अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का किला गढ़ बिठली हो रहा है लुप्त...मिट रही हैं निशानियां

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Published : Dec 2, 2022, 7:42 PM IST

Updated : Dec 2, 2022, 8:58 PM IST

Prithviraj Chauhan Fort Garh Bithli

अजयमेरू यानी आज का अजमेर चौहान वंश के शौर्य गाथाओं का गवाह रहा है. चौहान वंश की ओर से बसाई गई अजयमेरू नगरी का इतिहास स्वर्ण रूप में रहा है. लेकिन समय के साथ ही इसकी चमक पर लापरवाही और उदासीनता की परत चढ़ती चली गई. आज हालात ये हो रहे हैं कि चौहान वंश का किला गढ़ बिठली (तारागढ़) खत्म होने के कागार पर पहुंच गया है.

अजमेर. चौहान वंश की बसाई हुई अजयमेरु नगरी को राजस्थान का दिल कहा जाता है. लेकिन वक्त के साथ चौहान वंश की आखरी निशानियां भी खत्म होती जा रही हैं. अजमेर में गढ़ बिठली स्वरूप के नाम पर केवल द्वार बचा है. वहीं शहर में परकोटा और दो द्वार गायब हो चुके हैं. अंतिम हिदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और उनकी वंशजों की निशानी के तौर पर बची विरासत भी खत्म होने के कगार पर है.

चौहान वंश का गौरवशाली इतिहास रहा है. चौहान वंश में अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान रहे हैं. चौहान वंश के समय अजमेरु शक्ति केंद्र ही नहीं बल्कि वैभव और शौर्य से भी परिपूर्ण था. यहां तलवारों के दम पर चौहान राजाओं ने आक्रांताओं को मात दी थी. वहीं धर्म, ज्ञान, स्थापत्य और सभ्यता को भी आगे बढ़ाया. चौहान वंश के समय सबसे बड़ा संस्कृत विद्यालय अजमेर में था.

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चौहान वंश का सूर्य अस्त होने के बाद इस विशाल संस्कृत पाठशाला को गुलाम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़ दिया और उसके स्थान पर ढाई दिन का झोपड़ा का निर्माण करवाया. अजमेर में चौहान वंश के समय की कई निशानियां हैं जो आज भी बुलंदी से खड़ी हैं. अफसोस इस बात का है कि अब यह निशानियां भी लुप्त होने के कगार पर आ चुकी हैं. इसका कारण है इन निशानियों को बचाने में हुक्मरानों ने कभी रुचि नहीं दिखाई. वहीं लोगों ने भी विरासत को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. तारागढ़ ही नहीं बल्कि नगर के चारों और का परकोटा गायब हो गया है. परकोटे की दीवारों से पत्थर निकाल लोगों ने अपने मकान बना लिए. वर्षो से यह क्रम जारी रहा और परकोटा अब कुछ जगह पहाड़ी पर ही नजर आता है.

पृथ्वीराज चौहान का किला गढ़ बिठली

चौहान वंश की नगरी अजयमेरूः चौहान वंश के 23 वें शासक राजा अजयराज चौहान ने अजमेर नगर बसाया था. अजयराज ने तारागढ़ पहाड़ी पर गढ़ बिठली दुर्ग की नींव रखी थी. बताया जाता है कि सन 1112 में अजमेर नगर की स्थापना हुई थी. चौहानवंश के राजाओं ने अजयमेरु को अपनी राजधानी बनाकर रखा. अजयराज के उत्तराधिकारी अर्णोराज चौहान बजरंग गढ़ पहाड़ी और खोबरा नाथ भैरू पहाड़ी के बीच बांध बनवाकर आनासागर झील का निर्माण करवाया था.

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अर्णोराज के द्वितीय पुत्र विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव के शासनकाल में सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिला. उन्होंने बिसलसर झील, डिग्गी तालाब, मलुसर तालाब और बीसलपुर नगर स्थापित किए. इनके बाद पृथ्वीराज द्वितीय ने शासन किया और फिर सोमेश्वर राजा बने. इन्होंने पुष्कर के पास बैजनाथ धाम का निर्माण और ( भगवान गंगाधारव शिव लोक) शिव मंदिर गगवाना में बनवाया. चौहान वंश के पृथ्वीराज चौहान तृतीय को ही अंतिम हिंदू सम्राट माना जाता है. चौहान के शासनकाल में उनके दरबारी कवि जयनक कश्मीरी ने लिखा है कि कृष्ण की द्वारिका, इंद्र की अमरावती और रावण की लंका भी अजयमेरु के सौंदर्यता के सम्मुख लज्जाती थी. पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली को चौहान साम्राज्य की दूसरी राजधानी बनाया. बताया जाता है कि चौहान वंश के रहते अजमेर ने कई युद्ध देखे और बल्कि चौहान राजाओं के शौर्य को भी देखा. चौहान वंश के राजाओं ने अजमेरु नगरी को सुरक्षित रखने के लिए परकोटे, बड़े द्वार और जलाशय बनवाए. चौहान वंश के राजाओं की ओर बनवाए गढ़, परकोटे सहित कई विरासत अब लुप्त होने के कगार पर है.

1400 वर्ष से भी अधिक पुराना है गढ़ बिठलीः अरावली पहाड़ी पर 2 हजार 856 फिट ऊंचाई पर स्थित तारागढ़ कभी गढ़ बिठली के नाम से जाना जाता था. बताया जाता है कि 4 दर्जन से भी ज्यादा युद्ध का गवाह तारागढ़ रहा है. आवाजाही के लिए दुर्ग के तीन प्रवेश द्वार हैं. तारागढ़ का निर्माण राजपूताना और फारसी शैली में हुआ है. 10 हजार वर्ग मीटर इलाके में दुर्ग की दिवारें फैली हुई है. तारागढ़ पर जल स्त्रोत के रूप में तीन बावड़ियां है. तीनों ही बावड़ियां दुर्दशा का शिकार हो रही है. दुर्ग का परकोटा जगह-जगह से जीर्ण शीर्ण हो चुका है. वहीं कई जगह पर ढहे परकोटे से पत्थर तक गायब हो गए हैं.

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यह बचे हैं गेटः अजमेर नगरी के परकोटे खत्म हो गए लेकिन अभी भी कई विशाल दरवाजे बुलंदी के साथ खड़े हैं. इनमें ऊसरी गेट, देहली गेट, नया बाजार स्थित दो गेट, त्रिपोलिया गेट, मदार गेट हैं. जबकि आगरा गेट और अकबर के किले के पास बने गेट को हटा दिया गया. अफसोस की बात यह है कि कई प्राचीन और ऐतिहासिक इन मुख्य द्वारों पर अतिक्रमण हो चुके हैं. लापरवाही का भी शिकार मुख्य द्वार हो रहे है. इन द्वारों के दोनों और परकोटे गायब हो चुके हैं. वहीं रही सही कसर नगर निगम पूरी कर रहा है. ऊसरी गेट की दीवार से सटकर लोगों की सुविधा के लिए महिलाओं और पुरुषों के लिए यूरिनल बना डाले.

सरकार रूचि दिखाए तो बच सकती है निशानियांः चौहान वंश के राजाओं के गौरवशाली इतिहास से जुड़ी कई निशानियां अजमेर में हैं. इनमें गढ़ बिठली भी शामिल है. गढ़ बिठली वक़्त के थपेड़ों और अनदेखी की वजह से खत्म हो जा रहा है. वहीं पहाड़ी के नीचे बसाई गई नगरी के परकोटे के कुछ क्षेत्र और द्वारा निशानी के तौर पर रह गए हैं. केंद्र और राज्य सरकार चाहे तो चौहान वंश की निशानियां को बचाया जा सकता है. वहीं पर्यटन के रूप में इन्हें विकसित किया जा सकता है. बता दें कि तारागढ़ पहाड़ी पर 5000 से अधिक आबादी बसी हुई है.

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आरटीडीसी चेयरमैन ने की थी यह घोषणाएंः तारागढ़ यानी गढ़ बिठली क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. पहाड़ी से प्राकृतिक और नैसर्गिक सुंदरता नजर आती है. वहीं मीरा साहब की दरगाह भी अकीदतमंदों की आस्था का केंद्र है. आरटीडीसी चेयरमैन बनने के बाद पहली बार धर्मेंद्र सिंह राठौड़ अजमेर आए थे तब उन्होंने पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से तारागढ़ पर रोपवे और आरटीडीसी होटल खोले जाने की घोषणा की थी. तारागढ़ पर रेलवे के गेस्ट हाउस को लीज पर आरटीडीसी को देने के लिए प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजे जाने की बात कही थी.

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पूर्व विधायक श्रीगोपाल बाहेती ने कहा कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान अजमेर को दिल्ली की राजधानी बनाया था. यहां रहते हुए सम्राट पृथ्वीराज ने न केवल दिल्ली पर शासन किया बल्कि कई युद्ध भी लड़े. सरकारों की उदासीनता के चलते अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के गढ़ बिठली की अब कुछ निशानियां शेष रह गई है. केंद्र सरकार को सम्राट पृथ्वीराज चौहान की निशानियों को बचाने के लिए पहल करना चाहिए. उन्होंने कहा कि बीजेपी गौरवशाली इतिहास और आदर्शों की बात करती है. अजमेर में सम्राट पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी निशानियों को केंद्र सरकार नहीं बचा पाती है तो इससे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात क्या हो सकती है.

डॉ. बाहेती ने बताया कि अब कुछ अवशेष गढ़ बिठली के रह गए हैं यदि उन्हें बचा दिया गया तो आने वाले वक्त में हम कह सकते हैं कि यहां कभी शौर्य वैभव का प्रतीक गढ़ बिठली हुआ करता था. सामाजिक कार्यकर्ता गंगा सिंह गुर्जर ने कहा कि सरकार कोई भी रही हो दुर्भाग्य है कि हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी निशानियां को कभी बचाने की पहल नहीं की गई. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को इसके लिए पहल करनी चाहिए.

Last Updated :Dec 2, 2022, 8:58 PM IST
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