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Dhanteras 2022: जोधपुर की विशिष्ट परंरपरा, धनतेरस पर धन के रूप में मिट्टी ले जातें हैं घर...जानें कारण

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Published : Oct 23, 2022, 2:35 PM IST

देश में इस बार धनतेरस दो दिन मनाई जा रही (Dhanteras 2022) है. जोधपुर वासी धनतेरस को लेकर विशिष्ट परंपरा से धन पूजा करते हैं. यह धन पूजा कोई सोना चांदी या जेवरात नहीं बल्कि मिट्टी के रूप में होती है. लोग मिट्टी को धन के रूप में घर ले आते हैं. जानें क्यों जोधपुर वासी करते हैं मिट्टी रूपी धन पूजा...

Jodhpur people bring soil home in form of money
धनतेरस पर धन के रूप में मिट्टी ले जातें हैं घर

जोधपुर. इस बार धनतेरस दो दिन मनाई जा रही (Dhanteras 2022) है. रविवार को इसका उत्साह ज्यादा रहेगा. क्योंकि शनिवार को जो सूर्य उदय हुआ था. वो तेरस का नहीं था. ऐसे में आज बाजार गुलजार होने की पूरी उम्मीद है. भारतीय परंपरा में दिवाली सबसे पुराना त्योहार माना जाता हैं, ऐसे में इससे जुड़ी कई पंरपराएं भी प्रचलित हैं. जोधपुर में दीपोत्सव के दौरान धनतेरस को लेकर एक विशिष्ठ पंरपरा है. जिसका नाम है धन की पूजा. यह धन कोई सोना, चांदी, हीरे जवाहरत या नगदी के रूप में नहीं बल्कि मिट्टी के रूप में है. धनतेरस पर जहां लोग बाजार में बड़ी खरीद करते हैं. लेकिन जोधपुर में लोग पहले सुबह इस मिट्टी रूपी धन को घर ले जाते हैं और उसके बाद धनतेरस की खरीद करते हैं.

शहर के भीतरी इलाके जिसे परकोटा भी कहते हैं. यहां निवास करने वाले श्रीमाली ब्राह्मणों की यह पंरपरा है. जिसे अब सभी वर्ग अपना चुके हैं. परकोटा के निवासी गोर्वधन तालाब की जमीन खोद कर मिट्टी निकालते हैं और उसे अपने घर लेकर जाते हैं. बरसों पहले तक इस मिट्टी रूपी धन को घर ले जाने के साथ खेजड़ी वृक्ष की हरी डाली रखी जाती थी, लेकिन अब खेजड़ी लुप्त हो रही है तो प्रतिक के रूप में कंडील की पत्तियां रखी जाती हैं.

धनतेरस

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ज्यादातर पति पत्नी जोड़े से ही मिट्टी लेने आते हैं: धन लेने का सिलसिला धनतेरस के दिन अलसुबह शुरू हो जाता है. ज्यादातर पति पत्नी जोड़े से ही मिट्टी लेने आते हैं. इसके बाद घर पहुंचने पर सभी सदस्य इसकी पूजा करते हैं. दिवाली के तीन दिन तक पूजा की जाती है. इसके बाद इसे तुलसी के गमले में रखा जाता है. इसके अलावा इस मिट्टी से कुछ लड्डू बनाए जाते हैं. जिन्हें पूरे साल सुरक्षित रखा जाता है और अगली धनतेरस से ठीक पहले पानी में विर्सजित कर दिया जाता है. शहरवासी बताते हैं कि यह उनके पूर्वजों की परंपरा है जिसे वे संजोए हुए हैं.

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