपूर इस्तेमाल करता है. इसके लिए दुनिया भर के कई मुस्लिम देशों से उसे फंडिंग की जाती है. कहा जाता है कि यह फंड मुस्लिम देशों में जकात के नाम पर देकर मनमाफिक गतिविधियों में खर्च किया जा रहा है. यह भी जानकारी मिली है कि रीहैब फाउंडेशन के जरिए पीएफआई तक बहुत सारा फंड पहुंच रहा है. पीएफआई के निशाने पर सबसे अधिक नेपाल के सीमा से सटे जिले हैं, जहां पर गरीब व बेरोजगारों को अपने नेटवर्क में जोड़कर इसे मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.

रिहैब फाउंडेशन और फंड
रिहैब फाउंडेशन के बारे में कहा जाता है कि इसका करीब 25 मुस्लिम देशों में नेटवर्क हैं. इन देशों से रिहैब के खाते में करोड़ों का फंड जकात के नाम पर आता है, जिसका मूल उद्देश्य इस्लाम का प्रचार-प्रसार होता है. लेकिन फाउंडेशन के बारे में कहा जाता है कि यह पीएफआई के नेटवर्क को बढ़ाने के लिए धर्म के नाम पर यह राशि मनमाने तरीके से खर्च करता है. जानकारी के मुताबिक पीएफआई के खाते में अब तक 125 करोड़ रुपये जकात के नाम पर आ चुके हैं. जून 2022 में Enforcement Directorate ने Money Laundering Case की जांच के तहत रिहैब और पीएफआई के 33 बैंक खाते सीज कर चुका है, जिसमें लाखों का फंड अभी भी मौजूद है.

योगी के निशाने पर पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया
पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने उत्तर प्रदेश पर अपनी नजरें गड़ा रखीं हैं और कई जिलों में सक्रिय होना शुरू कर दिया है. इसी की भनक लगते ही प्रदेश सरकार वर्ष 2020 में ही पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश केंद्रीय मंत्रालय से कर चुकी है. नागरिक संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में प्रदेश के 21 जिलों में हुए हिंसक प्रदर्शनों के पीछे पीएफआई की बड़ी भूमिका सामने आने के बाद यह सिफारिश की गयी थी. मामले में तत्कालीन डीजीपी ओपी सिंह के प्रस्ताव पर तत्कालीन अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी की तरफ से केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस बारे में पत्र भेजा गया था.

जानकारी के अनुसार, पीएफआई ने लखनऊ, बहराइच और सहारनपुर में कुछ अलग किस्म की पाठशालाएं खोल रखी हैं, जिनमें धर्म के नाम पर कई गैर जरूरी पाठ पढ़ाए जाते हैं. इसीलिए जानकारी पर योगी सरकार ने मदरसों की जांच पड़ताल करा रही है. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक पीएफआई का पश्चिमी यूपी के मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर जैसे जिलों में सक्रिय नेटवर्क चल रहा है. साथ ही साथ पूर्वांचल में नेपाल सीमा से सटे जिलों बहराइच, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, श्रावस्ती, गोंडा और बलरामपुर में सक्रिय सदस्यों की संख्या धीरे धीरे बढ़ायी जा रही है. प्रदेश के बहराइच, श्रावस्ती व गोंडा में पंचायत चुनाव के दौरान राजनीतिक सक्रियता का भी प्रयास किया जा रहा है. अब पीएफआई के निशाने पर लखनऊ व बाराबंकी जैसे बड़े जिले हैं. वसीम अहमद ने लखनऊ के साथ ही बाराबंकी, बहराइच, गोरखपुर, वाराणसी, कानपुर, सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा में संगठन के लोगों के साथ कई कार्यक्रम करके अपना दायरा बढ़ा रहा है.

उत्तर प्रदेश में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई के खिलाफ कार्रवाई जारी है. यूपी एटीएस ने कार्रवाई करते हुए पीएफआई के 6 सदस्यों को हाल ही में गिरफ्तार किया है. इनमें से 4 को एटीएस की मेरठ यूनिट और 2 को वाराणसी यूनिट ने पकड़ा है. पकड़े गए आरोपियों के नाम मोहम्मद शादाब अजीज कासमी निवासी शामली, मौलाना साजिद निवासी शामली, मुफ्ती शहजाद निवासी गाजियाबाद और मोहम्मद इस्लाम कासमी निवासी मुजफ्फरनगर हैं.

इसे भी पढ़ें : एक गोली भी नहीं चली और पीएफआई का पूरा खेल खत्म, जानें कैसे बनी 'ऑपरेशन ऑक्टोपस' की योजना

अजीत डोभाल दे चुके हैं संकेत
30 जुलाई 2022 को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Adviser) अजीत डोभाल (Ajit Doval) ने धार्मिक प्रमुखों के साथ एक बैठक करके मामले में सरकार का नजरिया पेश कर चुके हैं. अखिल भारतीय सूफी सज्जादनशीन परिषद (All India Sufi Sajjadanashin Council) द्वारा आयोजित कार्यक्रम के बाद पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया गया था.

अजीत डोभाल का दावा

"कुछ तत्व ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो भारत की प्रगति को बाधित कर रहा है. वे धर्म और विचारधारा के नाम पर कटुता और संघर्ष पैदा कर रहे हैं और यह पूरे देश को प्रभावित कर रहा है. यह देश के बाहर भी फैल रहा है."

PFI पर NIA की रेड

केंद्रीय एजेंसियों एनआईए और ईडी ने गुरुवार को असम, बिहार, केरल, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु और राजस्थान सहित 11 राज्यों में छापे मारे और 100 से अधिक संदिग्ध पीएफआई कार्यकर्ताओं को कथित तौर पर आतंकी गतिविधियों का समर्थन करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. जिस पर शुक्रवार व शनिवार को इनपुट मिलता रहा. इस दौरान आपत्तिजनक दस्तावेज, डिजिटल उपकरण, हथियारों के साथ 10 लाख रुपये की नकदी जब्त की गयी है. साथ में यह भी पता चला है कि इसके द्वारा कई ऐसे शिविर आयोजित किए गए थे, जहां देश में आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश रची गई थी.

PFI के राष्ट्रीय महासचिव अनीस अहमद का दावा

''2017 से ही PFI पर प्रतिबंध की बातें चल रही हैं. कुछ लोगों ने कहा कि एक महीने में ही प्रतिबंधित हो जाएगा, लेकिन अब तक प्रतिबंध नहीं लगा पाए है. इसका प्रमुख कारण यह है कि सरकार के पास ऐसा करने का कोई कानूनी आधार नहीं है. हम कोई टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन नहीं हैं. हम एक आजाद संगठन हैं, जो जनता से जुड़कर काम करता है. हम लोग खुलेआम अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस और कार्यक्रम करते हैं. हम एक रजिस्टर्ड संगठन हैं और समय पर टैक्स भी भरते हैं. हमें सिर्फ आरोपों के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है.''

अनीस अहमद का सवाल

''अक्सर मीडिया हमें आरोपी नहीं बताता, सीधे अपराधी घोषित कर देता है. आज भारत में सबसे ज्यादा नजर PFI पर रखी जा रही है. ED की हम पर निगरानी है, NIA और लोकल पुलिस हम पर नजर रखती है. फिर भी PFI के लोग आर्म्स ट्रेनिंग दे देते हैं, सम्मेलन कर लेते हैं, ये सब कैसे हो जाता है.. ? बिहार में गिरफ्तारियों के बाद पुलिस ने कहा कि प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान PFI आर्म्स ट्रेनिंग दे रही थी, लेकिन किसी ने पुलिस से नहीं पूछा कि इस दौरान पुलिस क्या कर रही थी..जब हम यह सब कर रहे हैं तो पुलिस क्या कर रही है.''

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ऑल इंडिया बार एसोसिएशन की मांग

ऑल इंडिया बार एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई पर तुरंत बैन लगाया जाना चाहिए. ऑल इंडिया बार एसोसिएशन ने यह मांग पीएफआई के खिलाफ 15 राज्यों में हुई छापेमारी को लेकर की है. उसका कहना है कि पीएफआई से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का भी गठन किया जाए और इनकी देश विरोधी गतिविधियों को देखते हुए तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए.

संभावित योजना पर नजर

सूत्रों ने दावा किया है कि केंद्र ने आतंकी गतिविधियों में कथित संलिप्तता के लिए पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है और सारी कार्रवाई इसी की कड़ी है. इसी को लेकर गुरुवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और एजेंसी के शीर्ष अधिकारियों के बीच एक उच्चस्तरीय बैठक हुई है. छापे से मिले दस्तावेजों व फीडबैक व सबूतों के आधार पर कार्रवाई होना तय माना जा रहा है.

Last Updated : Sep 28, 2022, 9:27 AM IST
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