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सेना ने शैतान सिंह को किया याद, 114 सैनिकों के साथ 1300 चीनी सैनिकों से भिड़ गए थे मेजर

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 18, 2023, 1:24 PM IST

Army remembered Major Shaitan Singh in jodhpur
सेना ने मेजर शैतान सिंह को किया याद

जोधपुर के पावटा सर्किल पर स्थित अमर शहीद मेजर शैतान सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण कर भारतीय सेना ने उनको याद किया. 1962 के युद्ध में चुश्लू सेक्टर के रेजांग्ला में वो शहीद हो गए थे.

जोधपुर. भारतीय सेना ने शनिवार को भारत के अमर शहीद मेजर शैतान सिंह को श्रद्धांजली दी है. जोधपुर के पावटा सर्किल पर उनकी मूर्ति पर सैन्य अधिकारियों और पूर्व सैनिकों ने उनको याद किया है. इन्हें 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया था. उन्होंने 18 नवंबर 1962 को महज 114 सैनिकों के साथ सीमित संसाधनों के साथ 1300 चीनी सैनिकों से लोहा लिया था. चुश्लू सेक्टर के रेजांग्ला में हुए भीषण युद्ध में मेजर भाटी वीरगति को प्राप्त हो गए थे. उनका व साथी सैनिकों के शव कई दिनों बाद मिले थे, क्योंकि उस क्षेत्र में बर्फ जम गई थी. उन्होंने पैर से रस्सी बांध कर मशीनगन चलाई थी. सीज फायर होने पर युद्ध समाप्त हो गया लेकिन मेजर सहित कई सैनिकों के शव नहीं मिले.

स्थानीय लोग बताते हैं कि युद्ध समाप्ति के तीन माह बाद एक गडरिये ने सेना को कुछ सैनिकों के शव मिलने की सूचना दी. बर्फ में दबा होने से मेजर शैतान सिंह सहित अन्य सैनिकों के शव सुरक्षित थे. मेजर का शव पत्थर से सटा हुआ मिला. उनके पांव में रस्सी थी जिससे मशीनगन बंधी थी, जिससे अंदाजा लगाया गया था कि जब हाथ काम नहीं कर रहे थे तो उन्होंने पांव से मशीनगन चलाई. उनके इस अदम्य साहस व बलिदान का लोगों ने लोहा माना, जिसके फलस्वरूप उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

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38 की उम्र में हो गए थे शहीद : अमर शहीद मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1924 को जोधपुर के फलोदी के पास हुआ था. उनके पिता तत्कालीन सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल हेमसिंह भाटी थे जिन्होने प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया था. इसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने 'ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर' (ओबीई) दिया गया था. शैतानसिंह को 1 अगस्त 1949 में सेना में पोस्टिंग मिली. उन्हें कुमायूं रेजिमेंट में शामिल किया गया था. 1962 में हुए चीन के साथ हुए युद्ध में उन्हें चुश्लू सेक्टर में तैनाती दी गई थी, जहां रेजांग्ला में हुए भीषण युद्ध में चीन के सैकड़ों सैनिक भी मारे गए थे.

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