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NGO का मानवता को शर्मसार करने वाला फर्जीवाड़ा, घरेलू महिलाओं को सेक्स वर्कर बताकर उठाया करोड़ों का भुगतान

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Published : Jul 28, 2020, 8:40 PM IST

राष्ट्रीय एड्स उन्मूलन संस्थान (नाको) से प्रेषित NGO पिछले 10-12 वर्षों से कागजों में 500 से ज्यादा सेक्स वर्कर दिखाकर करोड़ों रुपए का भुगतान उठाने का मामला सामने आया हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि जिन महिलाओं को HRG (हाई रिस्क ग्रुप) बताया जा रहा है, उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं है.

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नागौर में NGO का फर्जीवाड़ा

नागौर. जिले में 500 से ज्यादा सेक्स वर्कर काम कर रही हैं, चौंकिए मत क्योंकि आंकड़ा केवल कागजी है और कागजों में फर्जीवाड़े का खेल चल रहा है. जिला कलेक्टर को NGO में काम करने वाली महिला वर्कर ने ज्ञापन सौंपकर फर्जीवाड़े के खेल का खुलासा किया है.

दअरसल, राष्ट्रीय एड्स उन्मूलन संस्थान (नाको) से प्रेषित एक NGO पिछले 10-12 वर्षों से कागजों में 500 से ज्यादा सेक्स वर्कर बताकर करोड़ों रुपए का भुगतान उठा रही है. चौंकाने वाली बात यह है कि जिन महिलाओं को HRG (हाई रिस्क ग्रुप) बताया जा रहा है, उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं है.

नागौर में NGO का फर्जीवाड़ा

राजस्थान राज्य एड्स नियंत्रण संस्थान के अंतर्गत कार्य इस NGO को नाको और राजस्थान राज्य एड्स नियंत्रण संस्थान की ओर से HIV जांच किट भी दिए जाते थे. लेकिन NGO की ओर से HRG (हाई रिस्क ग्रुप) की जांच करने के बजाय ठिकाने लगाया जा रहा है.

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सरकारी गाइडलाइन के अनुसार HRG (हाई रिस्क ग्रुप) की पहचान गुप्त रखी जानी होती है. इसी का फायदा उठाकर NGO की ओर से कच्ची बस्तियों से अनपढ़ महिलाओं को नाम पते जुटाए जाते और फिर उनके नाम से रजिस्ट्रेशन कर के फर्जी हस्ताक्षर कर ले जाते, जबकि जिन महिलाओं को HRG (हाई रिस्क ग्रुप) बताया जा रहा है. उनका इससे दूर-दूर तक नाता तक नहीं है.

NGO से जुड़ी महिलाओं ने नागौर जिला कलेक्टर डॉ जितेंद्र कुमार सोनी को ज्ञापन सौंपकर, पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा किया और जांच की मांग की है. मामले की गंभीरता को देखते हुए नागौर जिला कलेक्टर ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी से मामले की रिपोर्ट मांगी गई है.

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NGO से जुड़ी महिलाओं ने बताया कि पिछले 8-10 सालों से पियर एजुकेटर के रूप में कार्य कर रही हैं. लेकिन कोई बैठक या बस्ती में महिलाओं को एकजुट करने पर उन्हें 500 रुपए दिए जाते थे. लेकिन हर महीने मिलने वाला 3500 रुपए का मानदेय एक बार भी नहीं दिया गया.

पियर एजुकेटर ने बताया कि शुरू में उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी, कि मानदेय मिलता भी है या नहीं. लेकिन जब पता चला तो उन्होंने NGO संचालक से मानदेय के रुपए मांगे तो उनको कार्यमुक्त कर दिया.

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