जयपुर. राजधानी जयपुर में हुए सिलसिलेवार बम ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर पूर्ण रूप से रोक लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रदेश की गहलोत सरकार को निशाने पर लिया. राजे ने कहा कि गुलाबी नगर को रक्तरंजित करने वाले आरोपियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गहलोत सरकार की ढंग से पैरवी नहीं करने का परिणाम है.
सरकार के इशारे पर हुआ ! : वसुंधरा राजे ने कहा कि इस केस में तो सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ताओं ने 45 दिनों तक पैरवी ही नहीं की. कहीं सरकार के इशारे पर तो ऐसा नहीं हुआ ? आज उन परिवारों पर क्या बीती होगी जिनके अपनों ने उस वक्त हुए धमाकों में जान गंवाए थे. किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी का भाई उससे जुदा हुआ. किसी का पिता, किसी की मां, किसी का बेटा इस हादसे में चल बसा. क्या उनकी चीखें इस सरकार के कानों तक नहीं पहुंच रही. कहीं सरकार ने तुष्टिकरण के चलते तो ऐसा नहीं किया ? पूर्व सीएम ने आरोप लगाया कि इस प्रकरण में सरकार दोषी है.
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मई, 2008 में गुलाबी नगर को रक्त रंजित कर 80 लोगों की जान लेने और कई लोगों को अपाहिज बनाने वाले जयपुर बम ब्लास्ट मामले में कांग्रेस सरकार ने ढंग से पैरवी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उसी का परिणाम है।#JaipurBlasts #Rajasthan #इंसाफ़_माँगे_राजस्थान
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— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) May 17, 2023मई, 2008 में गुलाबी नगर को रक्त रंजित कर 80 लोगों की जान लेने और कई लोगों को अपाहिज बनाने वाले जयपुर बम ब्लास्ट मामले में कांग्रेस सरकार ने ढंग से पैरवी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उसी का परिणाम है।#JaipurBlasts #Rajasthan #इंसाफ़_माँगे_राजस्थान
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सुप्रीम कोर्ट का ये आया फैसला : जयपुर शहर में 13 मई 2008 को हुए सिलसिलेवार बम ब्लास्ट केस में 29 मार्च को राजस्थान हाईकोर्ट ने चार आरोपियों की फांसी की सजा रद्द कर दी थी. साथ ही उन्हें दोषमुक्त भी कर दिया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर पूरी तरह से रोक लगाने से इनकार कर दिया है. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने मामले में अनुसंधान करने वाले एटीएस के अफसरों के खिलाफ डीजीपी को कार्रवाई करने वाले हाईकोर्ट के निर्देश पर भी रोक लगा दी है. साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को मामले में दोषमुक्त किए आरोपी मोहम्मद सैफ और सैफुर्रहमान के नोटिस की तामील कराने के लिए कहा है.
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ऐसे गम्भीर प्रकरण को सरकार ने जान बूझकर हल्के में लिया, वरना निचली अदालत का फैसला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बरकरार रहता। इस केस में तो सरकार के अतिरिक्त महाअधिवक्ताओं ने 45 दिनों तक पैरवी ही नहीं की। ऐसे में संशय है कि कहीं सरकार के इशारे पर तो ऐसा नहीं हुआ ?#JaipurBlasts…
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