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सपा के लिए कितने उपयोगी साबित हुए अमर और आजम, जानिए इनसे जुड़े किस्से

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Published : Oct 10, 2022, 5:23 PM IST

कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव व अमर सिंह की पहली मुलाकात कांग्रेसी नेता वीर बहादुर सिंह के घर पर 1987-88 के आसपास हुयी थी. इसके बाद से ही अमर सिंह मुलायम को लेकर जिज्ञासु हो गए थे. लेकिन दोनों का असली परिचय उनके पारिवारिक मित्र ईशदत्त यादव ने कराया था. जबकि आजम खान पुराने सहयोगी थे, लेकिन दोनों नेता पार्टी में एक दूसरे से काफी असहज दिखा करते थे. इसीलिए दोनों से सपा को फायदा नुकसान भी होता रहा. आइए जानते हैं क्या रहा इनका सपा में रोल...

Amar Singh and Azam Khan Role in Samajwadi Party
अमर सिंह व आजम खान

नई दिल्ली : समाजवादी पार्टी के संरक्षक नेताजी मुलायम सिंह यादव की मौत की खबर के बाद हर तरफ शोक की लहर है. मेदांता गुरुग्राम से उनके शव को लेकर वाहन निकला और डीएनडी से होते हुए यमुना एक्सप्रेस वे के जरिए सैफई की ओर चला गया. वहीं लोग मुलायम सिंह यादव के उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति में बनायी गयी अपनी अलग पहचान के लिए याद कर रहे हैं. वह आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेल जाने से लेकर देश के रक्षामंत्री के रूप में किए खास कार्यों के लिए उनको याद किया जा रहा है. समाजवादी पार्टी में उनके दो सहयोगियों का अहम रोल है. जिसने सपा के उत्थान में खास भूमिका निभायी है.

1995 में स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा के हाथ से उत्तर प्रदेश की सत्ता निकल गयी और लगभग मुलायम सिंह अगस्त 2003 तक उत्तर प्रदेश सत्ता से दूर रहे इस दौरान उनके पास अमर सिंह का साथ मिला और वह राज्य की राजनीति के साथ साथ देश की राजनीति में एक्टिव होने लगे. 1996 में 11वीं लोकसभा के लिए वह पहली बार चुने गए और प्रधानमंत्री की रेस में शामिल होने लगे थे. लेकिन उन्हें रक्षामंत्री बनकर संतोष करना पड़ा. यह वही दौर था जब अमर सिंह मुलायम सिंह के करीब आए थे. जब अमर सिंह समाजवादी पार्टी में आए तो समाजवाद में कार्पोरेट व बॉलीवुड का तड़का लगा. इसका असर समाजवादी पार्टी पर भरपूर दिखा यह असर पॉजिटिव के साथ साथ निगेटिव भी होता चला गया, जिससे सपा के कई दिग्गज नेताओं से मुलायम सिंह की दूरी बढ़ने लगी. एकबार तो मुलायम ने आजम सिंह जैसे पुराने सहयोगी को पार्टी से बाहर निकाल दिया. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि अमर व आजम समाजवादी पार्टी व मुलायम सिंह के लिए कितने फायदेमंद रहे और क्यों बाद में इनसे रिश्ते खटक गए.

Amar Singh Role in Samajwadi Party
अमर सिंह

ऐसे अमर सिंह की सपा में हुए एंट्री
वैसे तो कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव व अमर सिंह की पहली मुलाकात कांग्रेसी नेता वीर बहादुर सिंह के घर पर 1987-88 के आसपास हुयी थी. इसके बाद से ही अमर सिंह मुलायम को लेकर जिज्ञासु हो गए थे. लेकिन दोनों का असली परिचय उनके पारिवारिक मित्र ईशदत्त यादव ने कराया था. अपने एक मीडिया इंटरव्यू में अमर सिंह ने बताया था कि आजमगढ़ के पारिवारिक मित्र विधायक ईशदत्त यादव ने मुलायम सिंह यादव को उनके बारे में विस्तार से बताया था और उसके बाद से दोनों करीब आए. अमर सिंह ने कहा था कि जैसे-जैसे हमारी मुलाकातें बढ़ती गईं, वैसे वैसे वह मुलायम सिंह यादव के नजदीक होते गए. मुलायम सिंह उनकी बात को मानते थे तो उन्होंने मुलायम सिंह के कहने पर देशी भाषा, देभी भूषा और देशी भोजन अपनाने की सलाह दी तो अमर सिंह ने इसे मंत्र मानकर अपना लिया और सपा के जरिए उच्च सदन की सीढ़ियां चढ़ गए.

Amar Singh Role in Samajwadi Party
मुलायम सिंह यादव व अमर सिंह

एक और किस्सा है, जिसमें कहा जाता है कि साल 1996 में अमर सिंह और मुलायम सिंह एक जहाज में मिल गए और दोनों इसके बाद काफी करीब आने लगे. इस मेल मिलाप से अमर सिंह समाजवादी पार्टी में आ गए और नई ऊंचाइयां हासिल करते गए. 1996 में वह पहली बार राज्यसभा में भेजे गए. कार्यकाल पूरा होने पर 2002 और 2008 में पार्टी ने उन्हें फिर राज्यसभा में भेजा. इसके साथ ही उन्हें पार्टी महासचिव भी बनाया गया. उन्होंने इस दौरान सपा का कायकल्प बदलने की कोशिश की और एक देसी पार्टी को नया कलेवर देते हुए राष्ट्रीय मंच पर लाने की कोशिश की. कई फिल्मी सितारों से लेकर कॉरपोरेट तक के लोगों को समाजवादी पार्टी के नजदीक लाकर खड़ा कर दिया. 2003 से 2007 के बीच जब मुलायम यूपी के सीएम थे तो उन्होंने यूपी में उद्योगपतियों और बॉलीवुड के कई कलाकारों का जमावड़ा लगाया. जया बच्चन से लेकर जया प्रदा और संजय दत्त तक को सपा में लाकर मजबूत करने की कोशिश की. उनका कद पार्टी में ऐसा हो गया कि मुलायम सिंह यादव अमर सिंह के बिना समाजवादी पार्टी में कोई फैसला नहीं लेते थे.

Azam Khan Role in Samajwadi Party
आजम खान के साथ मुलायम सिंह यादव

दूर हो गए कई खांटी नेता
कहा जाता है कि अमर सिंह के दबदबे से कई खांटी समाजवादी पार्टी के नेता किनारे होते चले गए. ऐसे में नेताओं का एक तबका अमर सिंह से नाराज रहने लगा. आजम खान और बेनी प्रसाद बर्मा जैसे कद्दावर नेताओं ने पार्टी छोड़ दी और 2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की करारी हार हुयी तो उसके लिए अमर सिंह को जिम्मेदार बताया जाने लगा. 2009 के लोकसभा चुनाव आते आते मुलायम सिंह व अमर सिंह के रिश्ते में दरार आ गयी और रिश्ते काफी तल्ख हो गए. हालात ऐसे बन गए कि 2010 में अमर सिंह ने सपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने वह पार्टी छोड़ दी जिसने उन्हें 1996, 2002, 2008 में राज्यसभा भेजा था. 6 साल के लंबे वनवास के बाद एक बार फिर से वह समाजवादी पार्टी में आए, लेकिन तब अमर सिंह की हैसियत पहले जैसी नहीं थी. बाद में अखिलेश यादव से मतभेद के कारण वह पार्टी से दरकिनार कर दिए गए. कहा जाने लगा था कि अमर सिंह की वजह से सपा व मुलायम सिंह के परिवार में फूट पड़ने लगी थी.

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आजम खान का पार्टी में योगदान
उत्तर प्रदेश के रामपुर में 14 अगस्त 1948 को मोहम्मद आजम खान के रूप में पैदा हुए आजम खान समाजवादी पार्टी के एक सक्रिय भारतीय राजनीतिज्ञ हैं. वर्तमान में, खान भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश की 17 वीं विधान सभा के सदस्य हैं. उन्होंने 9 बार रामपुर निर्वाचन क्षेत्र के विधायक के रूप में चुनाव जीता है. ग्रेजुएशन के बाद आजम खान ने 1974 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एलएलबी की. उन्होंने वकील के तौर पर प्रैक्टिस करना शुरू किया और बाद में वे राजनीति में आ गए. मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पहले वह जनता दल, लोक दल और समावादी जनता पार्टी से जुड़े थे.

Azam Khan Role in Samajwadi Party
आजम खान का राजनीतिक सफर

समाजवादी पार्टी में आजम खान की भूमिका
आजम खान समाजवादी पार्टी में आने के पहले अपना राजनीतिक जीवन जनता दल (सेक्युलर) के रूप में शुरू किया था, फिर वह लोकदल में चले गए थे. उसके बाद जनता पार्टी में और फिर जब 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना हुयी तो वह सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल हुए और पहले ही अधिवेशन में पार्टी के महासचिव बनाए गए.

बीच में एक दौर आया जब वह अमर सिंह और कल्याण सिंह के चलते 24 मई 2009 को सपा से निकाले गए और मुलायम सिंह यादव के साथ उनका रिश्ता टूट गया. कहा जाता है कि यही वह दौर था जब मुसलमानों के वोट बैंक की अहमियत मुलायम सिंह समझ नहीं सके थे और कल्याण सिंह व अमर सिंह की सलाह मानकर लोध वोट के चक्कर में मुस्लिम वोट बैंक के बारे में नहीं सोचा. लेकिन 2009 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद मुलायम सिंह यादव को लगा कि उनका फैसला सही नहीं था और इसीलिए वह लेकिन 4 दिसबंर 2010 को उनका निलंबन रद्द कर फिर से पार्टी में बुला लिया गया. तब से वह सपा का मुस्लिम चेहरा बने हुए हैं.

कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी की स्थापना से लेकर आजतक सपा में उनका खास रोल रहा है. वह पार्टी में एक बड़ा मुस्लिम चेहरा था और उनके नाम पर सपा को मुसलमानों का वोट मिला करता था. वह मुलायम सिंह यादव के मुख्य सलाहकारों में भी गिने जाते थे. पार्टी के कोई बड़े फैसले बिना आजम खां के नहीं होते थे. लेकिन अखिलेश यादव के पार्टी में कमान संभालने के बाद से और भाजपा सरकार के द्वारा आजम खान पर लगातार मुकदमे दर्ज कर कार्रवाई किए जाने के दौरान अखिलेश व आजम खान के बीच में कुछ दूरी बढ़ती दिखायी दी, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में वह एक बार फिर से रामपुर से विधायक बनकर विधानसभा में 10वीं बार पहुंचने में सफल रहे हैं.

Azam Khan Role in Samajwadi Party
आजम खान के साथ मुलायम व अखिलेश

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सपा के ग्राफ को उपर ले जाने व मौजूदा हालत में पहुंचाने वाले नेताओं में सपा संरक्षक मुलायम सिंह के साथ साथ अखिलेश यादव का भी जितना रोल रहा हो, लेकिन समाजवादी पार्टी के विकास की कोई कहानी बिना आजम खान व अमर सिंह के पूरी नहीं होती है. जब इस संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार व उत्तर प्रदेश में राजनीतिक मामले के एक्सपर्ट ज्ञानेन्द्र शुक्ला से बात की गयी तो उनका कहना था, ''अमर सिंह समाजवादी पार्टी में आए तो समाजवाद में कार्पोरेट व बॉलीवुड का तड़का लगा. देश व दुनिया में पूजीवाद के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए यह बदलते दौर में जरूरी व पार्टी को चलाने व बढ़ाने के लिए उचित माना जाने लगा था. मुलायम सिंह की सोशलिस्ट थ्योरी में अमर सिंह ने कार्पोरेट व बॉलीवुड के तड़के का असर था कि 2003 में मुलायम सिंह यादव तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल हो पाए. वहीं आजम खान की वजह से मुलायम सिंह कार सेवकों पर गोली चलाकर सेक्यूलर नेता बनने की ओर कदम बढ़ाया. इससे एक समय में दोनों नेता मुलायम के लिए जरूरी लग रहे थे. समय बदला तो राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं और मुलायम सिंह से अमर सिंह और आजम खान दूर हो गए. हालांकि अमर सिंह बाद में वापस आए तो वह पद व कद न पा सके. जबकि आजम खान का महत्व वापस आने के बाद भी बरकरार रहा. आज भी आजम खान समाजवादी पार्टी के लिए बड़े उपयोगी नेता माने जाते हैं.''

वरिष्ठ पत्रकार का ज्ञानेन्द्र शुक्ला का कहना है कि दोनों नेताओं का महत्व सपा में इस तरह भी समझ सकते हैं....

1. अमर सिंह मैनेजर और आजम खान जनाधार वाले नेता के रूप में सपा के लिए उपयोगी रहे. मुलायम सिंह यादव को दोनों की जरूरत थी. इसीलिए दोनों नेताओं के आपसी विरोधाभास को जानते हुए मुलायम सिंह यादव दोनों को पार्टी में बनाए रखा. आजम राज्य की राजनीति में प्रमुख चेहरा थे तो अमर सिंद लखनऊ से दिल्ली और सैफई से मुंबई तक पार्टी का कनेक्शन लोगों से जोड़ने के लिए जरूरी थे.

2. अमर सिंह ने पार्टी में कार्यकर्ता कल्चर की जगह कार्पोरेट कल्चर लाया और पार्टी को फंड व भीड़ जुटाने वाले कई चेहरे दिए. अमर सिंह के चलते ही 2009 के चुनाव में संजय दत्त और मनोज तिवारी जैसे नेता सपा के टिकट पर चुनाव लड़े. जयाप्रदा व जया बच्चन भी पार्टी में आ गयीं. अनिल अंबानी व सुब्रत रॉय सहारा जैसे पूंजीपतियों को पार्टी में जोड़ा. सपा को ग्लैमरस लुक देने के साथ साथ कई नामी गिरामी लोगों को जोड़ा. इसी बात से आजम व बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेता नाराज थे और पार्टी में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को लेकर आवाज उठाने लगे थे. 2007 और 2009 के चुनावों में सपा की हार के बाद मुलायम सिंह ने अमर सिंह से किनारा करके कार्यकर्ताओं पर ध्यान देना शुरू किया.

3. सपा के बिखराव में भी अमर सिंह का अहम रोल बताया जाता है. अमर सिंह के बारे में राजनीतिक गलियारों में यह बात कही जाती थी कि वह जिस घर परिवार के पास गए वहां बिखराव तय था. अनिल अंबानी व मुकेश अंबानी के बाद मुलायम सिंह यादव के परिवार में भी खींचतान तेज हो गयी थी. बचने के लिए मुलायम सिंह को न चाहते हुए भी अमर सिंह को किनारे कर दिया.

वहीं आजम खान स्थापना से लेकर आज तक सपा से जुड़े हुए हैं. बीच के कुछ महीने छोड़ दिए जाएं, जब वह सपा से अलग थे. बाकी समय में वह अपनी राजनीतिक पहचान व हैसियत बरकरार रखने के लिए समाजवादी पार्टी में ही बने रहने में भलाई देखी. हालांकि अखिलेश यादव के सत्ता संभालने के बाद से सपा में कई बार असहज दिखे लेकिन पार्टी छोड़ने का साहस न कर सके. वह सपा के आरंभिक काल व चरमोत्कर्ष के साथ साथ मौजूदा हालात के गवाह हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि सपा में अमर से अधिक आजम प्रभावी रहे, लेकिन अमर के रोल को भी कम नहीं आंका जा सकता है. अगर अमर सिंह सपा में न आते तो हो सकता है राष्ट्रीय राजनीति व बड़े पटल पर सपा तेजी से न उभर पाती.

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