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Chaitra Navratri 2023 : गौरी मैया का सिद्ध अति प्राचीन मंदिर, यहीं पर माता ने ऋषि मार्कंडेय को दिए थे दर्शन

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Published : Mar 19, 2023, 6:15 AM IST

चैत्र नवरात्र पर माता शक्ति के 9 रूपों की आराधना की जाती है. देशभर में माता के कई प्राचीन और चमत्कारी मंदिर मौजूद (Unique temples in Ajmer) हैं. इनमें से एक है अजमेर में गौरी मैया का निवास स्थान, जहां माता स्वंयभू हैं. ईटीवी भारत पर जानिए अतिप्राचीन मंदिर की महिमा...

Chaitra Navratri 2023
गौरी माता का अनोखा मंदिर

देखिए गैरी मौया का अद्भुत मंदिर

अजमेर. भगवान शिव की अर्धांगिनी गौरी मैया या शक्तिस्वरूपा माता के 9 रूप हैं. नवरात्रि पर लोग अलग-अलग रूप में माता की आराधना करते हैं. अजमेर जिले के सराधना गांव से 5 किलोमीटर जंगल में मकरेडा ग्राम पंचायत क्षेत्र की पहाड़ी की तलहटी में स्थित एक गुफा में गौरी मैया का निवास है. इस स्थान को सिद्ध माना जाता है. माता का यह पवित्र धाम मार्कंडेय ऋषि की तपोभूमि रहा है. माना जाता है कि ऋषि मार्कंडेय को यहीं पर माता ने दर्शन दिए थे. मंदिर में गौरी मैया की स्वंयभू प्रतिमा है जो जनआस्था का केंद्र है.

अजमेर से 20 किलोमीटर दूर सराधना हाईवे से मकरेडा मार्ग पर पहाड़ी पर गौरी मैया का निवास स्थान है. मार्ग के दोनों ओर जंगल और दो बड़े द्वार पड़ते हैं. मंदिर से प्रकृति का अनुपम नजारा देखने को मिलता है. कभी मंदिर तक पहुंचना काफी दुर्गम था, लेकिन अब जन सहयोग से मंदिर तक वाहन पहुंचते हैं. गौरी मैया के मंदिर के भव्य मुख्य द्वार से चंद कदमों की दूरी पर है गौरी मैया का निवास यानी माता का मंदिर. मंदिर में एक बड़ा हॉल और ठीक सामने गर्भगृह है, जहां गौरी मैया की सांसारिक प्रतिमा और एक स्वयंभू प्रतिमा के दर्शन होते हैं.

Unique Temple of Gauri Mata
मंदिर में मौजूद कुंड में सालों भर रहता है साफ पानी

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मंदिर का गर्भगृह पहाड़ी की चट्टान के नीचे एक छोटी सी गुफा में है. ग्रामीणों के अनुसार माता की एक प्रतिमा हजारों वर्षों पहले स्वंय प्रकट हुई थी. माता की सांसारिक प्रतिमा को भक्तों ने स्थापित किया है. माता की प्रतिमा के समीप प्राचीन पंचमुखी शिवलिंग और उनके साथ गणेश, कार्तिकेय, पार्वती की प्रतिमा भी है. यह शिव परिवार बाद में यहां स्थापित किया गया है.

मंदिर में साधु बनखंडी महाराज की प्रतिमा : ग्रामीणों के अनुसार गौरी मैया का यह स्थान कई ऋषि-मुनियों का तपोस्थल भी रहा है. यहां मंदिर के गर्भगृह के सामने धूनी भी है जो यहां वर्षों तक रहे एक साधु बनखंडी महाराज की है. माना जाता है कि साधु बनखंडी महाराज रामानन्दी सम्प्रदाय से थे. 1920 को बनखंडी महाराज यहां आए और गौरी मैया की भक्ति और तप से कई सिद्धियां प्राप्त की. आसपास क्षेत्रों के ग्रामीण साधु बनखंडी महाराज को सिद्ध पुरुष के रूप में मानते थे.

Chaitra Navratri 2023
गौरी निवास से है माता का मंदिर

ग्रामीण बताते हैं कि पूर्वजों से साधु बनखंडी महाराज की कई कहानियां उन्होंने सुनी हैं. दर्शन के लिए आए श्रद्धालु राजेंद्र जाट बताते हैं कि दादा, परदादा से सुना था कि यहां पुराने वाले साधु बनखंडी महाराज किसी भी जीव का रूप ले लेते थे. कई बार देखा गया कि वह कुछ पलों में एक जगह से दूसरे जगह पहुंच जाते थे. मंदिर के प्रांगण में एक कुंड भी है. जाट बताते हैं कि इस कुंड से होकर बनखंडी महाराज पुष्कर पहुंच जाया करते थे. ग्रामीणों में बनखंडी महाराज को लेकर ऐसी कई कथाएं प्रचलित हैं.

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ग्रामीण बताते हैं कि 1980 में साधु बनखंडी महाराज का निधन हो गया था. इसके बाद से ही बाबा बालकदास महाराज मंदिर की देखरेख का जिम्मा संभालते हैं. संत परशुराम दास ने बताया कि बनखंडी महाराज कुंभ में अखाड़ा भी लगाते थे. बनखंडी महाराज के प्रयासों से ही मंदिर को भव्यता मिली है. उन्होंने बताया कि साधु बनखंडी महाराज आयुर्वेद के भी जानकार थे. कई लोग इलाज के लिए भी उनके पास आया करते थे.

ऋषि मार्कंडेय को गौरी मैया ने यहीं पर दिए थे दर्शन : माना जाता है कि ऋषि मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की थी. ऋषि मार्कंडेय को महादेव ने प्रसन्न होकर चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया था. यानी ऋषि मार्कंडेय आज भी मौजूद हैं. महामृत्युंजय के जाप से ही ऋषि मार्कंडेय ने महादेव को प्रसन्न किया था. तब उनकी उम्र केवल 16 वर्ष ही थी. उन्होंने मार्कंडेय पुराण भी लिखा था, जिसका एक भाग दुर्गा सप्तशती है. नवरात्रा में माता के भक्तों की आराधना दुर्गा सप्तशती पाठ करके करते हैं. ऋषि मार्कंडेय ने कई स्थानों पर अपनी तपोभूमि बनाई थी. इन्हीं स्थानों में से एक यह भी सिद्ध स्थान है.

मंदिर में 2013 से रह रहे एक सेवादार रामसुख बताते हैं कि गौरी मैया का स्थान ऋषि मार्कंडेय की तपोभूमि है. सदियों पहले मार्कंडेय ऋषि यहां रह कर माता की आराधना किया करते थे. ऋषि मार्कंडेय की एक प्राचीन धूनी आज भी यहां है. रामसुख बताते हैं कि माता ने ऋषि मार्कंडेय को यहीं पर दर्शन दिए थे. गुफा में ही गौरी मैया का यह सिद्ध स्थान है. उन्होंने मंदिर के चमत्कारों के बारे में बताया कि गौरी मैया के मंदिर क्षेत्र में कौए कभी नजर नहीं आते हैं. इसके अलावा ओलावृष्टी होने पर मंदिर क्षेत्र में कभी ओले नहीं गिरते. माता के मंदिर के समीप कुंड के जल में कभी काई नहीं जमती.

अकाल में भी नहीं सूखा कुंड का पानी : सेवादार रामसुख बताते हैं कि मंदिर में मौजूद कुंड की गहराई बहुत ज्यादा नहीं है. पहाड़ों से पानी कुंड में रिस कर आता है. यह जल इतना स्वच्छ है कि कुंड के पेंदे में डले सिक्के तक नजर आते हैं. उन्होंने बताया कि जिन लोगों के काम माता की कृपा से बन जाते हैं वह यहां प्रसादी किया करते हैं. हजारों लोगों की प्रसादी में कुंड का जल ही उपयोग में लिया जाता है, लेकिन यह जल कभी खत्म नहीं होता.

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उन्होंने बताया कि पूर्व में कई बार अकाल पड़ने के दौरान भी कुंड का जल कभी नहीं सूखा. लोग कुंड के जल को पवित्र और माता के चमत्कार से जोड़कर देखते हैं. इस कुंड को गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है. यहां सर्दी में कुंड का जल गर्म और गर्मी में ठंडा रहता है. कुंड के जल तक पुरुषों को जाने की अनुमति है, लेकिन महिलाएं बाहर से ही कुंड को देख सकती हैं. सेवादार रामसुख बताते हैं कि मंदिर क्षेत्र में मांसाहार और शराब का सेवन पूरी तरह से निषेध है. यहां नवरात्र में दूर-दूर से भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं. यहां राधाष्टमी पर गौरी कुंड माता का मेला भी भरता है.

भैरव करते हैं मंदिर की रक्षा : मंदिर के नीचे भैरव मंदिर है. श्रद्धालु यहां दर्शन करना कभी नहीं भूलते. माना जाता है कि माता के मंदिर के बाहरी क्षेत्र की रक्षा भैरव करते हैं. हाईवे से 5 किलोमीटर भीतर जंगल से होकर पहाड़ी पर गौरी मैया का मंदिर होने के कारण कम ही लोगों को शुद्ध और पवित्र स्थान के बारे में पता है. यही कारण है कि वर्षों बाद तक मंदिर तक सड़क का निर्माण नहीं हो पाया. मंदिर का विकास जनसहयोग से हो रहा है.

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