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Mini Urs : दरगाह में बाबा फरीद गंज शकर के उर्स और मोहर्रम पर जायरीन की आवक बढ़ी, प्रशासन ने किए विशेष इंतजाम

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Published : Jul 25, 2023, 10:55 AM IST

अजमेर में विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में मिनी उर्स के मौके पर जायरीन की आवक बढ़ी है. इसके साथ ही पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं.

चिल्ला बाबा फरीद गंज शक्कर पाक पट्टन चिश्ती
चिल्ला बाबा फरीद गंज शक्कर पाक पट्टन चिश्ती

उर्स और मोहर्रम पर जायरीन की आवक बढ़ी

अजमेर. अजमेर में विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में मिनी उर्स के मौके पर जायरीन की आवक बनी हुई है. मोहर्रम और दरगाह में बाबा फरीद शकर का साल में एक मर्तबा खुलने वाला चिल्ला भी आम जायरीन के लिए खोल दिया गया है. मिनी उर्स में जायरीन की आवक को देखते हुए पुलिस ने भी सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं.

अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में मिनी उर्स मनाया जा रहा है. दरअसल सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का उर्स रजब के चांद दिखने के बाद मनाया जाता है. वर्तमान में मोहर्रम और बाबा फरीद गंज शकर का उर्स होने के कारण इन दिनों दरगाह में जायरीन की तादात सामान्य दिनों से ज्यादा है. बीते कुछ वर्षों पहले मिनी वर्ष में जायरीन की संख्या काफी रही है. इस कारण इसको मिनी उर्स का नाम दिया गया है. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में आने वाले जायरीन जियारत के बाद बाबा फरीद के चिल्ले की जियारत करते हैं. जायरीन की आवक के मद्देनजर प्रशासन और पुलिस ने भी विशेष इंतजाम किए हैं. एक ओर जहां सड़क, सफाई, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं प्रशासन क्षेत्र में बेहतर करवा रहा है. वहीं पुलिस ने भी सुरक्षा की रणनीति के तहत 12 सौ के लगभग पुलिस कर्मी तैनात किए हैं. इनमें सादे वर्दी में भी पुलिसकर्मी भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में और दरगाह परिसर में घूमते हुए संदिग्ध और अपराधिक गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं.

इसी तरह से पुलिस का जाब्ता कायड़ विश्राम स्थली में भी तैनात किया गया है. कायड़ विश्राम स्थली में जायरीन के रहने खाने-पीने समेत सभी तरह की मूलभूत सुविधाएं प्रशासन की ओर से उपलब्ध करवाई गई है. वहीं दरगाह कमेटी भी दरगाह परिसर और कायड़ विश्राम स्थली में जायरीन की सुविधा के लिए काम कर रहे हैं. दरगाह क्षेत्र में मोती कटला और कायड़ विश्राम स्थली में मेडिकल के लिए चिकित्सक और नर्सिंग कर्मी लगाए गए हैं. वहीं रसद विभाग ने भी कायड़ विश्राम स्थली में रियायती दर पर जायरीन को भोजन पकाने के लिए बर्तन और अन्य सामग्री उपलब्ध करवाई गई. कायड़ विश्राम स्थली से रोडवेज की बसें जायरीन के आने जाने के लिए लगाई गई है.

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बाबा फरीद गंज शकर कौन है जानिए : दरगाह में सैयद इमरान चिश्ती बाबा फरीद गंज शकर के चिल्ले के बारीदार है. चिश्ती बताते हैं कि चिल्ले का मतलब जहां पर सूफी संत 40 दिन तक रह कर इबादत किया करते थे. बाबा फरीद गंज शकर ने भी ख्वाजा गरीब नवाज की मजार के समीप इस स्थान पर रहकर 40 दिन तक इबादत की थी. उन्होंने बताया कि बाबा फरीद के कई बड़े सूफी संत मुरीद (शिष्य) रहे हैं. ख्वाजा गरीब नवाज के मुरीद कुतुबुद्दीन काकी के बाद बाबा फरीद गंज शकर मुरीद हुए थे. चिश्ती बताते हैं कि बाबा फरीद का मर्तबा बड़ा है. ख्वाजा गरीब नवाज की मजार के समीप बाबा फरीद का चिल्ला है. इसी तरह पंजाब के फरीदकोट में भी इनका चिल्ला है. पाकिस्तान के पाक पट्टनी ने बाबा फरीद गंज की मजार है. जहां बड़ी बारगाह है. मोहर्रम की 4 तारीख को वहां बाबा फरीद गंज का उर्स मनाया जाता है. उस सिलसिले के तहत साल में तीन दिन के लिए यह चिल्ला खुलता है. मोहर्रम की 4 से 7 तारीख तक उर्स मनाया जाता है. जो लोग बाबा फरीद गंज के रोजे पर नहीं जा सकते हैं वह यहां चिल्ली की जियारत करते हैं. चिश्ती ने बताया कि बड़ी संख्या में जायरीन मोहर्रम और बाबा फरीद के उर्स मैं चिल्ली की जियारत के लिए आते हैं.

बाबा फरीद गंज के शकर नाम इसलिए जुड़ा : दरगाह में ख़ादिम और बाबा फरीद गंज के चिल्ले के बारी दार सैयद इमरान चिश्ती एक वाक्या का जिक्र करते हुए बताते हैं कि एक बार खच्चर के ऊपर कोई व्यापारी शकर की बोरिया ले जा रहा था. तो बाबा फरीद गंज ने उससे पूछ लिया कि इसमें क्या है ? तो व्यापारी ने कहा कि इसमें नमक है. व्यापारी जब अपने स्थान पर पंहुचा और उसने बोरिया अपने घर में रखवाई लेकिन वह सभी शक्कर की बोरिया नमक की निकली. तब से बाबा फरीद गंज के नाम के शक्कर भी जुड़ गया. जायरीन बाबा फरीद के चिल्ले पर शक्कर चढ़ाते है और तबर्रुक के तौर पर शक्कर अपने साथ ले जाते हैं. मान्यता है कि इस शक्कर के सेवन से लोगों के दुख दर्द और रोग दूर होते है.

मोहर्रम में दरगाह में होती है रोज मर्सिया : दरगाह के खादिम सैयद सगीर चिश्ती बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय में मोहर्रम का विशेष महत्व है. इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 72 लोगों की याद में मोहर्रम मनाया जाता है. चिश्ती ने बताया कि 10 दिन तक मोहर्रम मनाया जाता है. मोहर्रम की पहली तारीख से दरगाह परिसर में गम ए हुसैन में मर्सिया ख़्यानी होती है. मोहर्रम की आठ तारीख को ताजिए शरीफ दरगाह के मुख्य द्वार पर दिए जाते हैं. इसके बाद तमाम ख़ादिम ताजिए की सवारी निकालते हुए दरगाह की छतरी गेट पर लाते हैं. यहां से ताजिए को इमामबाड़े में ले जाया जाता है. मोहर्रम की 9 तारीख को छतरी गेट से ताजिए की सवारी 10 तारीख को इमामबाड़े पहुंचती है. चिश्ती ने बताया कि 10 तारीख को इमामबाड़े से ताजिए को दरगाह के मुख्य द्वार होते हुए दरगाह परिसर में मौजूद झालरे में ताजिए को ठंडा किया जाता है.

हाईदौस की निभाई जाती है परंपरा : उन्होंने बताया कि दरगाह क्षेत्र में ही अंदर कोटियान पंचायत से जुड़े लोग हाईदौस की परंपरा निभाते हैं. इस परंपरा के तहत तलवारे लहराते हुए चीखते चिल्लाते हुए कर्बला का मंजर पेश करते हैं. बता दें कि हाईदौस खेलने के लिए बकायदा प्रशासन की ओर से अंदरकोटियान पंचायत के लोगों को सौ तलवारें दी जाती है. बता दें कि देश में हाईदौस केवल अजमेर में खेला जाता है या फिर पाकिस्तान के हैदराबाद में खेला जाता है.

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