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Chaitra Navratri 2023 : नवरात्रि का आठवां दिन है मां महागौरी को समर्पित, जानिए पूजा विधि और मुहूर्त

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Published : Mar 29, 2023, 7:59 AM IST

Chaitra Navratri 2023 Maha Ashtami
Chaitra Navratri 2023 Maha Ashtami

नवरात्र में आठवां दिन यानी कि दुर्गा अष्टमी के दिन देवी के महागौरी के स्वरूप की पूजा होती (Chaitra Navratri 2023 Maha Ashtami) है. महागौरी से तात्पर्य देवी पार्वती से है. देवी पार्वती का ही स्वरूप महागौरी है.

बीकानेर. नवरात्रि में देवी की आराधना में दुर्गा अष्टमी यानी कि नवरात्र के आठवें दिन का खासा महत्व है. वैसे तो नवरात्रि नौ दिन के होते हैं. देवी की आराधना करने वाले कई लोग दुर्गा अष्टमी के दिन भी अनुष्ठान की पूर्णाहुति करते हैं और नन्ही कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर भोजन कराते हुए भेंट अर्पित करते हैं.

देवी महागौरी की विधान से पूजा : पञ्चांगकर्ता पण्डित राजेन्द्र किराडू ने बताया कि नवरात्रि पर्व के अष्टमी तिथि को ब्रह्ममुहूर्त में पूजा के लिए तैयार होने के बाद व्रत का संकल्प लें और माता को सिंदूर, कुमकुम, लौंग का जोड़ा, इलाइची, लाल चुनरी श्रद्धापूर्वक अर्पित करें. ऐसा करने के बाद माता महागौरी और मां दुर्गा की विधिवत आरती करें. आरती से पहले दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए.

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मोगरा पुष्प करें अर्पित : राजेन्द्र किराडू के अनुसार, देवी महागौरी को नारियल का भोग लगाना श्रेयस्कर माना जाता है. देवी को वैसे तो किसी भी पुष्प को अर्पण कर सकते हैं, लेकिन मोगरा का पुष्प अर्पित करना संभव हो तो किया जाना चाहिए, क्योंकि ये देवी को अतिप्रिय है. उन्होंने कहा ऐसी मान्यता है कि देवी को भोग में नारियल और पुष्प में मोगरा अर्पित करने से वैवाहिक जीवन में मिठास आती है और पाप कर्म से छुटकारा मिलता है. पञ्चांगकर्ता पण्डित राजेन्द्र किराडू ने बताया कि अष्टमी के दिन महानिशा पूजा की पूजा का शास्त्रों में उल्लेख मिलता है. यह बलि प्रदान का प्रयोग होता है.

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तपस्या से महागौरी नाम : पंडित किराडू ने बताया गृहस्थ जन और सात्विक पूजा करने वाले लोगों सफेद कमल और मोगरा से देवी महागौरी की पूजा अर्चना करनी चाहिए. उन्होंने बताया कि महागौरी भगवान शंकर की अर्धांगिनी है. पौराणिक कथाओं का जिक्र करते हुए पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि देवी महागौरी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की और तपस्या के चलते उनका वर्णन काला पड़ गया. प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके वर्ण को फिर से गौर कर दिया और वहीं से उनका नाम महागौरी पड़ा. वृषभ पर सवार मां महागौरी का रंग बेहद गौरा है, इसीलिए देवी के इस स्वरूप को महागौरी कहा जाता है. उनके हाथों के डमरू, कक्षमाला, त्रिशूल धारण किए हुए हैं.

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