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केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में औषधीय भंडार, 200 से अधिक प्रजाति के 'गुणी' पौधे चिन्हित

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Published : Jan 10, 2022, 7:21 PM IST

Updated : Jan 10, 2022, 9:22 PM IST

भरतपुर का केवलादेव उद्यान (Keoladeo National Park Bharatpur) जैव विवधिता के लिए मशहूर है. पक्षियों की पहली पसंद केवलादेव औषधीय पौधों का भी घर है. जिनका उपयोग कई बीमारियों की दवाई बनाने में उपयोग होता है.

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केवलादेव उद्यान में औषधीय पौधे

भरतपुर. पक्षियों और जैव विविधता के लिए दुनियाभर में विख्यात केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park) में औषधीय पौधों का भी भंडार (medicinal plants in Keoladeo) है. उद्यान परिसर में 200 प्रजाति से भी अधिक औषधीय पौधे हैं. आयुर्वेद विभाग के 40 से अधिक चिकित्सकों के दल ने उद्यान परिसर का भ्रमण कर इन औषधीय पौधों को चिह्नित किया है. इतना ही नहीं इन में कई औषधीय पौधे दुर्लभ श्रेणी के हैं.

शहर के आयुर्वेदिक चिकित्सक चंद्र प्रकाश दीक्षित ने बताया कि विभाग के एक कार्यक्रम के तहत 40 से अधिक आयुर्वेदिक चिकित्सकों का दल गठित किया. ये दल केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में औषधीय पौधों को चिन्हित करने के लिए गया था. सभी डॉक्टरों ने केवलादेव उद्यान के अलग-अलग ब्लॉक में औषधीय पौधों की पहचान की, जिसमें 200 से अधिक प्रजाति के औषधीय पौधों की मौजूदगी पाई गई (200 medicinal plants in Keoladeo).

केवलादेव उद्यान में औषधीय पौधे

ये औषधीय पौधे चिह्नित

डॉ. चंद्रप्रकाश दीक्षित ने बताया कि केवलादेव उद्यान में इंगुदी, मूषकपर्णी, वरुणा, पाखर, छोटी दूधी, कुमुदनी, उशीर, पुनर्नवा, राजादान, चांगेरी, मकोय, कांचनार, सेमल, थूहर, विषतीन्दूक, गृधनखी, नागबला, अग्निमंथ जामुन, मकोय, शैरेयक समेत 200 से अधिक औषधीय पौधे चिह्नित किए गए.

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गुणी कौंच भी मौजूद

केवलादेव उद्यान में केवाच नाम का औषधीय पौधा भी मौजूद है. जिसे बोलचाल की भाषा में कौंच के नाम से जाना जाता है. इसकी फली का औषधीय उपयोग होता है. जो शारीरिक और मानसिक कमजोरी को दूर कर शरीर के तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियों को मजबूत बनाती है. साथ ही स्नायविक दौर्बल्य (neurological impairment), कंपवात (tremor), शिजोफ्रेनिया, धातुक्षय जैसे अनेक रोगों की चिकित्सा में उपयोगी (medicinal plants in Bharatpur) है.

सरिवा-सरिवा जिसे बोलचाल में अनंतमूल के नाम से जाना जाता है. यह बहुत ही उपयोगी औषधीय वनस्पति है, जो कि उद्यान में मौजूद है. यह औषधि रक्तशोधक, चर्म रोगों में प्रभावी, कोलेस्ट्रोल को कम करने के साथ-साथ रक्तवर्धक गुणों से भरपूर है. यह मूत्र रोग, अग्निमांड्य, अरुचि, पांडु रोग और गर्भाशय से संबंधित रोगों के उपचार में भी लाभदायक है.

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गुंजा-गुंजा जिसे बोलचाल में रत्ती कहते हैं. यह आयुर्वेद संहिता ग्रंथों में वर्णित औषधीय वनस्पति है. इस औषधि का उपयोग विष प्रभाव को दूर करने, व्रण रोपण और बंध्याकरण के लिए बनाई जाने वाली औषधियों में काम में लिया जाता है.

कोकिलाक्ष-कोकिलक्षा (Kokilaksha) जिसे लोक प्रचलन में तालमखाने के नाम से जाना जाता है. यह बहुत ही उपयोगी वनस्पति है. भूख बढ़ाने, मूत्रमार्ग के रोगों में और धातु पोषक औषधि वनस्पति है.

गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान विभिन्न प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों, जैव विविधता आदि के लिए विश्व विख्यात है लेकिन इस उद्यान परिसर में तमाम प्रकार की आयुर्वेदिक औषधीय पौधे भी मौजूद हैं, जिनका उपयोग आयुर्वेदिक उपचार में किया जा सकता है.

Last Updated : Jan 10, 2022, 9:22 PM IST
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