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दुबई में पर्यावरण सम्मेलन में बोले फारुख अब्दुल्ला, बिश्नोई समाज पर्यावरण संरक्षण का प्रेरणा पुंज

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Published : Feb 4, 2023, 6:25 PM IST

पर्यावरण संकट को लेकर भारत सहित अन्य देशों के विषय विशेषज्ञ दुबई में 2 दिन तक चिंतन कर रहे हैं. इस दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि बिश्नोई समाज पर्यावरण संरक्षण का प्रेरणा पुंज है.

Farooq Abdullah in environment conference
दुबई में पर्यावरण सम्मेलन में बोले फारुख अब्दुल्ला, बिश्नोई समाज पर्यावरण संरक्षण का प्रेरणा पुंज

बीकानेर. अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा मुकाम और जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर के तत्वावधान में दुबई में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि पर्यावरण चेतना और युक्ति-मुक्ति का संदेश गुरु जाम्भोजी की शब्दवाणी और जाम्भाणी संत कवियों की वाणी जहां भी जाती है, वहां पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाती है. अगर विश्व का पर्यावरण बचाना है, तो यह वाणी विश्व के कोने-कोने में फैलनी चाहिए.

500 सालों का इतिहास: फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि बिश्नोई समाज का 500 सालों का इतिहास बताता है कि इस प्रकृति पोषक समाज ने पर्यावरण को बचाने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया है. इस समाज के संतों ने केवल उपदेश ही नहीं दिया, बल्कि क्रियान्वयन करने का आदेश भी दिया और वे आमजन के साथ मिलकर इस महान आंदोलन के सहभागी भी बने. आज विश्व को इस समाज से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है.

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विश्नोई समाज एक उदाहरण: कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व सांसद और बिश्नोई महासभा के संरक्षक कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि 15वीं शताब्दी में अनेक महान विभूतियों का आगमन भारत भूमि पर हुआ. जिन्होंने भारत की दलित, शोषित, भयाक्रांत और सोई हुई चेतना में नवजीवन का संचार कर दिया. उन्होंने आध्यात्मिक क्रांति के साथ-साथ अभूतपूर्व सामाजिक परिवर्तन भी किया. उनमें गुरु जंभेश्वर भगवान का नाम आदर के साथ लिया जाता है. आध्यात्मिक जगत में उनका उपदेश पर्यावरण चेतना के कारण अपना अलग स्थान रखता है. उन्होंने अपने अनुयायियों से प्राण देकर भी पर्यावरण की रक्षा करने की बात कही. उनके द्वारा प्रवर्तित बिश्नोई पंथ उत्तर भारत का पहला संत संप्रदाय है.

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'सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण': इस दौरान सम्मेलन में वक्ताओं ने विश्नोई पंथ की विशेषता बताते हुए बताया कि 'सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण' यानी कि सिर कटवाकर भी अगर वृक्ष कटने से बचता है, तो यह सौदा सस्ता है. 'जांडी हिरण संहार देख, वहां सिर दीजिए' वृक्ष और वन्यजीवों को मरते-कटते देखकर उनकी रक्षा में अपने प्राण दे देने चाहिए. यह केवल उपदेश की बातें नहीं बल्कि बिश्नोई पंथ में पिछले 500 वर्षों के इतिहास में सैकड़ों लोगों ने इन बातों पर अमल करते हुए अपना बलिदान भी दिया है. जोधपुर जिले के खेजड़ली ग्राम में वृक्षों की रक्षा के लिए 363 बिश्नोईयों ने सामूहिक बलिदान दिया. वृक्ष रक्षा के लिए यह विश्व का अद्वितीय बलिदान था.

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फिल्म अभिनेता से लेकर राजनेता रहे मौजूद: सम्मेलन में पंजाब सरकार के पूर्व मंत्री राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी, पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय सिंह, उत्तरप्रदेश से विधायक सलिल बिश्नोई, फिल्म अभिनेता विवेक ओबराय, पूर्व विधायक रेणुका बिश्नोई ने पर्यावरण से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे. अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के अध्यक्ष देवेंद्र बुड़िया ने सम्मेलन की पृष्ठभूमि और जाम्भाणी साहित्य अकादमी की अध्यक्षा डॉ इंद्रा बिश्नोई ने सम्मेलन के उदेश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु जम्भेश्वर जी की पर्यावरणीय शिक्षओं का वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार करना है. ताकि विश्व इन लोक कल्याणकारी शिक्षाओं को ग्रहण कर पर्यावरण संकट की परेशानी से निजात पा सके.

600 विशेषज्ञ ले रहे भाग : शनिवार को शुरू हुए इस दो दिवसीय सम्मेलन में विभिन्न देशों के 600 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं. दो दिनों में 8 सत्रों में 60 से अधिक पर्यावरणविद पर्यावरण से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे.

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