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कल्ला और जेठानंद आमने-सामने, इस बार बचेगा कांग्रेस का 'किला' या भाजपा करेगी ध्वस्त ?

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 16, 2023, 9:11 AM IST

Bikaner West Assembly Election, राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर बात बीकानेर जिले की करें तो यहां पश्चिम विधानसभा सीट पर कांग्रेस के पुराने चेहरे और भाजपा की ओर से नए चेहरे के रूप में संघ की पसंद के बीच मुकाबला है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बीडी कल्ला और भाजपा से जेठानंद व्यास चुनाव मैदान में हैं. यहां समझिए पूरा समीकरण...

Bikaner Election 2023
BD Kall Vs Jethanand Vyas

बीकानेर. 2008 के चुनाव से पहले बीकानेर के नाम से विधानसभा क्षेत्र जाना जाता था, लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद बीकानेर शहर दो विधानसभा सीटों में बंट गया और इस सीट का नाम बीकानेर पश्चिम हो गया. 1980 से 2023 में लगातार कांग्रेस की ओर से कल्ला ही पार्टी का चेहरा बनते आ रहे हैं और अब 10वीं बार भी कल्ला पर कांग्रेस ने भरोसा जताया है. कल्ला कांग्रेस के उन दो नेताओं में शामिल हैं जो प्रदेश में इस बार कांग्रेस की ओर से लगातार 10वां चुनाव लड़ रहे हैं.

कोई हारे-कोई जीते, पुष्करणा ब्राह्मण ही विधायक : बीकानेर पश्चिम सीट पर पुष्करणा बाहुल्य मतदाता हैं. वहीं, अब धीरे-धीरे गैर पुष्करणा ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी बढ़ रही है, लेकिन दोनों ही पार्टियां पुष्करणा ब्राह्मण उम्मीदवार को पहली पसंद के रूप में तरजीह देती हैं. इसलिए इस सीट पर कोई भी पार्टी या उम्मीदवार हारे या जीते, विधायक पुष्करणा ब्राह्मण समाज से बनना तय है.

कल्ला की मजबूती : लगातार 10वीं बार कल्ला का चुनाव लड़ना एक बड़ी बात है. पार्टी और सरकार में वरिष्ठता के चलते पूरे प्रदेश में कल्ला की पहचान है और इसी के चलते कल्ला के जीतने से बीकानेर को फायदा हो सकता है. करीब पांच दशक से राजनीति में सक्रिय और लंबे समय मंत्री रहने के बावजूद भी अपने किसी विभाग में किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार और विवाद में कल्ला का नाम सामने नहीं आया. भाजपा की ओर से हिंदुत्व के मुद्दे पर किए जा रहे प्रचार का तोड़ खुद के धर्मपरायण होने की छवि से दिया जा रहा है और यही कारण रहा कि भाजपा भी इसका तोड़ नहीं निकाल पाई. लंबे समय तक चुनाव लड़ने का अनुभव और टीम के चलते व्यक्तिगत रूप वोटर पर भी उनका प्रभाव देखा जा रहा है. 2008 के परिसीमन के बाद नए जुड़े क्षेत्रों में पहली बार जीतने के साथ मंत्री बनने के बाद कराए गए विकास के काम को भी कल्ला भुना रहे हैं.

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कल्ला की कमजोरी : परिसीमन के बाद बने समीकरण कांग्रेस के लिए यहां मुफीद नहीं रहे और यही कारण है कि दो बार कल्ला को यहां हार का सामना करना पड़ा. 2008 को छोड़ दें तो एक बार जीत और एक बार हार का अंतर 6500 तक ही रहा, जबकि परिसीमन से पहले हुए छह चुनाव में से कल्ला ने पांच चुनाव जीते और एक में हार का सामना करना पड़ा. इतने लंबे राजनीतिक अनुभव और लगातार चुनाव लड़ने के बावजूद भी कल्ला को हर बार अपनी ही क्षेत्र में रहना पड़ता है. पार्टी और संगठन में इतने बड़े कद के बावजूद भी कल्ला दूसरी सीट पर प्रचार के बारे में सोच भी नहीं सकते. व्यक्तिगत काम और कई बार प्रशासनिक दखलंदाजी के आरोप लगते हैं.

जेठानंद व्यास की मजबूती : भाजपा ने नई चेहरे के रूप में दावेदार भाजपाइयों को किनारे रखते हुए संघ पृष्ठभूमि के व्यास को अपना चेहरा बनाया है. चुनाव से करीब 2 महीने पहले भाजपा में शामिल हुए व्यास अपनी पार्टी की दूसरे दावेदारों को पछाड़ते हुए टिकट लाने में कामयाब रहे. इससे उनकी संघ पर पकड़ साबित होती है. कट्टर हिंदूवादी चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होना टिकट मिलने का कारण रहा. पार्टी संगठन में नए होने की वजह से व्यक्तिगत रूप से कोई गुटबाजी नहीं है. संगठन के दृष्टिकोण से हिंदूजागरण मंच में काम करने का लंबा अनुभव है. संघ की ओर से कई चुनाव में भूमिका निभा चुके हैं. कल्ला के लगातार मैदान में होने से उनके विरोधी रहे लोगों को कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल कराया है.

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जेठानंद व्यास की कमजोरी : सक्रिय राजनीति के लिहाज से पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. राजनीतिक संगठन में काम करने तरीका होता है और भाजपा में हाल ही में शामिल हुए हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ संवाद का इतना दौर कभी रहा नहीं. चुनाव के लिए प्रबंधन का एक विशेष महत्व होता है और उसकी कमी देखने को मिल रही है, विकास और विजन की बात प्रचार में नजर नहीं आ रही है, बल्कि हिंदुत्व चेहरे के रूप में ही खुद को भुना रहे हैं.

कांटे का मुकाबला : समीकरण के लिए लिहाज से जीत का ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है. हालांकि, पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में अब तक का परिणाम की बात करें तो दो बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के पक्ष में रहा है, लेकिन हार जीत का अंतर ज्यादा नहीं रहा. अब तक पिछले तीन मुकाबले में कल्ला के सामने उनसे ज्यादा अनुभवी गोपाल जोशी थे. जिनकी व्यक्तिगत पकड़ भी कल्ला के मुकाबले कार्यकर्ताओं पर थी. इस बार भी दोनों ही दावेदारों के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिल रहा है. ऐसे में यह आने वाला समय ही बताएगा कि जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा.

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