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Special: कोरोना काल में बूंदी के प्रसिद्ध लाख के चूड़े के कारोबार पर भी पड़ी कोरोना की मार, हजारों परिवार परेशान

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Published : Sep 19, 2020, 2:33 PM IST

कोरोना की मार बूंदी के प्रसिद्ध लाख के चूड़े के कारोबार पर भी पड़ी है. इन दिनों कोरोना की मार के चलते बाजारों में लाख के चूड़े की चमक फीकी पड़ चुकी है. बाजार में लाख के चुड़े की डिमांड नहीं हो रही है. इसका असर मजदूरों और व्यापारियों की आजीविका पर पड़ रहा है. लाख के कारोबर से जुड़े हजारों परिवार परेशान हो रहे हैं.

लाख का चूड़ा, चूड़े का कारोबार, Bundi News
बूंदी में कोरोना महामारी की वजह से ठप पड़ा लाख के चूड़े का कारोबार

बूंदी. देश में बूंदी के लाख का चूड़ा प्रसिद्ध है. बूंदी में तैयार होने वाले लाख के चूड़े की भारी मात्रा में प्रतिवर्ष डिमांड रहती है, लेकिन इन दिनों कोरोना काल के चलते इस लाख के चूड़े की खनक और चमक फीकी हो गई है. कोरोना काल में कच्चे माल की कीमत बढ़ गई है. इसके चलते ये कारोबार कोरोना काल की भेंट चढ़ता हुआ नजर आ रहा है. लगातार कच्चा माल भंडारण होने के चलते उसकी खपत भी अनिवार्य है, लेकिन तैयार किए हुए सामान की खपत नहीं हो पा रही है. ऐसे में लाख के चूड़े कारोबारियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.

बूंदी में कोरोना महामारी की वजह से ठप पड़ा लाख के चूड़े का कारोबार

बूंदी के चौहान गेट, सदर बाजार और मीरा गेट पर लाख के चूड़े और चूड़ियां बनाने का काम युद्ध स्तर पर चलता है. यहां पर ही बड़ी तादाद में चूड़े की बिक्री होती है. इस लाख के चुड़े को बनाने के लिए पुरुष मजदूर दिन भर मजदूरी कर लाख का चूड़ा बनाते हैं, जबकि इसकी डिजाइन महिला मजदूर करती हैं. पुरुष मजदूर चूड़े की साइज तैयार करने के बाद इन्हें डिजाइन के लिए महिला मजदूरों के पास भेजे देते हैं. महिला मजदूर तरह-तरह के कसीदे और नग लगाकर चूड़े को आकार देती हैं.

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लॉकडाउन से पहले तक बूंदी में लाख का चुड़े की बिक्री जारी थी. कुछ व्यापारी लाख के चूड़े को खरीदने के लिए आए थे. लेकिन, इसके बाद ना तो व्यापारी आए और ना ही कोई खरीदार दुकान पर चूड़े को खरीदने के लिए पहुंचा. ऐसे में दुकान पर खरीदार और व्यापारी नहीं आने से लाख के चूड़े वाले व्यापारियों और मजदूरों के घर में खाने के लाले पड़ गए हैं. वर्तमान में जो सामान व्यापारियों के पास पड़ा है, उसे ही मजदूर कम कीमत में बना रहे है और मजदूरों की मेहनत सामान्य दिनों की ही लग रही है. जो मजदूर पहले एक दिन में अपनी मजदूरी से घर का खर्च चला लेता था, वो अब 3-4 दिन की मजदूरी के बाद एक दिन का खर्चा चला पा रहा है.

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सभी राज्यों में अपनी चमक बिखेरता है बूंदी के लाख का चूड़ा
गौरतलब है कि बूंदी शहर की गलियों में युद्ध स्तर पर तैयार होने वाला लाख का चूड़ा देश के अलग-अलग राज्यों में अपनी डिमांड रखता है. सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश और गुजरात में इस चूड़ी की डिमांड रहती है. यहां पर व्यापारी अक्सर बूंदी के व्यापारियों को ऑर्डर देकर थोक में इस लाख के चूड़े को ले जाते थे और अपने राज्यों में अच्छे खासे दाम में बेचते हैं. चूड़े के व्यापारी महमूद गोरी कल्लन बताते हैं कि बूंदी के लाख के चूड़े की डिमांड पूरे देश में रहती है. सुहागिन महिलाओं के लिए चूड़ा शादी के अवसर पर शुभ माना जाता है. इसके चलते ही इसकी डिमांड रहती है. साथ ही कई धार्मिक परंपराओं के अनुसार भी चुड़े को शुभ माना जाता है. इसलिए लोग इसे खरीदते हैं. बूंदी में जगह-जगह पर इस चूड़े का निर्माण कराया जाता है. मजदूर इस चूड़े का निर्माण करते हैं और हम उन मजदूरों से चूड़ा बनवाकर उन्हें मजदूरी देते हैं. यहां आकर बाहर के व्यापारी ले जाते हैं. बूंदी के चूड़े की सामान्य कीमत 250 से लेकर 2000 रुपये तक रहती है.

कोरोना काल में आर्थिक परेशानी झेल रहे व्यापारी और मजदूर
कोरोना काल में बूंदी के लाख के चूड़े के व्यापारियों और मजदूरों को आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ रही है. मजदूर सिकंदर बताते हैं कि कोरोना काल में हमें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा है. हमारा घर खर्च तक नहीं निकल पा रहा है. मेहनत वही है, लेकिन मजदूरी ना के बराबर है. पहले सामान्य दिनों में हमें काम मिल जाता था. लेकिन, अब कई जगहों पर चूड़ा बनाने वाली भट्टियां बंद हो गई हैं. जो गिनी-चुनी भट्टियां हैं, वहां पर कार्य चल रहा है. वहीं, व्यापारी बताते हैं कि बूंदी में करीब 7000 परिवार इस बूंदी के लाख के चूड़े व्यापार से जुड़े हुए हैं. कोरोना काल में कुछ भी कमाई हमारी नहीं हुई है. ना मजदूरों के लिए पैसे हैं और ना हमारे घर के लिए पैसे हैं. दुकान खाली-खाली सी लगती है. अब दुकान पर ग्राहक नहीं आ रहे है. इस वक्त सामान्य दिनों में लोगों की भीड़ रहा करती थी. शादी-समारोहों और त्योहारों पर खूब खरीदारी होती थी. लेकिन, कोरोना काल ने सभी त्योहारों और शादी-समारोहों के रंगों को फीका कर दिया है और हमारी दुकानें सूनी कर दी है. व्यापारी बताते हैं कि अगर सरकार शादी-समारोहों में लोगों की संख्या बढ़ा दे तो हमें कुछ फर्क पड़ सकता है. इससे खरीदारी भी बढ़ेगी. साथ ही शादी-समारोहों से जो लोग जुड़े होते थे, उनको फायदा भी मिलेगा.

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