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Special: सरकारी उदासीनता झेलने को मजबूर राजस्थान का एकमात्र आवासीय स्पोर्ट्स स्कूल, इतिहास जान दंग रह जाएंगे आप

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Published : Jan 13, 2023, 11:07 PM IST

राजस्थान की गहलोत सरकार खेल (Sadul Sports School Bikaner) और खिलाड़ियों के प्रोत्साहन को लेकर दावे करती है लेकिन प्रदेश के एक मात्र स्पोर्ट्स स्कूल की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. इन सबके बीच सबसे अहम सवाल यह है कि आखिर ये स्थिति कैसे और क्यों बनी और इसके लिए जिम्मेदार कौन है?

Sadul Sports School Bikaner
Sadul Sports School Bikaner

बीकानेर की बेहाल सादुल स्पोर्ट्स स्कूल

बीकानेर. खेलों के विकास व खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए आज देश के साथ ही प्रदेश की सरकारें लगातार विभिन्न योजनाओं व प्रतियोगिताओं के जरिए पहल कर रही हैं ताकि खिलाड़ियों की प्रतिभा उभर कर सामने आए. वो ओलंपिक समेत अन्य राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने शानदार प्रदर्शन के बूते मेडल जीत कर देश का नाम रोशन करें. वहीं, राजस्थान में मौजूदा गहलोत सरकार लगातार स्कूल, जिला व संभाग स्तर पर खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन के जरिए खिलाड़ियों को उनका हुनर दिखाने का मौका देने का दावा करती है. लेकिन आज समुचित कार्य योजना और सरकारी उदासीनता के कारण बीकानेर स्थित प्रदेश के एक मात्र आवासीय खेल विद्यालय की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है.

रियासत काल में हुई स्थापना: दरअसल, आजादी से पूर्व बीकानेर रियासत के बच्चों के लिए नोबेल स्कूल की स्थापना की गई थी. जिसका नामकरण अजमेर की मेयो स्कूल की तर्ज पर किया गया, लेकिन बीकानेर रियासत के तत्कालीन राजाओं ने आजादी से पूर्व ही इस स्कूल को आम लोगों के लिए खोल दिया था. इस कारण यह स्कूल आगे चलकर पब्लिक स्कूल में तब्दील हो गया. साल 1982 में शिक्षा विभाग ने इसे प्रदेश के एक मात्र आवासीय खेल विद्यालय के रूप में परिवर्तित कर दिया और इसे सार्दुल स्पोर्ट्स स्कूल का नाम दिया गया. आज करीब 40 सालों से यह प्रदेश का एक मात्र आवासीय खेल विद्यालय है.

Sadul Sports School Bikaner
खंडहर में तब्दील हुई स्कूल की इमारत

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उपेक्षा का शिकार: आज सामान्य स्कूलों की तरह ही स्पोर्ट्स स्कूल भी स्टाफ की कमी और संसाधनों के अभाव का दंश झेलने को मजबूर है. भले ही ये प्रदेश का एक मात्र खेल विद्यालय है, लेकिन यहां की व्यवस्थाओं और वातावरण को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि राज्य सरकार खेल और खिलाड़ियों को लेकर जरा भी गंभीर है. अगर ऐसा होता तो फिर इस स्कूल की स्थिति ऐसी न होती.

उखड़ी सड़क, न मैदान में घास: करीब 71 बीघा में फैले और शहर से लगे इस स्पोर्ट्स स्कूल की स्थिति परिसर में प्रवेश के साथ ही आपको नजर आएगी. टूटी सड़कें, बिना घास के मैदान, हॉस्टल और दूसरी जर्जर इमारतें यहां की दुर्दशा की कहानी को बयां करती हैं. वहीं, कई जगह मुख्य स्कूल की दीवारें भी अब दरकने लगी हैं. बावजूद इसके कोई सुध लेने वाला नहीं है.

Sadul Sports School Bikaner
सादुल स्पोर्ट्स स्कूल बीकानेर

सुधार को सामने आए खिलाड़ी: इस स्पोर्ट्स स्कूल की दुर्दशा से चिंतित बास्केटबॉल के राष्ट्रीय खिलाड़ी दानवीर सिंह भाटी अब सामने आए हैं. साथ ही भाटी अपनी बात सरकार तक पहुंचाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. भाटी ने कहा कि यह स्कूल कभी बीकानेर का ही नहीं, बल्कि राजस्थान का गौरव हुआ करता था. लेकिन आज इसके हालात इतने खराब हैं कि खिलाड़ियों के लिए यहां अनुकूल वातावरण नहीं है.

उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों को डाइट के लिए मिलने वाला मेस भत्ता महज 100 रुपए है जो बहुत ही कम है. ऐसे में आज जरूरत है कि दूसरे खेल सेंटरों की तर्ज पर इसे भी आधुनिक तरीके से विकासित किया जाए. मौजूदा हालात का जिक्र करते हुए भाटी ने कहा कि आज यहां खिलाडियों को मिलने वाली किट मनी को पिछले 40 साल से बढ़ाया नहीं गया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार खेलों के उत्थान की बात तो करती है, लेकिन वो केवल खेल परिषद तक ही सीमित है.

Sadul Sports School Bikaner
परिसर की बदहाल सड़कें

पीपीपी मॉडल पर संभव है विकास: सामाजिक कार्यकर्ता व शिक्षण संस्था के संचालक गजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि राज परिवार ने शहर से सटी इतनी बेशकीमती जमीन खेल और खिलाड़ियों के उत्थान के मद्देनजर सरकार को सौंपा था. लेकिन सरकारी रवैया चिंताजनक रहा है. आज इस स्कूल की हालत बद से बदतर हो रही है, लेकिन कोई इसकी सुध लेने वाला नहीं है. उन्होंन कहा कि अगर सरकार इस स्कूल को स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी में तब्दील करती है तो उसके लिए ज्यादा खर्च भी नहीं आएगा. यहां तक कि यदि सरकार इस काम को नहीं कर पा रही है तो फिर इसे पीपीपी मोड में बीकानेर की जनता को ही सौंप दे. यहां के लोग अपने हिसाब से इसे विकसित कर इसका संचालन करेंगे.

बिना स्टाफ के कैसे जीतेंगे मेडल: स्कूल में कुल 244 खिलाड़ी हैं और 12 खेलों में यहां के खिलाड़ी सीधे राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में क्वालीफाई होते हैं. बावजूद इसके विद्यार्थियों के प्रशिक्षण के लिए यहां केवल पांच ही कोच मौजूद हैं. इस कारण खिलाड़ियों को समय-दर-समय कई तरह की चुनौतियों से दो-चार होना पड़ता है. हालांकि, स्कूल स्तरीय प्रतियोगिताओं में यहां के खिलाड़ियों का प्रदर्शन बेहतर रहा है. लेकिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की बात की जाए तो प्रदर्शन पर सवालिया निशान लगा है. इसका एक बड़ा कारण संसाधनों की कमी भी है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है.

सहायक कर्मचारी बना रहे भोजन, ग्राउंड भगवान भरोसे: प्रदेश के एक मात्र इस खेल विद्यालय में खिलाड़ियों के लिए बनाने वाला खाना कोई स्थायी कुक नहीं, बल्कि स्कूल में ही कार्यरत सहायक कर्मचारी बनाते हैं. साथ ही ग्राउंड के लिए भी केयरटेकर जैसा कोई पद नहीं है. ऐसे में सहायक कर्मचारियों को इसे भी देखना पड़ता है. इस कारण ग्राउंड झाड़ियां निकलने के साथ गंदगी रहती है. यहां उपनिदेशक स्तर का पद स्कूल में स्वीकृत है, लेकिन वह भी लंबे अरसे से खाली है. माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक गौरव अग्रवाल भी स्कूल में संसाधनों के अभाव की बात को स्वीकार करते हैं. साथ ही रिक्त पदों को भरने की बात करते हुए कहते हैं कि इस विषय पर अधिकारियों से बातचीत की जा रही है. इसके अलावा राज्य सरकार तक भी बात पहुंचाने की कोशिश जा रही है.

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