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बांदा के इस काली मंदिर में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु, मराठों ने किया था स्थापित

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Published : Oct 12, 2021, 9:25 PM IST

शहर के अलीगंज स्थित प्राचीन काली देवी मंदिर में नवरात्र के वक्त रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं. लगभग 350 साल से अधिक पुरानी इस माता की मूर्ति को छत्रपति शिवाजी के शासन काल में मराठों ने स्थापित किया था. कहते हैं सच्चे मन से पूजन-अर्चना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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बांदा : नवरात्रि (Navratri) का पावन पर्व चल रहा है और पूरे देश में इस पावन पर्व को लेकर धूम है. सभी देवी मंदिरों और देवी पंडालों में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर पहुंच रहे हैं. हमारे देश में कई प्राचीन मंदिर भी स्थापित हैं, जिनके पीछे कोई न कोई कहानी छिपी है. जिले में भी एक प्राचीन काली देवी (Kali Devi Temple) का मंदिर है. इसका इतिहास बेहद रोचक है. इस प्राचीन मंदिर में स्थापित काली देवी की प्रतिमा को छत्रपति शिवाजी (chhatrapati shivaji) के शासन काल में मराठों ने स्थापित किया था और वह भी उन्हें मजबूरी में करनी पड़ी थी. हमने इस संबंध में मंदिर के पुजारी और अन्य लोगों ने महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की हैं.

अलीगंज इलाके में स्थित है काली देवी का प्राचीन मंदिर

बता दें, कि शहर के अलीगंज के बाबूलाल चौराहे पर एक काली देवी का प्राचीन मंदिर स्थापित है. जहां, पर रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं. बताया जाता है कि इस मंदिर में जो काली देवी की प्रतिमा स्थापित है. वह लगभग 350 साल से अधिक पुरानी है और इसे मराठों ने स्थापित किया था. इसकी स्थापना मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के शासन काल दौर में हुई थी.

काली मंदिर में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

मंदिर के पुजारी मुन्नालाल सरस्वती ने बताया कि इस काली देवी की मूर्ति को हमारे पूर्वजों ने स्थापित किया था. मैं मध्य प्रदेश क्षेत्र का रहने वाला हूं. हमारे पूर्वजों से जो जानकारी हमें मिली है. उसके मुताबिक, एक बार पूर्वजों के सपने में माता रानी ने दर्शन दिए. माता रानी स्वयं एक स्थान पर अपनी इस प्रतिमा के पड़े होने की जानकारी दी, जिसके बाद मराठा इस प्रतिमा को लेने के लिए उक्त स्थान पर पहुंचे. सपने में दिखाए स्थान पर काली देवी की यह प्रतिमा उन्हें प्राप्त हुई.

नहीं उठा सके प्रतिमा

कहते हैं जब वे इस प्रतिमा को लेकर बांदा के रास्ते अपने घर की ओर जा रहे थे तो उन्हें यहीं पर रात हो गई. लिहाजा, इसी स्थान (जहां पर आज यह मंदिर बना हुआ है) पर उन्हें रात्रि विश्राम के लिए रुकना पड़ा. बताते हैं कि अगले दिन जब प्रतिमा को उठाने की कोशिश की गई तो प्रतिमा को उठा नहीं सके. लाख कोशिश के बाद भी मराठा देवी प्रतिमा को उठाने में असमर्थ हो गए. लिहाजा, उन्होंने इस प्रतिमा को वर्तमान के अलीगंज के बाबूलाल चौराहे पर स्थापित कर दिया. धीरे धीरे मंदिर का निर्माण कर पूजा अर्चना होने लगी. आज की स्थिति यह है कि देवी के पूजन-अर्चन को दूर-दराज से लोग आते हैं. शारदीय व चैत्र नवरात्र में यहां भक्तों की खासी भीड़ लगती है. रोजाना दर्जनों की संख्या में लोग मुराद पूरी होने पर चढ़ौना चढ़ाने के लिए आते हैं. सच्चे मन से पूजन-अर्चन करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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