गणगौर की सवारी को लूटने की है यहां अनूठी परंपरा, बंदूकों के साए में निकलती है सवारी

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Published : Mar 19, 2023, 12:39 PM IST

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राजस्थान का लोक पर्व गणगौर को नईनवेली दुल्हन व युवतियां सालों से मनाती आ रही हैं. आज भी गणगौर की पारंपरिक सवारी निकालने का दौर बदस्तूर जारी है. कहा जाता है कि इसमें सैकड़ों की संख्या में बंदूकधारी सुरक्षा के लिहाज से चलते थे फिर सवारी लूट ली जाती थी.

प्रसिद्ध गणगौर की सवारी को लूटने का रहा है इतिहास

जयपुर. राजस्थान की संस्कृति के साथ जुड़ा हुआ लोक पर्व गणगौर को नवविवाहिता और युवतियां सैकड़ों सालों से मनाती आ रही है. वहीं पारंपरिक गणगौर की सवारी निकालने का दौर आज भी जारी है. आज भले ही गणगौर की सवारी शाही अंदाज में और लोक कलाकारों के साथ निकलती है. लेकिन राजस्थान के इतिहास में गणगौर की सवारी को लूटने की कई घटनाएं दर्ज हैं. यही वजह है कि पहले गणगौर की सवारी के साथ सैकड़ों बंदूकधारी चला करते थे.

राजस्थान का प्रसिद्ध लोक पर्व गणगौर जिस पर नवविवाहिताएं और युवतियां ईसर और गणगौर की पूजा आराधना करती हैं. जिसे भगवान शिव और माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है. खास बात ये है कि इसी गणगौर के महापर्व पर जयपुर में प्रसिद्ध गणगौर की सवारी भी निकाली जाती है. जिसका अपना एक इतिहास भी रहा है. इसके बारे में जानकारी देते हुए इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि पूरे राजस्थान में जितने भी रजवाड़े और रजवाड़ों से जुड़े हुए जागीरदारों के ठिकाने थे, उन सब में गणगौर माता की पूजा होती आई है.

16 दिन गणगौर माता की होती है पूजा
होली के दूसरे दिन से 16 दिन तक गणगौर माता की पूजा करने की परम्परा है. 16 दिनों में 16 देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है. ये सभी ऐश्वर्य देने वाली देवियां है. खासतौर से सुहागिनें अपना सुहाग अमर करने के लिए और युवतियां अच्छा वर पाने की लालसा में माता की पूजा करती हैं. जयपुर में गणगौर का पर्व आमेर रियासत काल से मनाया जा रहा है. आमेर में अभी भी गणगौर की सवारी निकलती है. इसी तरह जयपुर में भी गणगौर माता की सवारी निकलती है.

गणगौर की सवारी
गणगौर की सवारी

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गणगौर माता यहां अकेली हैं, यहां ईसर जी नहीं है. ईसर जी के बारे में लोग कहते हैं कि यहां के ईसर जी किशनगढ़ रियासत में चले गए थे. कोई कहता है उन्हें लूट कर ले गए थे, कोई कहता है स्वत: चले गए थे. लेकिन जयपुर के विद्वान पंडित आज मानते हैं कि यहां अकेली गणगौर हैं, जिसे वो लक्ष्मी स्वरूपा मानते हैं. महादेवी के रूप में उनका पूजन करते हैं. उनको घर की लक्ष्मी बताते हुए घर की घर में रखने की बात कहते हैं. इसलिए जयपुर की गणगौर को कभी भी विदा नहीं किया जाता है.

एक मन मेहंदी घोली जाती थी, महिलाएं गाती थीं गणगौर के गीत
शेखावत ने बताया कि पहले गणगौर माता की जनाना ड्योढ़ी में महारानियां और उनकी सेविकाएं पूजा करती थीं. गणगौर के समय एक मन मेहंदी घोली जाती थी. जयपुर शहर की अन्य महिलाएं वहां जाकर गणगौर के गीत गाती थी. उन्होंने बताया कि 3 दिन तक ये पर्व मनाया जाता है. पहले दिन सिंजारा, दूसरे दिन गणगौर और तीसरे दिन बूढ़ी गणगौर का आयोजन होता है. चांदनी चौक में ब्रजनिधि का मंदिर है, सवाई प्रताप सिंह के समय ब्रजनिधि का विवाह हल्दिया हाउस में राधा जी से किया गया था.

हल्दिया परिवार आज भी सिंजारा लेकर ब्रजनिधि के मंदिर में आते हैं. जयपुर में आज भी घरों में लोग अपनी बेटियों के यहां पर सिंजारा भेजते हैं और उनके स्वस्थ-समृद्ध रहने की कामना करते हैं. राजस्थान में गणगौर को लूटने की भी घटनाएं होती थी. उस घटना को उत्साही राजपूत युवक अंजाम दिया करते थे. वो गणगौर को लूटना और अपने रियासत में लाना बहुत ही शुभ मानते थे. वो मानते थे कि वहां की गणगौर को लूट लिया तो माता की समृद्धि आ गई, इसलिए ये लूट का खतरा रहता था.

राजस्थान का लोक पर्व गणगौर
राजस्थान का लोक पर्व गणगौर

यही वजह है कि गणगौर की सवारी जब निकलती थी तो सवाई मान गार्ड के अलावा सैकड़ों बंदूकधारी और घुड़सवार चला करत थे. चारों तरफ तोपों और सेना का कड़ा पहरा रहता था. इतिहास से दर्ज है कि जोबनेर में सिंघपुरी का राम सिंह खंगारोत मेड़ता की गणगौर को लूट कर ले आया था. इसी तरह सीकर के जय-विजय नाम के राजपूत युवकों ने भी मेड़ता की गणगौर को लूटने का संकल्प लिया था. इसी तरह जालौर का जसराय और शेरगढ़ का हरराज पंवार ने बूंदी की गणगौर को लूटा था.

गणगौर और तीज पर बुलाए जाते थे विशेष मेहमान
राजस्थान में गणगौर को लूटने की घटनाओं के कारण जयपुर की गणगौर को जनानी ड्योढ़ी से भारी सुरक्षा बल के साथ बाहर निकाला जाता था. गणगौर और तीज के मौके पर किसी दूसरे रियासत के राजा को विशिष्ट मेहमान बनाकर बुलाया जाता था. 1875 के समय यहां सवाई राम सिंह का राज था, तब ग्वालियर के महाराजा सिंधिया को गणगौर के मौके पर बुलाया गया था. 1960 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह भी सवाई माधो सिंह के बुलाने पर जयपुर आए थे. इसी तरह बूंदी के राजा के आने का उल्लेख भी मिलता है. इनके लिए बादल महल में संगीत की महफिल भी सजा करती थी.

राजस्थान का लोक पर्व गणगौर
राजस्थान का लोक पर्व गणगौर

इतिहासकार जितेंद्र सिंह मानें तो गणगौर की पूरे राजस्थान में पहले भी सवारियां निकलती थी, आज भी सवारी निकलती है. अंतर ये है कि पहले रियासतों की तरफ से गणगौर की सवारी निकाली जाती थी. अब किशनगढ़ रेनवाल की गणगौर को रथ में बैठा कर गांव के लोग और वहां की समिति सवारी निकालती है. सीकर की गणगौर को वहां बनी सांस्कृतिक समिति की ओर से निकाला जाता है. जयपुर में ही जयसिंह पुरा खोर में वहां के नागरिक मिलकर गणगौर की सवारी निकालते हैं.

आमेर की गणगौर प्रशासन के सहयोग से निकाली जाती है. खाचरियावास की गणगौर को ग्रामीण लोग मिलकर निकालते हैं. जयपुर में पर्यटन विभाग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ गणगौर की सवारी निकालता है. ये ठीक है कि गणगौर का राजाओं से जुड़ाव था, लेकिन गणगौर आम जनता से जुड़ा हुआ त्योहार है. इसलिए आज भले ही राज घरानों के चेहरों की जगह देसी विदेशी पर्यटकों ने ले ली है. परंतु गणगौर की सवारी निकालने की परंपरा वर्तमान में भी जारी है.

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