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Tradition related to Holi : ब्रज के गांवों में आज भी जिंदा है बंब के साथ धुलंडी की परंपरा

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Published : Mar 8, 2023, 5:18 PM IST

ब्रज क्षेत्र में आज भी बंब के साथ धुलंडी खेलने की परंपरा जिंदा है. इस क्षेत्र के गांवों में धुलंडी से पहले बंब तैया कर लिया जाता है. धुलंडी के दिन लोग बंब के साथ फाग गाते हैं.

Bamb Tradition related to Holi still in practice in Bharatpur
Tradition related to Holi : ब्रज के गांवों में आज भी जिंदा है बंब के साथ धुलंडी की परंपरा

भरतपुर. कान्हा की धरती ब्रज क्षेत्र कृष्ण लीला के लिए विख्यात है. ब्रज की होली भी पूरी दुनिया में खासी पहचान रखती है. द्वापर युग से ही भगवान कृष्ण और राधा रानी की होली की परंपराओं का लगातार निर्वाह किया जा रहा है. आज भी ब्रज के गांव-गांव में वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार बंब के साथ धुलंडी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. लोग होलिका दहन के अगले दिन प्रतिपदा को एक-दूसरे को गुलाल लगाकर धुलंडी मनाते हैं.

बंब के साथ फाग: ब्रज के ग्रामीण क्षेत्रों में धुलंडी के दिन बंब बजाते हुए फाग गाने की परंपरा है. जिले के खेरली गडासिया निवासी कुलदीप ने बताया कि धुलंडी के लिए पहले से बंब तैयार कर लिया जाता है. धुलंडी के दिन सभी लोग गांव के चौक में इकट्ठा हो जाते हैं और बंब के साथ फाग गाते हैं. इस दौरान लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाकर और गले मिलकर होली की शुभकामनाएं देते हैं. कुलदीप ने बताया कि गांव में वर्षों से परंपरा के अनुसार धुलंडी का त्योहार मनाया जाता है.

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हाथी पर होली खेलने निकलते थे राजा: भरतपुर रियासत के समय भी धूमधाम से होली मनाई जाती थी. इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि रियासतकाल में महाराजा ब्रिजेंद्र सिंह मोतीमहल से हाथी पर सवार होकर शहर में होली खेलने निकलते थे. लोगों पर रंग गुलाल उड़ाते हुए होली खेलते हुए बिजली घर, गंगामंदिर होते हुए किला स्थित दादी जी के महल तक जाते थे. उनके होली के जुलूस में स्वांग रचने वाले बंदर, भालू बनकर करतब दिखाते हुए चलते थे. सैकड़ों की संख्या में लोग होली के इस पर्व में शामिल होते थे.

इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि उससे एक दिन पहले शाम को मोतीमहल में होलिका दहन होता था. मोतीमहल में होलिका दहन के बाद ही पूरी भरतपुर रियासत के गांव-गांव में होलिका दहन होता था. आज भी गांवों में एक ही स्थान पर होलिका दहन होता है. उसके बाद ग्रामीण उस होलिका से लुक्का (मशाल) जलाकर अपने अपने घर लेकर जाते हैं और घरों में होलिका दहन करते हैं.

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न्हाण लोकोत्सव का आगाज घुघरी की रस्म से: कोटा के सांगोद शहर में बुधवार से हाड़ौती के प्रसिद्ध न्हाण लोकोत्सव का आगाज घुघरी की रस्म के साथ होगा. देर रात करीब 9 बजे निकाली जाने वाली घुघरी के जुलूस में न्हाण लोकोत्सव के दोनों पक्ष बाजार एवं खाड़े के पक्ष के लोगों की ओर से मां ब्रह्माणी का जुलूस निकालकर चने व गेंहू से बने प्रसाद का वितरण किया जाएगा. इसी के साथ ही सांगोद में न्हाण लोकोत्सव की रंगत शुरू होगी.

13 मार्च तक चलने वाले न्हाण लोकोत्सव के तहत दो दिन तक बाजार व दो दिन तक खाड़ा पक्ष के लोगों द्वारा न्हाण लोकोत्सव का आगाज व आयोजन किया जाएगा. आयोजन को लेकर इन दिनों यहां जोर-शोर से तैयारीयां चल रही हैं. दोनों पक्षों की ओर न्हाण लोकोत्सव से जुड़ी तैयारीयों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. घुघरी की रस्म बुधवार को लुहारों के चौक स्थित मां ब्रह्माणी माता मंदिर व दाऊजी के मंदिर से शुरू होगी.

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आपको बता दें कि यूं तो सालभर यहां सभी धर्मो के लोग प्रेम और भाईचारे से रहते हैं. लेकिन न्हाण लोकोत्सव के दौरान पूरा कस्बा दो पक्षों में बंट जाता है. एक पक्ष न्हाण अखाड़ा चौधरी पाड़ा (बाजार पक्ष), तो दूसरा पक्ष न्हाण खाड़ा अखाड़ा चौबे पाड़ा बन जाता है. लोकोत्सव के पहले दो दिन चौधरी पाड़ा व अंतिम दो दिन न्हाण खाड़ा पक्ष के आयोजन होते हैं. पहले दिन बारह भाले एवं दूसरे दिन बादशाह की सवारी निकलती है. एक अनुमान के मुताबिक इस दौरान एक लाख से अधिक लोग लोकोत्सव में शामिल होते हैं.

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