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Padmashri Laxman Singh Exclusive: जल यात्रा से पद्मश्री तक का सफर, लक्ष्मण सिंह मनरेगा को मानते हैं टर्निंग प्वाइंट

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Published : Jan 28, 2023, 10:33 PM IST

Updated : Jan 29, 2023, 12:12 AM IST

Padmashri Laxman Singh Exclusive
Padmashri Laxman Singh Exclusive

केंद्र सरकार की ओर से की गई पद्म पुरस्कारों की घोषणा में जयपुर के लक्ष्मण सिंह को पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है. टोंक जिले की सरहद पर गांव लापोड़िया के रहने वाले लक्ष्मण सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत (Padmashri Laxman Singh on Etv Bharat) में पानी की समस्याओं को लेकर खुलकर बात की.

पद्मश्री लक्ष्मण सिंह से खास बातचीत

जयपुर. प्रदेश की राजधानी जयपुर के लक्ष्मण सिंह को हाल ही में पद्मश्री के लिए चुना गया है. राजधानी से करीब 80 किलोमीटर दूर टोंक जिले की सरहद पर लापोड़िया गांव के रहने वाले लक्ष्मण सिंह मूलतः पानी को सहेजने का काम कर रहे हैं. 4 दशक पहले गांव के ठाकुर परिवार में जब लक्ष्मण सिंह ने बिजली-सड़क विहीन गांव की इन समस्याओं के खिलाफ लड़ाई का मानस बनाया, तो एक मर्तबा लोगों को उनका विचार रास नहीं आया.

लगभग 18 साल की उम्र में लक्ष्मण सिंह ने पढ़ाई छोड़ कर 3 साल से अकाल से जूझ रहे अपने लापोड़िया गांव में पानी को सहेजने का जिम्मा उठाया. प्रभावशाली परिवार से होने के बावजूद जमीन से जुड़े लक्ष्मण सिंह की पहचान एक किसान के रूप में ही रही है. पद्मश्री से नवाजे जाने पर ईटीवी भारत ने लक्ष्मण सिंह से विशेष बातचीत की और उनकी जलयात्रा के सफरनामा को जाना. इस बातचीत में उन्होंने सरकारों को सुझाव भी दिए और अपने कामों को विस्तार से बताया.

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एकला चलो रे सी बनी बड़ी टीमः अपने जल यात्रा की शुरुआत के सफर को लेकर लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि जब अकाल से जूझ रहे गांव की शहरों के आरामवाले जीवन से तुलना की, तो मन में टीस उठी. इसके बाद लक्ष्मण सिंह ने ठान लिया कि वह गांव में लोगों से बात करके जल समस्या का समाधान करेंगे. उन्होंने इस काम की जिम्मेदारी सबसे पहले गांव के एक तालाब से उठानी शुरू की, जो 20 साल से पाल टूट जाने के कारण सूखा पड़ा हुआ था.

शुरुआत में लक्ष्मण सिंह ने अकेले काम शुरू किया, फिर कुछ मित्र उनके साथ जुड़े और धीरे-धीरे उनके लगन को देखकर पूरा गांव साथ आ गया. उनकी इस पहल का नतीजा यह रहा कि कुछ ही वर्षों में तालाब लबालब हो गया और गांव के भूजल स्तर में भी इजाफा देखने को मिला. लक्ष्मण सिंह की ये मुहिम अब जयपुर और टोंक जिले के 60 गांव में फैल चुकी है. जहां ड्राई जोन से उन्होंने जल स्तर को ऊपर तक ला दिया है. हर गांव में तालाबों में 2 से 3 साल का पानी का कोटा उपलब्ध रहता है. यहां तक की मवेशियों के लिए भी पर्याप्त चारे का इंतजाम सभी गांवों में है. लक्ष्मण सिंह ने लापोड़िया के युवाओं को जोड़कर ‘ग्राम विकास नवयुवक मंडल लापोड़िया’ भी बनाया. जिसके सैकड़ों सदस्य तालाब बनाने के काम में लगातार स्वयं सेवा कर रहे हैं.

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लोगों को किया जागृतः लक्ष्मण सिंह के नाम के आगे उनके गांव का नाम भी जुड़ा है , जो आज एक-दूजे के पूरक हो चुके हैं. सालों से पानी पर काम करते हुए लक्ष्मण सिंह ने जमीन की क्षमता को विकसित करने पर भी जोर देना शुरू किया. उनका मत था कि जब तक धरती की क्षमता का विकास नहीं होगा, तब तक इंसान से लेकर पशु तक का जीवन समस्याओं से ही घिरा रहेगा. इस लिहाज से जल संरक्षण के साथ ही उन्होंने वृक्षारोपण और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया. इसका परिणाम यह रहा कि शिक्षा के जरिए पर्यावरण को लेकर गांव के लोगों में जागरूकता आई , तो पेड़-पौधों को सहेजने की आदत से मिट्टी की उर्वरता बढ़ी. इन सब कारणों से दूदू से लेकर टोंक तक के गांवों में आज न तो जल समस्या आती है और न ही पशुओं के लिए किसी भी मौसम में चारे की कमी होती है. खेतों में भी पैदावार इतनी बेहतर है कि लक्ष्मण सिंह की बताई राह पर चलने वाले 60 गांवों में आर्थिक स्थिति में तब्दीलियां देखने को मिली है.

चौका और पाटा सिस्टम सीख रहे हैं लोगः लक्ष्मण सिंह ने जल संरक्षण के लिए स्थानीय जल की महत्ता पर हमेशा जोर दिया. उनका मानना है कि वर्षा जल के बहकर अन्यत्र जाने से गांवों को नुकसान हुआ है. इसलिए उन्होंने गांवों के तालाब ओवरफ्लो होने पर बरसात में अतिरिक्त पानी के रिचार्ज को लेकर काम किया. उन्होंने आस-पास के क्षेत्रों में बहाव क्षेत्र पर अतिक्रमण को नियंत्रित कर चारागाह विकसित करने पर जोर दिया. अलग-अलग जगह के लिहाज से जमीन पर चौकोर पाटे तैयार किए, जहां 9 इंच तक के पानी को जमा करने के बाद भूमि में रिचार्ज के लिए छोड़ दिया जाता था.

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इस कोशिश का परिणाम यह रहा कि कभी ड्राई जोन बन चुका गांव आज बरसात के मौसम में कुओं को ओवरफ्लो कर देता है. साल भर 6 से दस फीट तक की गहराई पर पानी मिल जाता है. उनका यह काम देखने के लिए अब लापोड़िया में देश-दुनिया के लोग भी आते हैं. अंतरराष्ट्रीय संस्था CRS ने भी चौका सिस्टम के जरिए जल संरक्षण की कोशिशों को सराहा और अफगानिस्तान के साथ ही इजरायल में इसे लागू करने की सिफारिश तक की.

सरकारों को मनरेगा में बदलाव का सुझावः ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत के दौरान लक्ष्मण सिंह ने कहा कि वे लगातार गांवों में जल और जमीन को लेकर लोगों के बीच जागरूकता की दिशा में काम कर रहे हैं. लक्ष्मण सिंह का मानना है कि सरकारों को भी इस दिशा में अब अपनी सोच को बदलकर काम करना होगा. उनका सुझाव है कि मनरेगा को लेकर भी नये सिरे से काम करने की जरूरत है. उनका मानना है कि फिलहाल मनरेगा में होने वाले ज्यादातर काम नतीजों में तब्दील नहीं होते हैं , ऐसे में अगर गांवों में उनके मॉडल की तर्ज पर मनरेगा का काम होगा , तो कई समस्याओं को समाधान आसानी से निकल जाएगा.

Last Updated :Jan 29, 2023, 12:12 AM IST
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