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जानें क्यों भगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए बजाया चौदह बार डमरू

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Published : Sep 23, 2019, 8:05 AM IST

भगवान श‌िव का ध्यान करने मात्र से मन में जो एक छव‌ि उभरती है, वो एक वैरागी पुरुष की. इनके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में डमरु, गले में सर्प माला, स‌िर पर चंदन लगा हुआ है. कहने का मतलब है क‌ि श‌िव के साथ ये चीजें जुड़ी हुई हैं. क्या यह श‌िव के साथ ही प्रकट हुए थे या अलग-अलग घटनाओं के साथ यह श‌िव से जुड़ते गए. शिव से जुड़े इन तथ्यों के बारे में आज हम आपको बताएगें कि ये चीजें श‌िव जी से कैसे जुड़ी...

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जयपुर. शिव अनादि हैं, उनका ना कोई आरंभ है और ना कोई अंत. वह स्वयंभू हैं, उनका ना तो जन्म हुआ है और ना ही कभी उनकी मृत्यु संभव है. वे सृष्टि के विनाशक भी हैं और महादेव भी. वह रुद्र भी हैं और शांत चेहरे वाले बाबा भोलेनाथ भी. उनके क्रोध की ज्वाला से कोई बच नहीं सकता. उन्हें प्रसन्न करना भी अन्य देवी-देवताओं से कहीं ज्यादा आसान है.

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श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार बजाए डमरू

भगवान श‌िव के हाथों में डमरू आने की कहानी बड़ी ही रोचक है. सृष्ट‌ि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई. तब देवी ने अपनी वीणा के स्वर से सष्ट‌ि में ध्वन‌ि जो जन्म द‌िया. लेक‌िन यह ध्वन‌ि सुर और संगीत व‌िहीन थी. उस समय भगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए और इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ. कहते हैं क‌ि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है जो दूर से व‌िस्‍तृत नजर आता है लेक‌िन जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं. वह संकु‌च‌ित हो दूसरे स‌िरे से म‌िल जाता है और फ‌िर व‌िशालता की ओर बढ़ता है. सृष्ट‌ि में संतुलन के ल‌िए इसे भी भगवान श‌िव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे.

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वासुकी नाग श‌िव के है परम भक्त

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नाग को धारण करने के पीछे की कहानी

भगवान श‌िव के साथ हमेशा नाग होता है. इस नाग का नाम है- वासुकी. इस नाग के बारे में पुराणों में बताया गया है क‌ि यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है. सागर मंथन के समय इन्होंने रस्सी का काम क‌िया था, ज‌िससे सागर को मथा गया था. मान्यता है क‌ि वासुकी नाग श‌िव के परम भक्त थे. इनकी भक्त‌ि से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने इन्हें नागलोक का राजा बना द‌िया और साथ ही अपने गले में आभूषण की भांत‌ि ल‌िपटे रहने का वरदान द‌िया.

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चंद्रमा को धारण किया शिव ने अपने गले में

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चंद्रमा को श्राप से बचाने किया गले में धारण

श‌िव पुराण के अनुसार चन्द्रमा का व‌िवाह दक्ष प्रजापत‌ि की 27 कन्याओं से हुआ था. यह कन्‍याएं 27 नक्षत्र हैं. इनमें चन्द्रमा रोह‌िणी से व‌िशेष स्नेह करते थे. इसकी श‌िकायत जब अन्य कन्याओं ने दक्ष से की तो दक्ष ने चन्द्रमा को क्षय होने का शाप दे द‌िया. इस शाप बचने के ल‌िए चन्द्रमा ने भगवान श‌िव की तपस्या की. चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने चन्द्रमा के प्राण बचाए और उन्हें अपने श‌ीश पर स्‍थान द‌िया. जहां चन्द्रमा ने तपस्या की थी,वह स्‍थान सोमनाथ कहलाता है. मान्यता है क‌ि दक्ष के शाप से ही चन्द्रमा घटता बढ़ता रहता है.

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