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गुजरात हाईकोर्ट में लगी याचिका, 'मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर का शोर क्यों सुनें'

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Published : Feb 16, 2022, 8:16 PM IST

गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है. इसके अनुसार याचिकाकर्ता ने कहा है कि वह इस्लाम धर्म में यकीन नहीं करता है, इसलिए उसे रोज-रोज मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकर से आने वाली आवाज (ध्वनि की तीव्रता) को सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. हाईकोर्ट ने इस याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है.

gujarat high court
गुजरात हाईकोर्ट

गांधीनगर : गुजरात हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. इस याचिका में मस्जिदों में लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध लगाने के लिए आवश्यक निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. मामले की सुनवाई जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री कर रहे हैं. गांधीनगर के एक डॉक्टर धर्मेंद्र विष्णुभाई ने याचिका दाखिल की है. राज्य सरकार को 10 मार्च तक जवाब देने को कहा गया है.

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया है कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकरों से 200 डेसिबल से अधिक की ध्वनि निकलती है. जबकि ध्वनि प्रदूषण नियमों के अनुसार इसकी सीमा अधिकतम 80 डेसिबल हो सकती है. याचिकाकर्ता ने अपनी दलील में बताया कि किसी भी व्यक्ति को आप कुछ भी ऐसा सुनने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं, जो उसे पसंद नहीं है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का भी जिक्र किया. इसके अनुसार कोर्ट ने तब अपने फैसले में कहा था कि अगर आप भगवान की पूजा करते हैं, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि आप लाउडस्पीकर का प्रयोग करें ही. यह कोई अधिकार नहीं है. साल 2000 में चर्च ऑफ गॉड वर्सेस केकेआर मजेस्टिक कॉलनी वेलफेयर एसोसिएशन मामले में कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था.

उन्होंने अदालत में अपनी दलील देते हुए कहा कि कोई भी धर्म यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके यहां पूजा या प्रार्थना करने के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग करना अनिवार्य है. ये अलग है कि लोगों ने धीरे-धीरे इसका उपयोग करना शुरू कर दिया.

शादी में बजने वाले बैंड पर याचिकाकर्ता ने कहा कि यह किसी भी व्यक्ति की जिंदगी में सिर्फ एक होता है. लेकिन अजान मामले में यह हर रोज होता है. विष्णुभाई के वकील ने कहा कि अगर आप इस्लाम धर्म में विश्वास नहीं रखते हैं, तो उन्हें उस ध्वनि को सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.

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