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परमवीर मेजर शैतान सिंह का 60वां बलिदान दिवस आज, सेना ने किया शहीद को याद

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Published : Nov 18, 2022, 12:18 PM IST

1962 के भारत-चीन युद्ध (India China War 1962) में देश की सीमा की रक्षा को अपना सर्वोच्च निछावर करने वाले शहीद परमवीर मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) का आज 60वां बलिदान दिवस है. इस अवसर पर शुक्रवार को पावटा के मेजर शैतान सिंह सर्कल पर शहीद की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित किया गया.

Paramveer Major Shaitan Singh
Paramveer Major Shaitan Singh

जोधपुर. 1962 के भारत-चीन युद्ध (India China War 1962) के दौरान देश की सीमा के रक्षार्थ सर्वोच्च शौर्य का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए शहीद परमवीर मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) का आज 60वां बलिदान दिवस है. इस मौके पर पावटा स्थित मेजर शैतान सिंह सर्कल पर उनकी प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें भारतीय सेना के जवानों ने अपने हीरो को याद किया. भारतीय सेना हर साल आज के दिन यहां श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित कर अपने वीर योद्धा को (Army remembered martyr) याद करती है. 1962 में चीनी सैनिकों और मेजर टुकड़ी के बीच हुआ युद्ध पूरी दुनिया में मशहूर है. केवल 114 सैनिकों के साथ उन्होंने 17 हजार फीट की ऊंचाई से चीन के हजारों सैनिकों का मुकाबला कर अदम्य साहस का परिचय दिया था.

26 जनवरी, 1963 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने सर्वोच्च बलिदान व शौर्य के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश (Paramveer Major Shaitan) का सर्वोच्च सैन्य सम्मान 'परमवीर चक्र' प्रदान किया गया था. परमवीर मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर, 1924 को जोधपुर जिले के फलोदी तहसील के बाणासर गांव (अब शैतान सिंह नगर ) में कर्नल हेम सिंह भाटी के घर हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा चौपासनी विद्यालय व उच्च शिक्षा जसवंत कॉलेज में हुई. साल 1949 में उनको सेना में कमीशन मिला और कुमाऊं रेजिमेंट में शामिल किए गए. वहीं, शुक्रवार को उन्हें चौपासनी स्कूल में विशेष कार्यक्रम के दौरान याद किया गया.

सेना ने किया शहीद को याद

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3 माह बाद मिला था शव: 18 नवंबर, 1962 को चीन ने भारत पर हमला कर दिया. मेजर शैतान सिंह तब 13 कुमाऊं रेजिमेंट बटालियन की चार्ली कंपनी को कमांड कर रहे थे. 17 हजार फीट की ऊंचाई पर चुशूल सेक्टर के रेजांग्ला में 114 सैनिकों के साथ उन्होंने चीन के 1300 सैनिकों से भंयकर युद्ध लड़ा. मरते दम तक उन्होंने चुशूल हवाई पर चीनियों को कब्जा नहीं करने दिया था.

उन्होंने रेजांग्ला की लड़ाई को भारतीय सेना की महान परंपरा की तरह लड़ा, जो इतिहास में सदा की तरह एक मिसाल बन गई. 3 माह बाद फरवरी में बर्फ पिघलने पर मेजर व उनके साथियों के शव मिले थे. उस समय अंतिम स्थिति में मेजर शैतान सिंह के हाथों में मशीनगन थी, जो हाथ जख्मी होने पर पांव में रस्सी से बांध लिया था. उसी स्थिति में उनका शव चट्टानों से टेक लगाए मिला था. इसके बाद 18 फरवरी, 1963 को जोधपुर में शहीद का अंतिम संस्कार किया गया.

शहीद के याद में काव्य संध्या: लोहावट के मेजर शैतान सिंह नगर में शुक्रवार को परमवीर चक्र विजेता शहीद मेजर शैतान सिंह के नाम पर काव्य संध्या का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत शिरकत करेंगे. मेजर शैतान सिंह के 60वें बलिदान दिवस पर आयोजित इस काव्य संध्या में देश के ख्याति प्राप्त वीर रस के कवि काव्य पाठ कर अमर शहीद को काव्यांजलि प्रस्तुत कर श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे.

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