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Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा करने से मिलती है मोक्ष की प्राप्ति, पढ़ें कथा

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Published : Feb 11, 2023, 8:00 AM IST

महाशिवरात्रि का पर्व भोलेनाथ से जुड़ा हुआ है और इसी दिन भगवान शंकर का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ था. इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहते हैं. महाशिवरात्रि पर लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए व्रत करते हैं. व्रत के पीछे पौराणिक कथा है.

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महाशिवरात्रि की कथा

नई दिल्लीः महाशिवरात्रि का पर्व इस साल 18 मार्च को मनाया जाएगा. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के साथ शिव परिवार की भी पूजा की जाती है. यह पर्व भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह की वर्षगांठ के रूप में भी मनाया जाता है. भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार से जप-तप-व्रत करते हैं. इस दिन विधि पूर्वक भगवान शिव की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस दिन महाशिवरात्रि के व्रत का भी विशेष पुण्य माना गया है. आइए जानते हैं महाशिवरात्रि व्रत की कथा क्या है.

महाशिवरात्रि की कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है. कथा के मुताबिक, पुरातन काल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी हुआ करता था. शिकारी चित्रभानु एक साहूकार का कर्जदार था. एक दिन साहूकार ने कर्ज न दे पाने पर शिकारी को शिवमठ में बंदी बना दिया. संयोग से जिस दिन बंदी बनाया उस दिन महाशिवरात्रि थी. साहूकार ने महाशिवरात्रि के ही दिन अपने घर में पूजा का आयोजन किया. पूजा के बाद कथा का पाठ किया गया. शिकारी भी पूजा और कथा में बताई गई बातों को ध्यान से सुनता रहा. कुछ देर बाद कथा समाप्त हुई तो शिकारी ने साहूकार से ऋण चुकाने का वादा किया. साहूकार ने शिकारी को मठ से बाहर निकाला, इसके बाद शिकारी ने कहा कि अगर साहूकार उसे जाने देता है तो अगले ही दिन वह ऋण चुका देगा. इस वचन पर साहूकार ने शिकार को मुक्त कर दिया.

शिकार की तलाश में जंगल में बिताई रात
इसके बाद शिकारी जंगल में शिकार के लिए निकल गया. लेकिन शिकार की खोज में उसे रात हो गई. इसके बाद शिकारी ने जंगल में ही रात बिताई. शिकारी एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात बीतने लगा. बेलपत्र के पेड़ नीचे एक शिवलिंग था, जो बेलपत्रों से ढक चुका था. लेकिन इस बात से शिकारी अज्ञान था. आराम करने के लिए उसने बेलपत्र की कुछ सखाएं तोड़ीं, इस प्रक्रिया में कुछ बेलपत्र की पत्तियां शिवलिंग पर गिर पड़ी. शिकारी भूखा प्यास उसी स्थान पर बैठा रहा. इस प्रकार से शिकारी का व्रत हो गया. तभी अचानक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने के लिए आई.

शिकारी ने हिरणी के शिकार के लिए धनुष पर जैसे ही तीर चढ़ाया तभी हिरणी बोली कि मैं गर्भ से हूं. शीघ्र ही बच्चे को जन्म दूंगी. ऐसे में तुम एक साथ दो जीवों की हत्या कर दोगे, जो उचित नहीं होगा. मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब तुम मेर शिकार कर लेना. हिरणी की बात मानकर शिकारी ने तीर वापिस ले लिया. इसके बाद शिकारी ने जैसे ही धनुष पेड़ की टहनी पर रखा तो फिर बेल पत्र टूटकर शिवलिंग पर गिर गए. इस प्रकार शिकारी से अनजाने में ही प्रथम प्रहर की पूजा पूरी हुई. कुछ देर बाद एक ओर हिरणी शिकारी के पास से गुजरी. हिरणी को देख शिकारी ने तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ा कर निशाना लगा दिया. लेकिन तभी हिरणी ने शिकारी से निवेदन किया कि मैं अपने प्रिय को खोज रही हूं. मैं अपने पति से मिलकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी. इस बात पर शिकारी ने इस हिरणी को भी जाने दिया.

इस तरह हुई दूसरे प्रहर की पूजा
इसी दौरान रात्रि का आखिरी प्रहर भी बीत गया. इस बार भी उसके धनुष रखने से कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे, इस प्रकार शिकारी के दूसरे प्रहर की पूजन प्रक्रिया भी पूर्ण हो गई. वहीं, कुछ देर बाद तीसरी हिरणी दिखाई दी जो अपने बच्चों के साथ उधर से गुजर रही थी. शिकारी ने धनुष उठाकर हिरणी की ओर निशाना लगाया. शिकारी तीर को छोड़ने वाला ही था कि हिरणी बोली मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर लौट आऊंगी. मुझे अभी जानें दें. शिकारी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. शिकारी ने कहा कि वह दो हिरणी को छोड़ चुका है हूं. हिरणी ने कहा कि शिकारी मेरा विश्वास करों, मैं वापिस आने का वचन देती हूं.

शिकारी को मिला फल
शिकारी को हिरणी पर दया आ गई और उसने हिरणी को जाने दिया. वहीं, भूख के तड़प रहा शिकारी अनजाने में बेल की पत्तियां तोड़कर शिवलिंग पर फेंकता रहा. इस दौरान रात बीत गई और सुबह की पहली किरण निकलते ही शिकारी को एक हिरण दिखाई दिया. शिकारी ने खुश होकर अपना तीर धनुष पर चढ़ा लिया, तभी हिरण ने दुखी होकर शिकारी से कहा यदि तुमने मेरे से पहले आने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मार दो. क्योंकि मैं उन हिरणियों का पति हूं. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी छोड़ दो. मैं अपने परिवार से मिलकर वापस आ जाऊंगा. इस पर शिकारी ने उसे भी जाने दिया. इस दौरान सूर्य उदय हो चुका था. शिकारी से अनजाने में ही व्रत, जागरण, पूजा और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी. भगवान शिव की कृपा से उसे इसका फल तुरंत प्राप्त हुआ.

शिकारी को मिला शिवलोक
भगवान शिव की कृपा से शिकारी का हृदय बदल गया शिकारी का मन निर्मल हो गया. कुछ देर बाद ही शिकारी के सामने संपूर्ण मृग परिवार मौजूद था. ताकि शिकारी उनका शिकार कर सके. लेकिन शिकारी ने ऐसा नहीं किया और सभी को जाने दिया. महाशिवरात्रि के दिन शिकारी द्वारा पूजन की विधि पूर्ण करने के कारण उसे मोक्ष प्राप्त हुआ. शिकारी की मृत्यु होने पर यमदूत उसे लेने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापिस भेज दिया. शिवगण शिकारी को लेकर शिवलोक आ गए. भगवान शिव की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु स्वयं के पिछले जन्म को याद रख पाए और महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए.
नोटः यह कथा सूचना एवं मान्यताओं पर आधारित है. ईटीवी भारत इस कथा के किसी भी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है.

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