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SPECIAL: कुरजां को रास आ रही डीडवाना की आबोहवा, छिछले पानी पर जमाया डेरा... पक्षी प्रेमियों में बढ़ा रोमांच

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Published : Nov 21, 2020, 5:40 PM IST

Updated : Nov 21, 2020, 6:44 PM IST

जैव विविधता के लिए खास पहचान रखने वाली नागौर जिले की डीडवाना झील फ्लेमिंगो को खूब रास आ रही है. ये प्रवासी पक्षी यहां बरसों से रह रहे हैं. इनके साथ ही अब प्रवासी पक्षी डेमोइसल क्रेन ने भी यहां अपना डेरा डाल दिया है. स्थानीय भाषा में इन पक्षियों को कुरजां कहते हैं. राजस्थानी लोक संस्कृति में कुरजां का खास स्थान है. इन पक्षियों का जिक्र लोकगीतों में भी मिलता है. आखिर क्यों डीडवाना की आबोहवा कुरजां को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है. देखिए खास रिपोर्ट.

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डीडवाना झील में कुरजों का डेरा

नागौर. सर्दी की शुरुआत में सुदूर ठंडे प्रदेशों से प्रवासी पक्षी हजारों किलोमीटर का सफर कर गर्म क्षेत्रों में प्रवास करने आते हैं. यहां उन्हें सर्दी के मौसम में पर्याप्त भोजन मिल जाता है. वैसे तो प्रवासी पक्षियों की एक लंबी फेहरिस्त है. लेकिन फ्लेमिंगो और डेमोइसल क्रेन ऐसे प्रवासी पक्षी हैं जो अपनी खास शारीरिक संरचना और सुंदरता के कारण जाने जाते हैं.

डीडवाना झील में कुरजों का डेरा

सर्दियों में नागौर जिले और आसपास के इलाकों में प्रवास करने वाले पक्षियों में कुछ साल पहले तक फ्लेमिंगो ही पक्षियों में एक बड़ा नाम माना जाता था. काफी संख्या में फ्लेमिंगो सर्दियों के मौसम में सांभर झील और डीडवाना झील के छिछले पानी पर प्रवास करते दिखते हैं और मार्च तक वापस अपने मूल स्थान पर चले जाते हैं. अब डीडवाना स्थित खारे पानी की झील में प्रवास करने वाले पक्षियों में डेमोइसल क्रेन का नाम भी जुड़ गया है. जिन्हें स्थानीय भाषा में कुरजां कहते हैं.

आमतौर पर राजस्थान में जोधपुर जिले के खींचन और फलौदी इलाके में सर्दी के मौसम में कुरजां का जमावड़ा देखने को मिलता है. लेकिन इस बार सर्दी की शुरुआत में डीडवाना स्थित खारे पानी की झील के किनारे इकट्ठा हुए पानी में कुरजां ने अपना बसेरा बनाया है. सांभर झील में आमतौर पर फ्लेमिंगो बहुतायत में दिखते हैं. लेकिन कुरजां वहां भी कम ही देखने को मिलती है. ऐसे में इस बार डीडवाना में अपना डेरा डाले कुरजां पक्षी प्रेमियों को खासा रोमांचित कर रही है. कई स्थानीय पक्षी प्रेमी इन प्रवासी पक्षियों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद करने पहुंच रहे हैं.

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प्रवासी पक्षी कुरजां का राजस्थान की लोक संस्कृति से गहरा नाता रहा है. यहां के लोक गीतों और कविताओं में कुरजां पक्षी को माध्यम बनाकर नायिका परदेस में रहने वाले अपने प्रियतम को संदेश भेजती है और अपनी विरह की पीड़ा अभिव्यक्त करती है. जानकारों का कहना है कि डीडवाना की खारे पानी की झील और उसके आसपास के इलाकों में पाई जाने वाली नील हरित शैवाल (ब्लू ग्रीन एल्गी) और स्पाईरोलीना प्रवासी पक्षियों को खास पसंद है. सर्दी के मौसम में जहां सुदूर ठंडे प्रदेशों में बर्फ की मोटी परत जम जाती है. ऐसे में यहां इस मौसम में उन्हें यहां पर्याप्त भोजन मिल जाता है.

इसलिए ये पक्षी हजारों किलोमीटर की यात्रा कर यहां आते हैं. डीडवाना के राजकीय बांगड़ कॉलेज में भूगर्भ शास्त्र के प्रोफेसर और प्रवासी पक्षियों में खास रुचि रखने वाले डॉ. अरुण व्यास बताते हैं कि सर्दियों में आने वाले प्रवासी पक्षी काफी दूर से यात्रा कर राजस्थान में सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचते हैं. आमतौर पर जोधपुर जिले के खींचन और फलौदी में हजारों की संख्या में कुरजां पक्षियों का प्रवास होता है. लेकिन बीते कुछ सालों में डीडवाना में भी कुरजां पक्षियों का प्रवास देखने को मिला है. हालांकि, उनका कहना है कि यहां कुरजां पूरी सर्दी तक न रुककर 20-30 दिन का प्रवास करते हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि अपने प्रवास स्थल तक पहुंचने से पहले वे कुछ दिन यहां सुरक्षित ठिकाना देखकर रुकते हैं. इसके बाद आगे बढ़ जाते हैं.

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सांभर झील में पिछले साल हुई पक्षी त्रासदी के डीडवाना में पक्षियों के प्रवास के सवाल पर डॉ. व्यास बताते हैं कि पिछले साल जब सांभर झील में लाखों परिंदों की मौत हुई थी. तब भी डीडवाना में प्रवासी पक्षियों का आना कम नहीं हुआ था. हालांकि, उनके आने के समय में थोड़ी देरी जरूर नोटिस की गई थी. आमतौर पर अक्टूबर में यहां प्रवासी पक्षी आते हैं. लेकिन पिछले साल नवंबर के आखिर में यहां प्रवासी पक्षियों की कलरव सुनाई देनी शुरू हुई थी. अब इस साल भी फ्लेमिंगो और कुरजां थोड़ी देरी से ही सही लेकिन प्रवास पर आना शुरू हो गए हैं.

उनका कहना है कि कुरजां बीते चार-पांच साल से डीडवाना इलाके में करीब 20 से 30 दिन के लिए प्रवास कर रहे हैं. हालांकि, उनका यह भी कहना है कि यदि प्रवासी पक्षियों के प्रवास के लिए सुरक्षित ठिकाने चिह्नित कर उनके भोजन की पर्याप्त व्यवस्था की जाए तो कुरजां जैसे पक्षियों का पूरी सर्दी के मौसम में यहां प्रवासकाल सुनिश्चित किया जा सकता है. इससे डीडवाना में इको टूरिज्म को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी.

Last Updated : Nov 21, 2020, 6:44 PM IST
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