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बूचड़खाना शुरू करने का मामलाः समाजसेवी ने अदालत में आपराधिक इस्तगासा की पेश, जांच के आदेश

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Published : May 22, 2021, 10:06 AM IST

अजमेर के नसीराबाद में एक बार फिर 50 सालों से बंद पड़े बूचड़खाने को शुरू करवा दिया गया है. ऐसे में समाजसेवी सुशील कुमार गदिया ने नसीराबाद की एक अदालत में एक आपराधिक इस्तगासा एडवोकेट नरेंद्र पाराशर को पेश किया.

बूचड़खाना मामले में आपराधिक इस्तगासा पेश, Criminal Istagasa presented in the abattoir case
बूचड़खाना मामले में आपराधिक इस्तगासा पेश

नसीराबाद (अजमेर). क्षेत्र के सीईओ अरविंद नेमा की ओर से कोटा रोड स्थित रावण के मैदान के पास बीते 50 साल से बंद पड़े बूचड़खाने को फिर से शुरू करवा दिया गया है. ऐसे में स्थानीय निवासी लगातार इसका विरोध कर रहे है. जहां स्थानीय समाजसेवी सुशील कुमार गदिया ने नसीराबाद की एक अदालत में एक आपराधिक इस्तगासा एडवोकेट नरेंद्र पाराशर को पेश किया. जिसमें अदालत ने सिटी थाना पुलिस को मामले की जांच करने के आदेश दिए.

बूचड़खाना मामले में आपराधिक इस्तगासा पेश

जानकारी के अनुसार कस्बे के सामाजिक कार्यकर्ता सुशील कुमार गदिया ने अपने अधिवक्ता नरेंद्र कुमार पाराशर के जरिए नसीराबाद न्यायालय में एक आपराधिक इस्तगासा पेश किया है. अधिवक्ता नरेंद्र कुमार पाराशर के अनुसार उन्होंने अदालत में प्रस्तुत इस्तगासे की पैरवी करते हुए अदालत में बताया कि, बूचड़खाने पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 2001के नियम 7 के अनुसार तहत संघारित नहीं है और इसमें पशुओं पर मानवीय व्यवहार करने और उनका पीड़ा रहित वध करने के मानक प्रबन्ध भी नहीं किए हुए हैं.

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बोर्ड की स्वामितवी इस संपत्ति को बूचड़खाने के लिए काम में लाने हेतु अधिशासी अधिकारी अरविन्द कुमार नेमा ने इसे आज तक भी फूड सेफ्टी एन्ड स्टैंडर्ड्स, लाईसेन्सिंग एन्ड रजिस्ट्रेशन ऑफ फूड बिजनेस रेगुलेशन 2011के अनुसार सक्षम अथार्टी से पंजिकृत भी नहीं करवाया है और न ही सक्षम अधिकारी से कोई अनुज्ञप्ति ही ली है. ऐसी स्थिति के लिए इस संपत्ति को प्रतिदिन दस से ज्यादा पशुओं का वध करने हेतु काम में नहीं लाया जा सकता है.

अधिवक्ता पाराशर के अनुसार, छावनी परिषद अधिशासी अधिकारी अरविन्द कुमार नेमा भारतीय रक्षा सेवा के एक उच्च अधिकारी हैं और उन्हें सभी कानूनी प्रक्रिया की पूर्ण जानकारी है. इस मामले में असामान्य रुचि लेकर न केवल सभी कानूनों की जानबूझ कर अनदेखी की बल्कि बोर्ड को भी गुमराह किया है. साथ ही जन प्रतिनिधियों और आम जनता के भारी विरोध की भी परवाह नहीं करते हुए सार्वजनिक जलसा करके उक्त बूचड़खाने को पशु वध हेतु चालू करवा दिया.

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इस तरह छावनी अधिशासी अधिकारी अरविन्द कुमार नेमा का यह कृत्य सदभाविक नहीं है और धारा 3/11और धारा 38(3)पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960 और स्लाटर हाउस नियम 2001 और धारा 166 सपठित धारा 217 भा.द. सं. के तहत दण्डनीय अपराध की परिभाषा में आता है. अधिवक्ता नरेंद्र कुमार पाराशर के तर्कों को सुनने के बाद माननीय न्यायालय ने इस मामले को सिटी थाना नसीराबाद को भेज कर जांच करने के आदेश दिए हैं.

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