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Mewar Politics: मेवाड़ की इस सीट पर भाजपा के लिए अपने ही रहे सिरदर्द, जानिए यहां का राजनीतिक समीकरण

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Published : May 27, 2023, 5:36 PM IST

उदयपुर जिले की हॉट सीट मानी जाने वाली वल्लभनगर विधानसभा सीट पर भाजपा के लिए अपने ही सिरदर्द रहे हैं. आइए जानते हैं क्या हैं यहां पर राजनीतिक समीकरण...

Vallabhnagar assembly seat is a headache for BJP as its own leaders failed in elections
Mewar Politics: मेवाड़ की इस सीट पर भाजपा के लिए अपने ही रहे सिरदर्द, जानिए यहां का राजनीतिक समीकरण

उदयपुर. राजस्थान की राजनीतिक सियासत में एक ऐसी विधानसभा सीट भी है जहां भाजपा को अपने पूर्व सहयोगी से ही चुनौती मिलती आई है. दरअसल राजस्थान की हॉट सीट में से एक मेवाड़ की वल्लभनगर विधानसभा सीट जीतने में भाजपा के लिए अपने ही सिरदर्द बनते आए हैं. यहां पिछले तीन चुनावों में कभी त्रिकोणीय तो कभी चतुष्कोणीय मुकाबला रहा है. ऐसे में जानते हैं इस विधानसभा सीट का अब तक का क्या रहा राजनीतिक समीकरण. क्यों भाजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई.

भाजपा को अपनों से मिली शिकस्तः इस सीट पर लगातार भाजपा को 3 बार अपने 2 बागी प्रत्याशियों के कारण मुंह की खानी पड़ी. पहली बार 2013 में रणधीर सिंह भींडर ने कटारिया से खिलाफत कर भाजपा प्रत्याशी गणपत लाल मेनारिया के सामने चुनाव लड़ा. टिकट कटने की सहानुभति के कारण भींडर चुनाव जीतने में कामयाब रहे. इसके बाद 2018 में भींडर के सामने उदयलाल डांगी मैदान में थे.

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भींडर की पार्टी जनता सेना और भाजपा में वोट बंटने से इसका फायदा कांग्रेस को मिला. 2018 में गजेंद्र सिंह शक्तावत दूसरी बार विधायक बने. इसके बाद 2021 में उनके निधन के बाद उपचुनाव में गजेंद्र सिंह की पत्नी प्रीति शक्तावत मैदान में आई. उपचुनाव में डांगी को टिकट नहीं मिला, तो वे आरएलपी में शामिल हो गए. इस कारण चतुष्कोणीय मुकाबले में दूसरे स्थान पर डांगी और तीसरे स्थान पर जनता सेना के भींडर रहे. प्रीति की जीत के साथ उपचुनाव में बीजेपी चौथे स्थान पर चली गई.

भाजपा के पूर्व प्रत्याशी बने सिरदर्दः वल्लभनगर सीट पर पिछले लंबे वर्षों से भाजपा का प्रत्याशी जीतने में असफल रहा है. भाजपा के प्रत्याशी की वल्लभनगर विधानसभा से चुनाव में जमानत तक जब्त हो गई थी. ऐसे में भाजपा के इस हालात के पीछे कई वजह हैं. जिसके कारण भाजपा का कमल इस विधानसभा सीट पर खिल नहीं पाया है. पिछले चार विधानसभा चुनाव परिणाम को देखें, तो भाजपा के लिए अपने ही सिरदर्द बन गए. भाजपा के पार्टी बनने के बाद अब तक सिर्फ एक बार भाजपा का उम्मीदवार जीतने में सफल रहा है.

भाजपा के चार बार के उम्मीदवार ने बनाई अपनी पार्टीः साल 1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भींडर को टिकट देकर मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल पाई. इसके बाद पार्टी ने 1998 के विधानसभा चुनाव में उन्हें फिर से मौका दिया. लेकिन वह भाजपा का कमल खिलाने में असफल साबित रहे. 2003 के विधानसभा चुनाव में रणधीर सिंह भींडर कांग्रेस के कद्दावर नेता गुलाब सिंह शक्तावत को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे. वहीं 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भींडर को टिकट देकर फिर मैदान में उतारा, लेकिन वह गुलाब सिंह शक्तावत के छोटे बेटे गजेंद्र सिंह से चुनाव हार गए.

भाजपा ने काटी टिकट तो बनाई अपनी पार्टीः साल 2013 के विधानसभा चुनाव में वल्लभनगर विधानसभा सीट से भाजपा के पूर्व प्रत्याशी भींडर की टिकट काटकर पार्टी ने गणपत मेनारिया को टिकट दिया. लेकिन यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भींडर ने चुनाव लड़ा और उन्हें जीतने में सफलता मिली. इसके कुछ समय बाद ही भींडर ने भाजपा से बगावत करते हुए अपनी स्वयं की पार्टी बनाई, जिसका नाम जनता सेना रखा गया. खास बात यह है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी की जमानत तक जब्त हो गई थी.

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कटारिया और भिंडर के बीच 36 का आंकड़ाः भाजपा नेता और असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया और भींडर के बीच सियासी अदावत किसी से छिपी हुई नहीं है. दोनों एक-दूसरे के ध्रुव प्रतिद्वंद्वी के रूप में रहे हैं. राजनीति के जानकारों का तो यहां तक कहना है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में भींडर की टिकट कटाने में कटारिया का महत्वपूर्ण रोल रहा. लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा के कई वरिष्ठ नेता भींडर को फिर से पार्टी में शामिल करना चाहते थे. लेकिन कटारिया की नाराजगी के कारण उन्हें मौका नहीं मिल पाया. हालांकि भींडर और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राज्य के संबंध जग जाहिर हैं. भींडर भाजपा में न होने के बावजूद भी खुले मंच पर वसुंधरा का स्वागत करते रहे हैं.

उदयलाल डांगी बने भाजपा के लिए सिरदर्दः साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उदयलाल डांगी को टिकट दिया. लेकिन कांग्रेस के गजेंद्र सिंह शक्तावत चुनाव जीते. गजेंद्र सिंह के कोरोना के कारण निधन होने से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुए. इसमें भाजपा ने अपने पूर्व प्रत्याशी उदयलाल डांगी की टिकट काटते हुए एक नए युवा उम्मीदवार हिम्मत सिंह झाला को मैदान में उतारा. लेकिन इस बार भी भाजपा का कमल यहां नहीं खिल पाया.

उदयलाल डांगी की टिकट काटने पर उन्होंने भाजपा से बगावत कर आरएलपी का दामन थामा था. लेकिन वह चुनाव नहीं जीत पाए. इस उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी की जमानत तक जब्त हो गई थी. उदयलाल डांगी भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया के बेहद खास बताए जाते हैं. लेकिन 2018 के उपचुनाव में कटारिया उन्हें टिकट दिलाने में असफल रहे. जबकि भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी हिम्मत सिंह झाला को टिकट दिलाने में सफल रहे थे.

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क्या सीपी करवा पाएगी भिंडर की घर वापसी? अब इस बात को लेकर चर्चाएं और ज्यादा तेज हो गई हैं कि भींडर के प्रतिद्वंद्वी रहे कटारिया के गवर्नर बनने के बाद क्या भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी भींडर को भाजपा में शामिल करवा पाएंगे. अगर भींडर भाजपा में शामिल होते हैं, तो पार्टी को एक नई ताकत मिल सकती है. क्योंकि भींडर वल्लभनगर विधानसभा सीट से एक जन आधार वाले नेता है. जिनकी जनता में बेहद पकड़ और युवाओं में उनका क्रेज है.

कांग्रेस का रहा दबदबाः वल्लभनगर में पिछले 69 साल में 1952 से अबतक 16 चुनाव हुए हैं. इन 16 चुनावों में अब तक 8 नेताओं को विधायक चुना गया है. वल्लभनगर में अब तक 6 बार गुलाब सिंह शक्तावत, 3 बार कमलेंद्र सिंह, 2-2 बार गजेंद्र शक्तावत और रणधीर सिंह भींडर विधायक बने हैं. वहीं 1-1 बार दिलीप सिंह, हरिप्रसाद और अमृतलाल यादव विधायक रहे हैं.हालांकि पिछले 45 सालों से कांग्रेस पार्टी ने शक्तावत परिवार पर विश्वास जताया. ऐसे में गुलाब सिंह शक्तावत यहां से विधायक रहे. उनके निधन के बाद उनके छोटे बेटे गजेंद्र सिंह शक्तावत विधायक बने. गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद उनकी पत्नी प्रीति शक्तावत वल्लभनगर से विधायक हैं.

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