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Valentine Day Special : अमर प्रेम की गजब कहानी, राजस्थान के लोकगीतों में कुछ इस तरह जिंदा हैं 'ढोला-मारू'

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Published : Feb 14, 2022, 10:06 PM IST

वेलेंटाइन डे का मतलब मौजूदा परिवेश में भले ही अलग-अलग हों, लेकिन आज भी कई ऐसी अमर प्रेम गाथाएं हैं (Valentines Day Wishes 2022) जो इतिहास में दर्ज होकर भी लोगों के दिलों में जिंदा है. ऐसी ही एक गाथा ढोला-मारू की विरह और संदेश वाहक के जरिए मिलन की है.

Dhola Maru Love Story
ढोला मारू लव स्टोरी

केकड़ी (अजमेर). वेलेंटाइन डे यानि कि प्यार के इजहार का दिन. मौजूदा परिवेश मे भले ही इस दिन के मायने बदल गए हों. लेकिन आज भी कई ऐसी ऐतिहासिक विरासतें हैं जो प्रेम की अमर गाथा के रूप मे इतिहास के पन्नों दर्ज हैं. प्यार के बेजोड़ प्रतीक ताजमहल की तरह ही 'रसिया-बालम', 'हीरा-रांझा' और 'लैला-मंजनू' की अमर प्रेम गाथाएं हैं. इसी कड़ी में केकड़ी के बघेरा ग्राम के बीचोंबीच स्थित (Archway of Dhola Maru in kekri) ढोला-मारू का तोरण द्वार भी अमर प्रेम गाथा की निशानी है.

ढोला-मारू प्रेम की एक अनोखी गाथा है. करीब 100 वर्ष पूर्व चैहान काल में इस कलाकृति का निर्माण हुआ था जो शिव मन्दिर का मुख्य द्वार जैसा प्रतीत होता है. इसी भव्य द्वार के सामने संवत 918 ई मे ढोला-मारू का विवाह हुआ था. इसी याद में इस तोरण द्वार का निर्माण किया गया था. इसी द्वार के सामने चार चकरियां यानि की चुरियां ( विवाह के समय बनाने जाने वाला यज्ञ स्थल) तथा स्तम्भ बने हुए हैं. ढोला नरवर गढ़ मध्यप्रदेश के राजा नल का पुत्र था, वहीं मारू मारवणी पुंगज देश के राजा की पुत्री थी. ढोला-मारू के प्रसिद्ध कथा में उनके विवाह बाद न मिलने के विरह की कथा है तथा तत्कालीन समय में मारवणी की ओर से भेजे गए संदेशों के जरिए मिलने का वर्णन है. आज भी बघेरा सहित आस-पास के गांवों में ढोला-मारू के दोहे गाते देखे जा सकते हैं.

क्या कहते हैं इतिहासकार...

यह है कथा : ढोला-मारू की कहानी के बारे में लोग बताते हैं कि नरवर मध्यप्रदेश के राजा नल के तीन साल के पुत्र साल्हकुमार का विवाह बचपन में उस समय के जांगलू देश अब बीकानेर के पूंगल नामक ठिकाने के स्वामी पंवार राजा पिंगल की पुत्री से हुआ था. बाल विवाह के कारण दुल्हन ससुराल नहीं गई थी. व्यस्क होने पर राजकुमार की एक और शादी कर दी गई. राजकुमार अपनी बचपन में हुई शादी को भूल चुके थे. उधर जांगलू देश की राजकुमरी अब सयानी हो चुकी थी. उसके माता.पिता उसे ले जाने के लिए नरवर कई संदेश भेजे, लेकिन कोई भी संदेश राजकुमार तक नहीं पहुंचा.

राजकुमार की दूसरी पत्नी राजा पिंगल की ओर से भेजे गए संदेश वाहकों को मरवा डालती थी. उसे इस बात का डर था कि राजकुमार को अगर पहली पत्नी के बारे में कुछ भी याद आया तो उसे छोड़कर वो पहली पत्नी के पास चले जाएंगे. इसका सबसे बड़ा कारण पहली राजकुमारी की सुंदरता थी. उधर राजकुमारी साल्हकुमार के ख्वाबों में खोई थी. एक दिन उसके सपने में सल्हाकुमार आया (Dhola Maru Love Story) इसके बाद वह वियोग की अग्नि में जलने लगी.

पढ़ें : दास्तां-ए-मोहब्बत: प्यार की एक ऐसी कहानी, जो अधूरी होकर भी है मुकम्मल

ऐसी हालत देख उसकी मां ने राजा पिंगल से फिर संदेश भेजने का आग्रह किया. इस बार राजा पिंगल ने एक चतुर ढोली को नरवर भेजा. जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था तब राजकुमारी ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बनाकर दिए और समझाया कि कैसे उसके प्रियतम के सम्मुख जाकर गाकर सुनाना है. यह सब इसलिए किया गया, क्योंकि दूसरी राजकुमारी किसी भी संदेश वाहक को राजा तक पहुंचने से पहले मरवा देती थी. ढोली ने राजकुमारी को वचन दिया कि वह या तो राजकुमार को लेकर आएगा या फिर वहीं मर जाएगा.

चतुर ढोली याचक बनकर किसी तरह नरवर में राजकुमार के महल तक पहुंचा. रात में उसने ऊंची आवाज में गाना शुरू किया. बारिश की रिमझिम फुहारों में ढोली ने मल्हार राग में गाना शुरू किया. मल्हार राग का मधुर संगीत राजकुमार के कानों में गूंजने लगा. वह झूमने लगा तब ढोली ने साफ शब्दों में राजकुमारी का संदेश गाया. गीत में राजकुमारी का नाम सुनते ही साल्हकुमार चौंका और उसे अपनी पहली शादी याद आ गई. ढोली ने गाकर बताया कि उसकी प्रियतमा कितनी खूबसूरत है और उसकी याद में कितने वियोग में है.

स्मारक पर अतिक्रमण व गंदगी : ढोला-मारू स्मारक पर सरकार की ओर से नजरें फेर लेने के चलते आज स्मारक के पास ही गोबर की रोड़ी (ढेर) सहित गंदगी डाली जा रही है. वहीं, पास में बनी चूरियां (विवाह के समय बना यज्ञ स्थल) को लोगों ने अपने पक्के अतिक्रमण में दबा कर रख दिया, जिससे धीरे-धीरे यह स्मारक अपना वैभव खोता जा रहा है.

आज भी युवा लगाते हैं फेरे : ढोला-मारु की अमर प्रेम गाथा के चलते कई युवा आज भी इस स्मारक के चारों और फेरे लगाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि कई युवा आज भी स्मारक को देखने के लिए आते हैं.

यह दोहे जो आज भी गाए जाते हैं...

आंखडिया डंबर भई, नयण गमाया रोय,

क्यूं साजण परदेस में, रह्या बिंडाणा होय,

दुज्जण बयण न सांभरी, मना न वीसारेह

कूंझां लालबचाह ज्यू, खिण-खिण चीतारेह.

बहु विवाह हुआ था : ढोला-मारू की शादी में बहु विवाह हुआ था और 50 चूरियों (विवाह के समय बना यज्ञ स्थल) पर 300 जोड़ों ने ढोला-मारू के साथ अग्नि के सात फेरे लिए थे. शादी में 72 मण मिर्ची का इस्तेमाल हुआ था. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भोजन बनाने में कितना अन्न लगा होगा और कितने लोग इस शादी में शामिल हुए होंगे.

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