स्पेशल रिपोर्ट: कोटा में स्थित नशा मुक्ति केंद्र 150 से अधिक लोगों के लिए बना वरदान, रोजाना 40 से 50 लोग उपचार के लिए आते हैं

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Published : Oct 21, 2019, 11:10 PM IST

कोटा के नए मेडिकल कॉलेज में स्थित नशा मुक्ति केंद्र कोटा और आसपास के लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है. हर रोज यहां करीब 40 से 50 लोग उपचार के लिए आते हैं. वहीं पिछले तीन साल में करीब 160 लोग यहां के उपचार से नशामुक्त हो चुके हैं.

कोटा. जिले में नए मेडिकल कॉलेज में तीन साल पहले स्थापित हुआ नशा मुक्ति केंद्र कोटा और आसपास के जिलों में स्मैक की लत से पीड़ित लोगों के लिए वरदान साबित हुआ है. इस नशा मुक्ति केंद्र में रोज 45 से 50 लोग अपने स्मैक के नशे की आदत को छुड़वाने के लिए आते हैं. यहां पर इन मरीजों को मेथाडोन दवा दी जाती है. पिछले 3 साल में करीब 160 से ज्यादा मरीजों स्मैक पीने की लत यह केंद्र छुड़वा चुका है.

कोटा में नशा मुक्ति केंद्र लोगों के लिए बना वरदान

ये वे लोग हैं जो स्मैक का नशा करने के चलते अपने परिवार से बिछड़ गए थे. इनके परिवार के लोग भी या तो इनका साथ छोड़ चुके थे. यह दर-दर की ठोकरें खा रहे थे. चोरियों और लूटपाट जैसी घटनाओं में भी शामिल थे. इन लोगों का सामाजिक बहिष्कार भी हो चुका था, लेकिन अब यह वापस उसी समाज में लौट चुके हैं.

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वरिष्ठ आचार्य मनोरोग और नोडल ऑफिसर डॉ. देवेंद्र विजयवर्गीय का कहना है कि मेथाडोन की दवा को रोज देने का कॉन्सेप्ट है. मरीजों को 3 से 10 एमएम तक यह दवा दी जाती है. इसकी मात्रा मरीज की क्षमता के अनुसार ही तय होती है. दवा पीने के बाद 24 घंटे काम करती है और व्यक्ति के स्मैक पीने पर भी उसका नशा नहीं होता है. धीरे- धीरे व्यक्ति की स्मैक पीने की लत छूट जाती है. डॉ. विजयवर्गीय ने कहा कि केंद्र सरकार की मदद से संचालित यह केंद्र जिसकी मॉनिटरिंग दिल्ली एम्स करता है, पूरे प्रदेश का यह एकमात्र केंद्र है. यहां पर निशुल्क उपचार नशे के आदी लोगों का किया जाता है.

नशे के लिए करते थे चोरियां

झालावाड़ जिले के मनोहर थाना निवासी 32 वर्षीय युवक पिछले कई सालों से स्मैक का नशा कर रहा था, उसकी हालत थी कि वह चोरी भी करने लग गया था. उसने खुद स्वीकार किया कि अब वह अपने गांव से 200 किलोमीटर दूर कोटा में इसलिए रह रहा है कि यहां पर नशा मुक्ति केंद्र में उसकी स्मैक पीने की लत छुड़ा दी है. युवक ने बताया कि पहले जहां उसका करीब 15 हजार रुपए महीने में स्मैक पीने में खर्च हो जाता था, अब 10 से 12 हजार परिजनों को पैसे देता है.

वहीं ऑटो चलाने वाले 50 वर्षीय एक व्यक्ति ने कहा कि स्मैक की लत के चलते उसका मकान बिक गया. बच्चों को पढ़ाई का पैसा चाहिए था, लेकिन खर्चा स्मैक में हो जाता था. इसके चलते उसने स्मैक बेचने का भी धंधा शुरू कर दिया. पिछले 2 साल से वह नशा मुक्ति केंद्र में दवा पीने आता है. इसी के चलते आज उसके बच्चे अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं.

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स्मैक पीकर अपनी कमाई तो उड़ा देता था

शिवपुरा निवासी स्मैक पीने के आदी 60 वर्षीय बुजुर्ग का कहना है कि उसके चलते पूरा परिवार तंग था. वह स्मैक पीकर अपनी पूरी कमाई उड़ा देता था. साथ ही लड़ाई झगड़े के चलते परिवार के लोग भी परेशान रहते थे. आए दिन झगड़ा होता था और थाना कचहरी के चक्कर काटने पड़ते थे. अब इन सब से मुक्ति मिल गई है.

दोस्तों से लगी पीने की लत

दूसरे एक और युवक ने बताया कि उसे दोस्तों के साथ स्मैक पीने की लत लगी थी. इसके चलते शरीर पूरी तरह से खराब हो चुका था. भूख नहीं लगती थी. लेकिन अब नशा मुक्त होने के बाद दोनों टाइम भोजन कर रहा हूं और आमदनी भी परिवारजनों और बच्चों पर खर्च कर रहा हूं.

बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल

मेडिकल कॉलेज के नशा मुक्ति केंद्र में बतौर मेडिकल ऑफिसर तैनात डॉ. सुधा तिवारी ने बताया कि केंद्र पर आने वाले लोगों में महिलाएं भी शामिल हैं, जो भी इसमें स्मैक और अन्य नशा करती थी. अधिकांश महिलाओं को उनके पति से स्मैक पीने की आदत लगी थी. ऐसे कई पति-पत्नी हैं, जिनके स्मैक पीने की आदत छुड़ाई गई है. वहीं कई सरकारी टीचर और रेलवे के कार्मिक भी इस नशा मुक्ति केंद्र का फायदा ले चुके हैं.

Intro:पिछले 3 साल में करीब 160 से ज्यादा मरीजों की स्मैक पीने की लत यह केंद्र छुड़वा चुका है. यह वह लोग हैं जो स्मैक का नशा करने के चलते अपने परिवार से बिछड़ गए थे, इनके परिवार के लोग भी या तो इनका साथ छोड़ चुके थे. यह दर-दर की ठोकरें खा रहे थे और चोरियों और लूटपाट जैसी घटनाओं में भी शामिल थे.


Body:कोटा.
मेडिकल कॉलेज कितने अस्पताल में तीन साल पहले स्थापित हुआ नशा मुक्ति केंद्र कोटा व आसपास के जिलों में स्मैक की लत से पीड़ित लोगों के लिए वरदान साबित हुआ है. इस नशा मुक्ति केंद्र इन लोगों के घर में दिवाली लाने का ही काम किया है. आज हालत यह है कि इस नशा मुक्ति केंद्र में रोज 45 से 50 लोग अपने स्मैक के नशे की आदत को छुड़वाने के लिए आते हैं. जहां पर इन मरीजों को मेथाडोन दवा दी जाती है. पिछले 3 साल में करीब 160 से ज्यादा मरीजों स्मैक पीने की लत यह केंद्र छुड़वा चुका है. यह वह लोग हैं जो स्मैक का नशा करने के चलते अपने परिवार से बिछड़ गए थे, इनके परिवार के लोग भी या तो इनका साथ छोड़ चुके थे. यह दर-दर की ठोकरें खा रहे थे और चोरियों और लूटपाट जैसी घटनाओं में भी शामिल थे. इन लोगों का सामाजिक बहिष्कार भी हो चुका था, लेकिन अब यह वापस उसी समाज में लौट चुके हैं.

बाइट-- डॉ. देवेंद्र विजयवर्गीय, वरिष्ठ आचार्य मनोरोग व नोडल ऑफिसर नशा मुक्ति केंद्र

डॉ. देवेंद्र विजयवर्गीय का कहना है कि मेथाडोन की दवा को रोज देने का कॉन्सेप्ट है. मरीजों को 3 से 10 एमएम तक यह दवा दी जाती है. इसकी मात्रा मरीज की क्षमता के अनुसार ही तय होती है. दवा पीने के बाद 24 घंटे काम करती है और व्यक्ति के स्मैक पीने पर भी उसका नशा नहीं होता है. धीरे- धीरे व्यक्ति की स्मैक पीने की लत छूट जाती है. डॉ. विजयवर्गीय ने कहा कि केंद्र सरकार की मदद से संचालित यह केंद्र जिसकी मॉनिटरिंग दिल्ली एम्स करता है, पूरे प्रदेश का यह एकमात्र केंद्र है. यहां पर निशुल्क उपचार नशे के आदी लोगों का किया जाता है.

बाइट-- डॉ. देवेंद्र विजयवर्गीय, वरिष्ठ आचार्य मनोरोग व नोडल ऑफिसर नशा मुक्ति केंद्र

चोरियां तक करने लग गए थे
झालावाड़ जिले के मनोहरथाना निवासी 32 वर्षीय युवक पिछले कई सालों से स्मैक का नशा कर रहा था, उसकी हालत थी कि वह चोरी भी करने लग गया था. उसने खुद स्वीकार किया कि अब वह अपने गांव से 200 किलोमीटर दूर कोटा में इसलिए रह रहा है कि यहां पर नशा मुक्ति केंद्र में उसकी स्मैक पीने की लत छुड़ा दी है. रोज को यहां पर दवा पीने आता है. अब पहले जहां उसका ₹15000 महीना इसमें पीने में खर्च हो जाता था, अब 10 से ₹12000 परिजनों को भी दे रहा है.

बाइट-- पीड़ित

मकान बिक गया, पैसे के लिए स्मैक भी बेची
ऑटो चलाने वाले 50 वर्षीय व्यक्ति का कहना है कि स्मैक की लत के चलते उसका मकान बिक गया. बच्चों को पढ़ाई का पैसा चाहिए था, लेकिन खर्चा स्मैक में हो जाता था. इसके चलते उसने स्मैक बेचने का भी धंधा शुरू कर दिया. पिछले 2 साल से वह नशा मुक्ति केंद्र में दवा पीने आता है. इसी के चलते आज उसके बच्चे अच्छी पढ़ाई कर चुके हैं.

बाइट-- पीड़ित

शिवपुरा निवासी स्मैक पीने के आदी 60 वर्षीय बुजुर्ग का कहना है कि उसके चलते पूरा परिवार तंग था वह स्मैक पीकर अपनी कमाई तो उड़ा ही था, साथ ही लड़ाई झगड़े के चलते परिवार जन भी परेशान रहते थे. आए दिन झगड़ा होता था और थाना कचहरी के चक्कर काटने पड़ते थे. अब इन सब से मुक्ति मिल गई है.

बाइट-- पीड़ित

दोस्तों के साथ स्मैक पीने की लत मुझे लग गई, इसके चलते शरीर पूरी तरह से खराब हो चुका था. भूख लगती नहीं थी केवल सुबह थोड़ी बहुत भूख लगती थी. स्मैक पीने के बाद ये गायब हो जाती थी. अब अच्छी तरह से दोनों टाइम भोजन कर रहा हूं और आमदनी भी परिवारजनों और बच्चों पर खर्च कर रहा हूं. पहले यह स्मैक खरीदने में ही खर्च हो जाती थी.

बाइट-- पीड़ित

महिलाओं के साथ सरकारी कार्मिक भी शामिल
मेडिकल कॉलेज के नशा मुक्ति केंद्र में बतौर मेडिकल ऑफिसर तैनात डॉ. सुधा तिवारी ने बताया कि केंद्र पर आने वाले लोगों में महिलाएं भी शामिल है, जो भी इसमें स्मैक और अन्य नशा करती थी, अधिकांश महिलाओं को उनके पति के स्मैक पीने की आदत से ही लत लगी थी. ऐसे कई पति पत्नी है, जिनके स्मैक पीने की आदत छुड़ाई गई है. वहीं कई सरकारी टीचर और रेलवे के कार्मिक भी इस नशा मुक्ति केंद्र का फायदा ले चुके हैं.

बाइट-- डॉ. सुधा तिवारी, एमओ, नशा मुक्ति केंद्र


Conclusion:रिहैबिलिटेशन ने भी किया मदद
नशा मुक्ति केंद्र के काउंसलर रजनीश मेहरा का कहना है कि मरीजों को दवा देने के साथ उनकी स्मैक पीने की लत छूट रही थी, लेकिन दूसरी समस्या उनके लिए रोजगार की आ रही थी. इसमें भी रिहैबिलिटेशन अहम किरदार निभाया है. ताकि वे लोग दोबारा इसमें की तरफ अग्रसर नहीं हो जाए.

बाइट-- रजनीश मेहरा, काउंसलर, नशा मुक्ति केंद्र


नोट: इसमें पीने के आदी लोगों के चेहरे को ब्लर किया जाए.
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