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विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन की नियुक्ति को चुनौती, हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

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Published : Oct 27, 2022, 8:30 PM IST

राजस्थान हाइकोर्ट ने (Rajasthan High Court) विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन पद पर रिटायर आईएएस डॉ. बीएन शर्मा की नियुक्ति को लेकर संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा है.

राजस्थान हाइकोर्ट
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जयपुर. राजस्थान हाइकोर्ट ने (Rajasthan High Court) विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन पद पर रिटायर आईएएस डॉ. बीएन शर्मा की नियुक्ति करने के मामले में सीएस, आरईआरसी सचिव, चयन बोर्ड व अन्य से चार सप्ताह में जवाब मांगा है. सीजे पंकज मिथल व जस्टिस एमएम श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश मुकुल भत्तानी की पीआईएल पर दिए.

याचिका में बताया कि विद्युत नियामक आयोग में चेयरमैन सहित दो मेंबर्स का कमीशन होता है. इनमें से मेंबर का एक पद टेक्निकल होता है, जिसकी योग्यता इंजीनियरिंग की डिग्री के साथ ही पावर जनरेशन, ट्रांसमिशन व डिस्ट्रिब्युशन में कार्य अनुभव है. राज्य सरकार ने मेंबर के खाली टेक्निकल पद पर बीएन शर्मा को 17 मई 2021 को नियुक्ति देते हुए कमीशन का चेयरमैन नियुक्त कर दिया. जबकि राजस्थान पावर रिफॉर्म एक्ट 1999 और इलेक्ट्रिक एक्ट 1999 के अनुसार आयोग में टेक्निकल सदस्य पद पर इंजीनियरिंग सहित अन्य योग्यताधारक की नियुक्ति ही हो सकती है. ऐसे में टेक्निकल मेंबर के पद पर बीएन शर्मा की नियुक्ति एक्ट 1999 के नियमों का उल्लंघन है.

पीआईएल में अदालत से बीएन शर्मा को चेयनमैन पद पर काम करने से तुरंत रोकने और उनकी नियुक्ति को (chairman of Electricity Regulatory Commission) अवैध मानते हुए रद्द करने का आग्रह किया है. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा है.

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परिवादी की इच्छा पर केस नहीं होता खत्म : एसीबी मामलों की विशेष अदालत क्रम-4 ने गणपति कंस्ट्रक्शन कंपनी को 2011 में एकल पट्टा जारी करने के मामले में कहा है कि परिवादी की इच्छा पर इस केस को खत्म नहीं किया जा सकता. इसमें विधिनुसार कार्रवाई जारी रहेगी. कोर्ट ने बताया कि परिवादी ने अर्जी में कहा है कि वे यह केस आगे नहीं चलाना चाहते हैं. लेकिन उसने प्रोटेस्ट पिटिशन पेश की थी और इसमें सीआरपीसी के अध्याय 15 के प्रावधान लागू होते हैं.

यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ क्लोजर रिपोर्ट दी है तो कोर्ट खुद निर्धारण कर सकता है कि क्लोजर रिपोर्ट मंजूर किए जाने योग्य है या नहीं. ऐसे में प्रार्थी की इच्छा का कोई अर्थ नहीं है. उसकी अर्जी पर केस खत्म नहीं हो सकता. कोर्ट ने यह निर्देश परिवादी रामशरण सिंह की उस अर्जी पर दिया जिसमें उन्होंने एडवोकेट खंडेलवाल को सभी केसों में पैरवी करने के लिए दिया वकालतनामा वापस लेने की बात कही थी.

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