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गाय के नहीं आने पर पुजारियों ने की क्षमा याचना...जानें 600 साल से चली आ रही इस परंपरा को

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Published : Nov 16, 2020, 4:15 PM IST

केकड़ी में ऐतिहासिक गाय का मेला लगता है. इस मेले की खासियत यह है कि यहां एक भी गाय दौड़ती हुई भगवान की परिक्रमा कर लड्डू खा लेती है तो शुभ माना जाता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो पुजारी क्षमा याचना करते हैं.

केकड़ी में ऐतिहासिक गाय का मेला, Historic cow fair in kekri
केकड़ी में ऐतिहासिक गाय का मेला

केकड़ी (अजमेर). केकड़ी विधानसभा क्षेत्र के सापला गांव में भगवान द्वारकाधीश की धार्मिक नगरी सापला में दीपावली के दूसरे दिन ऐतिहासिक गाय मेला भरता है. जिसको देखने के लिए राजस्थान ही नहीं अपितु हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग आते हैं. यहां गाय दौड़ती हुई मंदिर में जाती है और भगवान के परिक्रमा करके लड्डू खाकर वापस आती है. अगर ऐसा नहीं होता है तो ग्रामीण भगवान की सेवा में कमी मानते हुए पुजारियों के हाथ बांधकर गोपाल महाराज को लाने वाले भक्त दामोदर दास जी की स्थली पर जाकर क्षमा याचना करते हैं.

केकड़ी में ऐतिहासिक गाय का मेला

यह परंपरा राजा-महाराजाओं के जमाने से 600 साल से चली आ रही है. दीपावली पर गाय ठीकरा नहीं आती है तो समूचे क्षेत्र में त्योहार नहीं मनाया जाता है. द्वारिकाधीश गोपाल महाराज की पावन तीर्थ नगरी सांपला में दीपावली के दुसरे दिन अन्नकूट महोत्सव का आयोजन होता है. इस दौरान ऐतिहासिक गाय मेले का आयोजन होता है. जिसमें हजारों गाये भाग लेती हैं. हजारों गायों में से एक गाय भगवान के विमान के नीचे से होकर निकलती है और 1 किलोमीटर से अधिक दूरी तक दौड़कर भगवान के मंदिर तक पहुंचती है.

गाय भगवान गोपाल महाराज के मंदिर के परिक्रमा करके मंदिर के बाहर रखा लड्डू खाकर आती है. अगर ऐसा होता है तो इसे क्षेत्र के लिए अच्छा माना जाता है और अगर ऐसा नहीं होता है तो माना जाता है कि अकाल पड़ता है. इस सुप्रसिद्ध गाय मेले को देखने के लिए देश-प्रदेश से लाखों लोग आते हैं और दिन भर रामा श्यामा का दौर चलता है.

इस दिन द्वारकाधीश गोपाल महाराज के मदिंर में मिश्र प्रह्लाद चंद्र त्रिपाठी द्वारा मदिंर के महंत ओम प्रकाश शर्मा व पूजारी बृजराज शर्मा पुरुषोत्तम शर्मा दीपक शर्मा श्याम सुंदर शर्मा कालू मुकेश शर्मा रामप्रसाद शर्मा महावीर शर्मा धर्मी चंद शर्मा को विधि विधान के साथ हवन करा कर पंचामृत व जनेऊ धारण कराई जाती है. हवन समाप्त होने के बाद ढोल नगाडों व वीर घटाओं की मधुर स्वर लहरियों के बीच भगवान द्वारकाधीश का विमान रवाना होता है जो मुख्य बाजार होता हुआ रावला चौक पहुंचता है, जहां पर राजपूत समाज के गुप्त भक्त चांदकवर, अहिल्याबाई, श्यामा, सुभद्वा, व गौमतीकवंर, व राजपूत समाज के भक्त रतन सिंह राण्या को परम्परागत रूप से चत्काकारी झांकी के रूप में दर्शन दिये जाते हैं.

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इस दौरान चत्मकारी झांकी के दर्शन के लिए रावला चौक व मुख्य बाजार तक लाखों श्रद्धालु चमत्कारी झांकी के दर्शन करने के लिए खड़े रहते हैं। बाद में विमान किर्ति स्तंभ पहुंचता है. जहां पर वर्षाें से चले आ रही भजनाें का भजन गायकों द्वारा भजनो का गुणगान किया जाता है. बाद में मेला ग्राउंड पर हजारों गायों के बीच चांदी से सजे ठीकरे को गायों के बीच घुमाया जाता है.

चार साल से नहीं आई गाय...

चार साल से लगातार गाय मेले में गाय नहीं आने से मेले मे आए लाखों भक्तों को निराशा हाथ लगी. वहीं गाय के नहीं आने पर अकाल पड़ा. गाय के नहीं आने पर मंदिर के पुजारियों द्वारा करते समय याचना करते हैं. अन्नकुट पर भरने वाले गाय मेले में गाय के ठिकरा नहीं आने पर मान्यता के अनुसार गोपाल महाराज की पूजा अर्चना त्रुटि मानते मंदिर के सभी पूजारियों के हाथ बाधकर द्वारकाधीश गोपाल महाराज के अन्नय भक्त दामोदरदास की केकड़ी भीलवाड़ा मार्ग स्थित पद चिन्ह स्थली पर जाकर पूजारियों ने क्षमा याचना करवाई जाती है व नियमानुसार सवा रूपये चांदी का जुर्माना का दण्ड किया जाता है.

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