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सुखा, गीला कचरा छांटने के लिए छात्रों ने बनाई अनोखी मशीन, केंद्र ने दिया आर्थिक सहयोग का भरोसा

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Published : Mar 22, 2023, 12:55 PM IST

Updated : Mar 22, 2023, 1:57 PM IST

बड़े शहरों में ठोस कचरे का निस्तारण और गीले-सूखे कचरे को अलग करना एक बड़ी समस्या बना हुआ है. इसी कारण ज्यादातर शहरों के आसपास कचरे के बड़े-2 पहाड़ देखने को मिलते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा के छात्रों ने एक मॉडल तैयार किया है. जो हर दिन करीब 50 टन कचरे का स्वत:ही निस्तारण कर सकता है.

कचरा निस्तारण का अनोखा मॉडल
कचरा निस्तारण का अनोखा मॉडल

जयपुर. बड़े शहरों में ठोस कचरे के मॉडर्न तरीके से निस्तारण और गीले-सूखे कचरे को अलग करने के लिए राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा के विद्यार्थियों ने एक अनोखा मॉडल तैयार किया है. इसे जयपुर में आईटी दिवस के मौके पर छात्रों ने प्रदर्शित किया है. इसे बनाने वाले युवाओं का दावा है कि इस मॉडल की मदद से एक दिन में 50 टन कचरे का निस्तारण किया जा सकता है. उन्हें केंद्र सरकार की ओर से इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पांच करोड़ रुपए की आर्थिक मदद की पेशकश भी की गई है. ऐसे में उनका यह नवाचार देश के अधिकांश बड़े शहरों की एक ज्वलंत समस्या का समाधान कर सकता है.

पहला पार्ट टैंक- इसमें जेसीबी की मदद से कचरा डाला जाता है. इसके भीतर एक बेल्ट लगातार घूमता रहता है. जिस पर गीला और सूखा कचरा एक साथ चलता रहता है.
दूसरा पार्ट कैमरा- इस मॉडल में एक हाई क्वालिटी का कैमरा लगा है. जो बेल्ट पर घूमते कचरे को उसकी श्रेणी के हिसाब से स्केन करता है और लगातार अपडेट रोबोटिक आर्म को भेजता रहता है.

तीसरा पार्ट रोबोटिक आर्म- रोबोटिक आर्म एक तरह से जेसीबी जैसा दिखने वाला पार्ट है जो कैमरे से मिलने वाले निर्देशों के अनुसार कचरे को उठाकर श्रेणीवार बने बॉक्स में डालता रहता है. यह प्रक्रिया बहुत तेजी से चलती रहती है. जिसमें कम समय में कचरे का निस्तारण हो जाता है.

मैनुअल कचरा अलग करना मानव जीवन से है खिलवाड़
इस प्रोजेक्ट से जुड़े कृष्णकांत यादव बताते हैं कि आमतौर पर बड़े आयोजनों में गीले कचरे और सूखे कचरे के लिए अलग-अलग डस्टबिन काम में नहीं लिए जाते हैं. यही समस्या घरों में भी सामने आती है. जहां गीले कचरे और सूखे कचरे के लिए एक ही डस्टबिन का उपयोग किया जाता है और कचरा परिवहन के लिए जो गाड़ियां आती हैं. हम उनमें हर तरह के कचरे को एक साथ डालते हैं. ये गाड़ियां कचरे को डंपिंग यार्ड में डाल देती है. जहां मानव श्रम द्वारा इसे अलग किया जाता है. इसका अभी तक कोई तकनीकी उपाय नहीं खोजा जा सका है. यह हम सभी के स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत खतरनाक है.

जमीन, हवा और पानी को नुकसान पहुंचाते हैं डंपिंग यार्ड
कृष्णकांत यादव का कहना है कि इसके साथ ही यह कचरा और डंपिंग यार्ड जमीन, पानी और हवा तक को प्रदूषित करता है. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमने यह सिस्टम इजाद किया है. जो हर दिन निकलने वाले कचरे का उसी दिन निस्तारण कर सकता है. वे बताते हैं कि हाथ से कचरा अलग करने की प्रक्रिया में हर दिन निकलने वाले कचरे का महज 12 फीसदी हिस्सा ही अलग हो पाता है. जबकि 88 फीसदी कचरा मिश्रित ही रह जाता है. इससे कचरे के ढ़ेर बन जाता है और बाद में वही ढ़ेर पहाड़ का आकर लेते जाते हैं. हमारा प्रयास है कि हर दिन निकलने वाले कचरे का उसी दिन निस्तारण हो जाए.

जयपुर जैसे शहर में लगाने पड़ेंगे 28 प्लांट
इस प्रोजेक्ट से जुड़े नकुल शर्मा ने बताया कि जयपुर में आबादी के लिहाज से 1395 टन कचरा रोजाना निकलता है. जबकि हमारा यह सिस्टम 50 टन कचरा हर दिन निस्तारित कर सकता है. ऐसे में जयपुर में इस तरह के 28 प्लांट लग जाए तो कचरा संग्रहण की समस्या से निजात मिल सकती है.

Last Updated : Mar 22, 2023, 1:57 PM IST
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