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स्पेशल: 83 साल की धापू बाई की जुबान पर रचे बसे हैं लोक गीत, दादी की विरासत को किताब में संजो रहा पोता

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Published : Apr 15, 2021, 12:51 PM IST

Updated : Apr 15, 2021, 3:28 PM IST

देश दुनिया में लोक गीतों की बात करें और राजस्थान को याद ना करें, ऐसा असंभव है. राजस्थान की आन, बान और शान का वास्तविक बखान लोक गीतों से ही संभव है. ऐसे में राजस्थान की आन का प्रतिक रहे माटी में रचे बसे लोक गीत कहीं आज की महिलाएं भूल ना जाएं और यहां की परंपरा को जिंदा रखने के लिए धापू बाई एक नायाबा कोशिश कर रही हैं. मौखिक साहित्य कहे जाने वाले लोक गीतों को झालावाड़ जिले के अकलेरा तहसील क्षेत्र के सरड़ा गांव निवासी 83 वर्षीय धापू बाई सेन झालावाड़ की आम बोली में लिखित रूप देने में लगी हुई हैं. देखिये ये रिपोर्ट...

83 year old dhapu bai
83 साल की धापू बाई

झालावाड़. धापू बाई सेन बताती हैं कि लोक गीत और पर्यावरण समय के अनुकूल रचे जाते हैं. इनका माटी और हमारी संस्कृति से पूरा जुड़ाव होता है. लोक गीत हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं. पहले औरतें चक्की चलाते समय, पानी लेने जाते समय, मांडने बनाते समय या अधिकांश अपने कामकाज के दौरान लोक गीत गाया करती थीं. लेकिन अब पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित महिलाएं लोक गीतों को भूलती चली जा रही हैं.

दादी की विरासत को किताब में संजो रहा पोता...

झालावाड़ की बोली अपने आप में अद्भुत...

विंध्याचल पर्वतमाला में बसे हुए हाड़ौती के झालावाड़ जिले की बोली अपने आप में अद्भुत है. यहां हाड़ौती के साथ मालवा के शब्दों का भी आम बोलचाल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. जिससे झालावाड़ की भाषा और भी रसमयी हो जाती है, जो ना केवल यहां के लोगों को बल्कि पड़ोसी राज्यों के साथ देश-विदेश के लोगों को भी लुभाती है. इसी झालावाड़ की बोली में धापू बाई सेन लोक गीतों को सुनाती हैं और अपने पौत्र मनीष कुमार सेन से लोक गीतों को किताब में भावी पीढ़ी के लिए संजोने का सराहनीय प्रयास कर रही हैं. धापूबाई इस किताब में करीब 150 लोकगीतों को संजोना चाहती हैं. इस कड़ी में अभी तक 12 लोकगीतों को लिख चुकी हैं.

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गीत गाने के लिए घर आते हैं बुलाने...

आज अधिकांश महिलाएं लोक गीतों को भूल चुकी हैं. 83 वर्षीय धापू बाई सेन को गांव में आज भी जब रातीजगा के गीत, पूर्वजों के गीत, विवाह में प्रभातिया सहित कई गीतों को गाने के लिए महिलाएं बुलाने आती हैं. धापू बाई सेन ने बताया कि आज की महिलाओं को लोक गीतों को सीखना चाहिए, जिससे कि लोक गीत हमेशा जीवंत बने रहें.

लोक गीतों को लिखित रूप में संजोने का प्रयास...

अब महिलाएं लोक गीतों को भूलती चली जा रही हैं. कई महिलाएं कहती हैं कि उन्हें गीत आते ही नहीं, क्योंकि उन्होंने इन गीतों को कभी पढ़ा नहीं है. धापू बाई सेन बताती हैं कि यह लोक गीत अपनी माटी में ही रचे बसे जाते हैं. पहले विवाह के दौरान भी प्रभातियां से लेकर सभी रस्मों में अलग-अलग तरह के गीत गाए जाते थे, लेकिन अब परिपाटी कुछ अलग हो चुकी है. यह गीत लुप्त होते जा रहे हैं. इन्हीं गीतों को जीवंत बनाए रखने के उद्देश्य से धापू बाई सेन लोक गीतों को लिखित रूप देने में लगी हुई हैं.

making commendable efforts
पोते के साथ धापू बाई...

वहीं, धापू बाई सेन के पौत्र बालकवि मनीष कुमार सेन ने बताया कि दादी जो गीत सुनाती हैं, उन्हें दादी के पास बैठकर लिखता हूं. उन गीतों का शिल्प सौंदर्य अद्भुत है. लोक गीतों में माटी की खुशबू आती है. इनका संरक्षण भावी पीढ़ी के लिए आवश्यक है.

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जल्द आएगी लोक गीतों की किताब...

धापू बाई सेन के पौत्र बालकवि मनीष कुमार सेन ने आगे बताया कि दादी धापू बाई सेन जो लोक गीत सुनाती हैं, उन्हें जल्द ही वरिष्ठ साहित्यकारों का मार्गदर्शन प्राप्त कर किताब के माध्यम से लोगों के समक्ष लाया जाएगा. जिससे लोगों का अपनी लोक संस्कृति से जुड़ाव बना रहे.

Last Updated : Apr 15, 2021, 3:28 PM IST
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