रोते-रोते बोले परिजन- जेके लोन अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं मिलने से तड़प-तड़प कर बेटे ने तोड़ा दम

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Published : Jan 3, 2020, 10:23 PM IST

JK Lone Hospital kota, Death due to no oxygen

कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. 33 दिनों में अब तक 106 बच्चों ने दम तोड़ दिया. बूंदी में भी जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का दुखों का पहाड़ टूटा है. अस्पताल में दम तोड़ने वाले बच्चों में दो बच्चे बूंदी के भी है. जिसमें एक परिवार ने अस्पताल प्रशासन पर बड़ा आरोप लगाया है.

केशवरायपाटन (बूंदी). बूंदी जिले के दो बच्चों की मौत कोटा के जेके लोन अस्पताल में हुई हैं. मृतक के परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर घोर लापरवाही का आरोप लगाया है. बूंदी के केशवरायपाटन के ठीमली गांव के परिवार का चिराग जेके लोन अस्पताल ने बुझा दिया. गांव का 8 वर्षीय बालक जोगेंद्र मीणा भी अस्पताल व्यवस्थाओं और चिकित्सकों की लापरवाही की भेंट चढ़ गया.

जेके लोन अस्पताल ने छीनी परिवार की खुशियां

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परिजनों का आरोप, ऑक्सीजन नहीं होने से मौत
जोगेंद्र के परिजनों का आरोप है कि 22 दिसंबर को जब बच्चे को कोटा की जेके लोन अस्पताल में लेकर गए थे, तो वहां देर रात्रि ऑक्सीजन नहीं होने के चलते बच्चे ने तड़प-तड़प दम तोड़ दिया, बताया जा रहा है कि जिस दिन बच्चे को भर्ती करवाया था, उसी रात को बच्चे की मौत हो गई. परिजनों ने बताया कि अस्पताल में बड़ी लापरवाही है और इसी लापरवाही के चलते उन्होंने अपने बेटे को खो दिया.

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8 वर्षीय जोगेंद्र का गुनहगार जेके लोन अस्पताल!
परिजन बताते हैं कि जोगेंद्र मीणा कक्षा 4 का छात्र था और पढ़ाई में काफी होनहार था और उसकी बुआ के यहां पर वह रहकर पढ़ाई कर रहा था, वैसे तो जोगेन्द्र मीणा ठीमली गांव का निवासी था, लेकिन ठीमली गांव में स्कूल नहीं होने के चलते वह उसके बुआ के पास जालेड़ा गांव में रहकर पढ़ाई कर रहा था. ऐसे में अचानक से उसको 22 दिसंबर को बुखार आया और परिजन उसे 22 दिसंबर की रात को कोटा के जेके लोन अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां पर देर रात्रि लापरवाही के चलते ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण उसकी मौत हो गई. जैसे ही 8 वर्षीय जोगेंद्र की मौत हुई तो, परिवार में मातम छा गया और सभी का रो रो कर बुरा हाल हो गया.

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पिता मजदूरी कर चलाते है घर का खर्चा
जोगेंद्र के पिता नन्द बिहारी मजदूरी करते हैं, उनके दो पुत्र थे और पहला पुत्र जोगेंद्र मीणा था. जिस की तबीयत खराब होने के चलते मौत हो गई और समय पर उसका इलाज नहीं हो पाया और आज उनके बीच में नहीं है. महज 24 घंटे में आए बुखार के बाद गरीब परिवार के परिजन उसे लेकर जेके लोन अस्पताल पहुंचे, जहां अस्पताल की लापरवाही ने उने कुल के दीपक को बुझा दिया.

Intro:केशवरायपाटन - घर के जिस आंगन में बालक खेला करता था आज उसी आंगन में बालक जोगेंद्र की फोटो पर माला टकी हुई है और जिस आंगन में उस बालक की हंसी गूंजा करती थी ,वहां आज परिजनों की चीख पुकार सुनाई दे रही है, जिसका जिम्मेदार कोटा का जे के लोन अस्पताल है। बूंदी जिले के दो बच्चो की मौत कोटा जेके लोन अस्पताल में हुई हैं। मृतक के परिजनों ने घोर लापरवाही का आरोप लगाया है। Body:केशवरायपाटन - कोटा अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है । ऐसा ही मामला केशवरायपाटन के ठीमली गांव का है जहां पर जोगेंद्र मीणा नामक एक 8 वर्षीय बालक भी व्यवस्थाओ सहित चिकित्सको लापरवाही के चलते मौत की नींद सो गया। परिजनों का आरोप है कि 22 दिसंबर को जब बच्चे को कोटा की जैके लोन अस्पताल में लेकर गए थे तो वहां देर रात्रि ऑक्सीजन नहीं होने के चलते बच्चा तड़प तड़प कर मर गया और आखिरकार जिस दिन भर्ती करवाया था उसी रात को बच्चे ने दम तोड़ दिया । परिजनों ने बताया कि अस्पताल में बड़ी लापरवाही है और इसी लापरवाही के चलते उन्होंने अपने होनहार पुत्र को खो दिया । परिजन बताते हैं कि जोगेंद्र मीणा कक्षा 4 का छात्र था और पढ़ाई में काफी होनार था और उसकी बुआ के यहां पर वह रहकर पढ़ाई कर रहा था । वैसे तो जोगेन्द्र मीणा ठीमली गांव का निवासी है लेकिन ठीमली गांव में स्कूल नहीं होने के चलते वह उसके बुआ के पास जालेडा गावँ में रहकर पढ़ाई कर रहा था । ऐसे में अचानक से उसको 22 दिसंबर को बुखार आया और परिजन उसे 22 दिसंबर की रात को कोटा के जै के लोन अस्पताल लेकर पहुंचे ,जहां पर देर रात्रि लापरवाही के चलते ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण उसकी मौत हो गई । जैसे ही 8 वर्षीय जोगेंद्र की मौत हुई तो, परिवार में मातम छा गया और सभी का रो रो कर बुरा हाल हो गया । यहां आपको बता दें कि जोगेंद्र के पिता नन्द बिहारी मजदूरी करते हैं ,उनके दो पुत्र थे और पहला पुत्र जोगेंद्र मीणा था जिस की तबीयत खराब होने के चलते मौत हो गई और समय पर उसका इलाज नहीं हो पाया और आज उनके बीच में नहीं है ।
Conclusion:परिवारजनों के अनुसार पिता नंद बिहारी मजदूरी करते है और मजदूरी कर अपना परिवार का भरण पोषण करता है। वही पढ़ाई के लिए बालक को अपने बुआ के यहां रख रखा था ,और वह कक्षा चार में अध्यनरत था इस पढ़ाई के हर वर्ष के नए पड़ाव के साथ पिता व बुआ फूफा का नया सपना होता होगा ,कि उसे पढ़ा लिखा कर कोई अधिकारी बनाएंगे या पुलिस फौज में भेजेंगे लेकिन सब चकनाचूर हो गए। महज 24 घंटे में आए बुखार के बाद गरीब परिवार के परिजन उसे लेकर जे के लोन अस्पताल पहुंचे , जहां से उसे जिंदा लाने की उन्होंने उम्मीद तो करी ,लेकिन वहां से वह 8 वर्षीय अपने लाल को जिंदा नहीं ला सके, और वह मौत की नींद सो गया। उस आंगन को सुना कर गया जहां उस आंगन में वह खेला खुदा करता था। और छोटे से बड़ा हुआ था. आज उसी आंगन में परिजनों की चीख पुकार सुनाई दे रही है. जिसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ उसके परिजन और माता-पिता जेके लोन अस्पताल को ही ठहरा रहे हैं ,

बाईट :- धर्मराज... परिजन
बाईट :- लोकेश मीणा... फूफा
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