जयपुर. प्रदेश में राइट टू हेल्थ बिल पर बवाल लगातार जारी है. निजी अस्पतालों की ओर से किए जा रहे विरोध के बीच अब सिविल सोसायटी बिल के पक्ष में उतर आई है. मंगलवार को विभिन्न जन संगठनों ने इस बिल को आम जनता के लिए जरूरी बताते हुए विरोध करने वालों को निशाने पर लिया. सामाजिक संगठनों ने कहा कि अगर निजी चिकित्सकों को इस बिल से कोई आपत्ति है तो आकर बताएं. बिल को लागू नहीं किए जाने की मांग करना गलत है.
निजी चिकित्सक हठधर्मिता अपना रहे हैं : राजस्थान के 100 से अधिक नागरिक समाज संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान, SR अभियान और PUCL राजस्थान के सदस्यों ने निजी चिकित्सकों के राइट टू हेल्थ बिल को लेकर किए जा रहे विरोध पर आपत्ति दर्ज कराई है. जन स्वास्थ्य अभियान के कन्वीनर डॉ. नरेंद्र गुप्ता ने कहा कि कानून की आवश्यकता है इसलिए है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोग गांव-कस्बों में रहते हैं जिनकी आमदनी बहुत कम है. जिस तरह का इलाज उनको चाहिए उनको नहीं मिल रहा है. इसीलिए इस कानून को बनाने की आवश्यकता है.
पढ़ें. Right to health Bill : डॉक्टर सड़क पर तो प्रवर समिति सदन में कर रही मंथन, सदस्य बोले बिल आएगा
गुप्ता ने कहा कि एक बड़ा निजी वर्ग इस बिल का विरोध कर रहा है. गुप्ता ने कहा कि इन्हीं आम जनता की आवाज के कारण राजस्थान सरकार इस बिल को लेकर आ रही है. उन्होंने कहा कि जिस आपातकालीन सेवा की बात की जा रही है वह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. इसके लिए सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें उसका पेमेंट मिलेगा.
7 करोड़ जनता के लिए बना कानून : सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा कि निजी चिकित्सक विरोध क्यों कर रहे हैं, ये समझ से परे है. जिस बात को लेकर आपत्ति है, वह बताएं. लेकिन ये कहना कि बिल नहीं आना चाहिए ये नहीं हो सकता. ये बिल आम जनता की आवाज पर लाया गया बिल है, कानून बनेगा तब ही तो स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होंगी. निखिल डे ने कहा कि निजी चिकित्सकों के कोई सुझाव हैं तो आकर दें. उसमें संसोधन किया जाएगा, लेकिन चिकित्सा सेवाएं ठप कर इस तरह ब्लैकमेल नहीं कर सकते. 7 करोड़ जनता के लिए कानून बन रहा है. स्वास्थ्य कानून बनना जनता के लिए जरूरी है.
गैर संवैधानिक मांग : सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने कहा कि अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं हर नागरिक का अधिकार है. ये कानून इसी की बात करता है. निजी चिकित्सकों के विरोध से हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जो मांग कर रहें हैं कि कानून नहीं आए, यह गैर संवैधानिक मांग है. संविधान में सरकार को अधिकार है कि वो आम जनता के लिए कानून बनाए. बिल का विरोध करना मतलब आम आदमी के स्वास्थ्य के अधिकारों का हनन करना है. ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 47 में मिले हुए हैं.
पैसे लूटने का जरिया बना रखा है : एसआर अभियान की राज्य समन्वयक छाया पंचौली ने कहा कि जब भी कोई ऐसा कानून आता है जो सिस्टम को और बेहतर करने और बदलने की बात करता है तो उसका विरोध भी होता है. एक लंबे संघर्ष के बार राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल सदन में पेश हुआ है. अब जो निजी चिकित्सक विरोध कर रहे हैं वो सिर्फ इसलिए क्योंकि जो पैसों की लूट उन्होंने मचाई हुई है उस पर अंकुश लगेगा.
उन्होंने कहा कि राइट टू हेल्थ बिल भी पूरी तरीके से स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए है. स्वास्थ्य एवं पारदर्शिता कैसे हो, आम जनता को ज्यादा लाभ कैसे मिले, सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर कैसे किया जाए इसके लिए ये कानून जरूरी है. छाया ने कहा कि बिल के पेश होने के साथ ही निजी चिकित्सक घबरा गए हैं. हमने देखा कि किस तरह से कोरोना के टाइम पर पैसे की लूट मचाई थी. जिससे जितना हो सका उतना पैसा लूट लिया, क्योंकि नियम कानून नहीं थे. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए यह पहला कदम है.
वो कुछ गिनती के हैं, हम 7 करोड़ की आवाज : छाया पंचौली ने कहा कि जिस आपातकालीन सेवाओं के खर्चे को लेकर विरोध हो रहा है, उसे सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि वो इसका खर्च वहन करेंगे. फिर भी विरोध हो रहा है तो इससे समझ में आता है कि पीछे कोई बैकबोन है जो नहीं चाहता कि इस बिल को लाया जाए. उन्हें इस बात को समझना होगा कि वह कुछ लोग हैं, जबकि इस बिल को लाए जाने के समर्थन में 7 करोड़ की जनता है. आम जनता से बने हुए संगठन भी पीछे नहीं रहेंगे. हम भी जल्दी उनके एक्शन को देखकर अपने आंदोलन की रणनीति तय करेंगे, ताकि सरकार पर दबाव बने और बिल जल्द से जल्द सदन में पास हो.