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Special: बूंदी के लड्डू की फीकी पड़ी मिठास...जानें क्या है कारण?

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Published : Nov 3, 2020, 2:13 PM IST

बूंदी का नाम आए और यहां कि सबसे प्रसिद्ध मिठाई का नाम न आए, ये हो ही नहीं सकता. शुद्ध घी में बना, अपने स्वाद और खुशबू के लिए देश में प्रसिद्ध लड्डू अब बूंदी में ही अपनी पहचान खोता जा रहा है. जिस लड्डू के बिना कोई शुभ कार्य सफल नहीं माना जाता था, आज ये लड्डू भोजन की थाली से गायब हो गया है.

Bundi ladoos, बूंदी न्यूज
बूंदी के लड्डू की फीकी पड़ी मिठास

बूंदी. छोटी काशी के नाम से विख्यात बूंदी शहर की एक विशेष मिठाई अपने स्वाद के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. बूंदी का नाम लेते ही बूंदी के लड्डू का जिक्र न हो, ये हो ही नहीं सकता. शादी हो, विदाई हो या रिजल्ट की खुशी बूंदी का लड्डू के बिना खुशियां की मिठास अधूरी मानी जाती थी. कभी मिठाई में सबसे ज्यादा बिक्री होने वाला ये लड्डू अब बूंदी में ही अपनी पहचान खो रहा है.

बूंदी के लड्डू का फीका हुआ स्वाद

बूंदी के हर घर में, हर दुकानों पर बनने वाला बूंदी का लड्डू पूरे देश प्रदेश में अपनी अलग पहचान रखता है. यह लड्डू देसी घी सहित अन्य सामग्रियों के साथ बनाया जाता है. बूंद से बनने वाला लड्डू नुक्ती के रूप में भी खाने में लिया जाता है और उसका लड्डू भी बनाया जाता है. बूंदी शहर में हर बाजारों में बूंदी के लड्डू की दुकान हुआ करती थी और राजस्थान सहित देश के अलग-अलग राज्यों में इसके लिए खरीदारी की जाती थी. यहां से कारीगर बूंदी के लड्डू को बनाने के लिए बाहर आया और जाया करते थे.

अब 1-2 दुकानें में मिलता है ये लड्डू

राजा महाराजा के जमाने से भोजन की थाली में परोसे जानेवाले और अन्य समारोह में बड़े चाव से खाये जाने वाला ये लड्डू आज शहर की दुकानों से गायब होता जा रहा है. अपनी मिठास और खुशबू के कारण मीठा खानेवालों की पहली पसंद बूंदी का लड्डू की मिठास फीकी हो गई है. शहर में कुछ 1- 2 दुकानें ऐसी रह गई हैं, जहां लड्डू मांग के अनुरूप लोगों को उपलब्ध हो जाता है.

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अब गिनी चुनी दुकानों पर ही लड्डू उपलब्ध

बुजुर्ग बताते हैं कि लड्डू दो तीन प्रकार से बनाए जाते थे. किसी लड्डू में नुक्ति मोटी रखी जाती थी तो किसी की बारीक नुक्ती उसकी अलग पहचान दर्शाती थी. यहां तक कि बूंदी के राजा भी इस व्यंजन को अपनी भोजन में शामिल करते थे और प्रजा को भी इन लड्डू को वितरित करने का काम किया जाता था लेकिन वक्त के साथ यह लड्डू अब अपने फीके से हो गए हैं.

वर्तमान पीढियों ने किया नजरअंदाज

यहां तक कि आने वाली पीढ़िया इस लड्डू को अपने व्यंजन में शामिल नहीं कर पा रही है. लड्डू बनाने वाले कारीगर बताते हैं कि केवल सामान्य तौर पर दुकान पर यह लड्डू बन जाते हैं लेकिन इनकी ज्यादा डिमांड अब नहीं है. पहले शादी विवाह में बूंदी के लड्डू के बिना काम ही नहीं चलता था. वहीं हर दुकान पर लड्डू मिल जाता था लेकिन आज ऑर्डर पर ही यह लड्डू बनाया जा रहा है. साथ में वह बताते हैं कि कोरोना काल मे इस लड्डू की मांग भी न के बराबर हो गई है.

राजाओं के जमाने में बूंदी में हुआ करती थी लड्डू खाओ प्रतियोगिता

छोटी काशी बूंदी को यहां के सांस्कृतिक कार्यक्रमों और अनूठे रीति रिवाज के लिए जाना जाता है. लड्डू की क्या अहमियत बूंदी के लिए थी, यह कहानी सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे. राजाओं के जमाने से ही बूंदी का लड्डू फेमस रहा है.

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इतिहासकार पुरषोत्तम पारीक बताते हैं कि बूंदी के राजा लड्डू के प्रति आमजन को जोड़ने के लिए जाने जाते थे. वह बताते हैं कि जब भी महोत्सव होता था तो बूंदी में लड्डू खाओ प्रतियोगिताएं करवाई जाती थी. जहां पर बूंदी की प्रजा राजा के इस कार्यक्रम में पहुंचती थी. पुरुषोत्तम लाल पारीक बताते हैं कि बूंदी के इस परंपरा में 100-100 लड्डू प्रतिभागी खा जाते थे और इन को टक्कर देने के लिए बड़े-बड़े महारथी लड्डू खाने के इस प्रतियोगिता में बाहर से आते थे और भाग लेते थे.

स्वास्थ्य के लिए लाभदायक

वहीं पुरुषोत्तम लाल पारीक बूंदी के लड्डू की खासियत बताते हुए कहते हैं कि लड्डू खाने से किसी प्रकार की शरीर में परेशानी नहीं होती है, ना ही कोई बीमारी इससे उत्पन्न होने का कारण बनता है. वे यह भी कहते हैं कि बूंदी का लड्डू स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है.

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घी से बनाया जाता है बूंदी का लड्डू

जानकार अनंत मूंदड़ा कहते हैं कि हाड़ौती में बूंदी के लड्डू की अलग ही मिठास रहती थी और शादी ब्याह में इस लड्डू को शगुन के तौर पर उपयोग में लिया जाता था. किसी घर में शादी होती थी तो मेहमान नवाजी से लेकर मेहमान की विदाई तक इस लड्डू की अलग ही मिठास रहती थी. अब कई मिठाईयां आने से इसे कोई शादी ब्याह में उपयोग लेना तक पसंद नहीं करता.

महंगाई ने भी बूंदी के लड्डू का स्वाद बिगाड़ा

किसी समय बूंदी में यह लड्डू काफी सस्ते दामों में मिलता था और लोग इसे खा लेते थे लेकिन वक्त के साथ इस लड्डू की कीमतों ने स्वाद बिगाड़ने का काम किया है क्योंकि जानकार बताते हैं कि देसी घी में बूंदी का लड्डू जब तक नहीं बनता, तब तक उसका स्वाद आधा अधूरा रहता है. देसी घी की महंगाई, बेसन और ड्राई फ्रूट्स की महंगाई की वजह से हर दिनों में बूंदी के लड्डू के दाम बढ़ते चले गए. आज 200 रुपए की कीमत में केवल 500 ग्राम ही लड्डू मिल पाते हैं. वहीं आने वाले वक्त में महंगाई और बढ़ी तो बूंदी के लड्डू की और कीमतें बढ़ती चली जाएगी.

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लड्डू बनाते कारीगर

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ऐसे में बढ़ती महंगाई के कारण कारीगर इसे बनाने से कतराते हैं. साथ ही इसे बनाने के लिए मजदूरों को भी भुगतान करना पड़ता है. इसकी जगह पर दूसरी मिठाइयों ने अपना कब्जा जमा लिया है.

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