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Special: विदेश से लौटी महिला ने सरपंच बन बदल दी इस गांव की तस्वीर, पति हैं IPS

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Published : Jan 13, 2020, 1:40 PM IST

हौसलें अगर बुलंद हों तो मंजिलें आसान हो जाती हैं. कुछ कर गुजरने का जज्बा अगर हममें हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता. हमारी जिंदगी का हर पल इम्तिहानों से भरा होता है. कदम-कदम पर मुश्किलों का सामना होता है और मुश्किलों से भाग जाना तो आसान होता है. साथ ही सामना करने वालों के कदमों में जहां होता है. किसी ने क्या खूब कहा है- 'तारों में अकेला चांद जगमगाता है, मुश्किलों में अकेला इंसान डगमगाता है, हमें कांटों से घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि कांटों में ही गुलाब मुस्कुराता है. कुछ ऐसी ही दास्तां इस स्पेशल खबर में...

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आईएएस की बेटी, आईपीएस की पत्नी विदेश में नौकरी छोड़ बनी थीं सरपंच

सीकर. प्रदेश में पंचायत चुनाव का दौर चल रहा है. चुनाव में विकास के दावे भी खुलकर किए जा रहे हैं. इन दावों में कितनी हकीकत है, यह किसी से छुपी नहीं है. हर प्रत्याशी अपने-अपने कामों को जनता के सामने लाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. लेकिन सीकर जिले में एक ऐसी महिला सरपंच भी हैं, जिन्होंने पिछले 5 साल में गांव की सूरत ही बदल डाली.
यह महिला सरपंच आईएएस की बेटी हैं और आईपीएस की पत्नी. अपने 5 साल के कार्यकाल में इन्होंने गांव का विकास करवाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी. अब ये एक बार फिर से मैदान में हैं. ये हैं सीकर जिले के बेसवा गांव की रहने वाली सरपंच जरीना खान.

आईएएस की बेटी, आईपीएस की पत्नी विदेश में नौकरी छोड़ बनी थीं सरपंच

सीकर जिले का बेसवा गांव...

वैसे तो यह गांव काफी विकसित है और यहां संपन्न परिवारों की भी कोई कमी नहीं है. पिछले कुछ सालों में खाड़ी देशों से सबसे ज्यादा पैसा इसी गांव में आया है. लेकिन 5 साल पहले गांव के लोगों ने जरीना खान को सरपंच बनने का मौका दिया. जरीना खान के पिता भी आईएएस अधिकारी रहे हैं. जरीना की ज्यादातर पढ़ाई विदेश में हुई है. उनके पति अरशद अली आईपीएस हैं. जरीना विदेश में बैंक में लाखों रुपए की नौकरी छोड़कर गांव की पंचायती में आईं.

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वे बताती हैं कि जब भी गांव आती थीं तो सोचती थीं कि इस गांव का विकास करूं. इसलिए उन्होंने सरपंच बनने की सोची और गांव के लोगों ने उन्हें मौका भी दिया. सरपंच बनने के बाद जरीना ने अपनी मेहनत से गांव के विकास कार्य करवाए और खुद की योग्यता का भी पूरा उपयोग किया. आज बेसवा गांव का विकास अलग ही नजर आता है.

ये बड़े काम करवाए जरीना ने...

गांव में अस्पताल के लिए खुद के ही परिवार के लोगों से बात की और अपनी 8 बीघा जमीन अस्पताल के लिए दान करवाई. सरपंच के बजट से अस्पताल बनना संभव नहीं था, इसलिए खुद से मेहनत कर सरकार से बजट लाने की ठान ली. काफी मशक्कत के बाद गांव में अस्पताल स्वीकृत करवा लिया. आज यह अस्पताल बनकर तैयार हो चुका है. इसके बाद गांव से पैसे इकट्ठे कर बालिका विद्यालय खुलवाया.

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इन बड़े कामों के अलावा भी जरीना ने गांव की गली-गली में सीमेंट की सड़कें बनवाई. गांव में हाई मास्क लाईट लगवाईं. आज बेसवा गांव शहर जैसा नजर आता है. वहीं समाज की कुरीतियों के खिलाफ भी जरीना ने जमकर संघर्ष किया और आज उनके समाज में बिना दहेज के शादियां भी होने लगी हैं.

Intro:सीकर 

प्रदेश में पंचायत चुनाव का दौर चल रहा है। पंचायत चुनाव में विकास के दोवे भी खुलकर किए जा रहे हैं। इन दावों में कितनी हकीकत है यह किसी से छिपी नहीं है। हर प्रत्याशी अपने अपने कामों को जनता के सामने कोई कसर नहीं छोड़ रहा है लेकिन सीकर जिले में एक ऐसी महिला सरपंच भी हैं जिन्होंने पिछले पांच साल में गांव की सूरत ही बदल दी। यह महिला सरपंच आईएएस की बेटी है और आईपीएस की पत्नी। अपने पांच साल के कार्यकाल में इन्होंने गांव का विकास करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और अब एक बार फिर से मैदान में है। यह महिला है सीकर जिले के बेसवा गांव की सरपंच जरीना खान। 


Body:सीकर जिले का बेसवा गांव। वैसे तो यह गांव काफी विकसित है और यहां संपन्न परिवारों की भी कोई कमीं नहीं है। पिछले कुछ बरसों में खाड़ी देशों से सबसे ज्यादा पैसा इसी गांव में आया है। लेकिन पांच साल पहले गांव के लोगों ने जरीना खान को सरपंच बनने का मौका दिया। जरीना खान के पिता जी खान भी आईएएस अधिकारी रहे हैं। जरीना की ज्यदात्तर पढ़ाई विदेश में हुई है। उनके पति अरशद अली आईपीएस हैं। जरीना विदेश में बैंक में लाखों रुपए की नौकरी छोडक़र गांव की पंचायती में आई। वे बताती हैं कि जब भी गांव आती थी तो सोचती थी कि इस गांव का विकास करूं। इसलिए उन्होंने सरपंच बनने की सोची और गांव के लोगों ने उन्हें मौका भी दिया। सरपंच बनने के बाद जरीना ने अपनी मेहनत से गांव के विकास कार्य करवाए और खुद की योग्यता का भी पूरा उपयोग किया। आज बेसवा गांव का विकास अलग ही नजर आता है। 


ये बड़े काम करवाए जरीना ने 

गांव में अस्पताल के लिए खुद के ही परिवार के लोगों से बात की और परिवार की आठ बीघा जमीन अस्पताल के लिए दान करवाई। सरपंच के बजट से अस्पताल बनना संभव नहीं था इसलिए खुद ने मेहनत कर सरकार से बजट लाने की ठान ली। काफी मशक्कत के बाद गांव में अस्पताल स्वीकृत करवा लिया। आज यह अस्पताल बनकर तैयार हो चुका है। इसके बाद गांव से पैसे इकट्ठे बकर बालिका विद्यालय खुलवाया। इन बड़े कामों के अलावा भी जरीना ने गांव में गली गली में सीमेंट की सडक़ें बनवाई। गांव में हाईमास्क लाईट लगवाई। आज बेसवा गांव शहर जैसा नजर आता है। समाज की कुरीतियों के खिलाफ भी जरीना ने जमकर संघर्ष किया और आज उनके समाज में बिना दहेज के शादियां होने लगी हैं। 


Conclusion:बाईट
1 जरीना खान, सरपंच बेसवा
2 ग्रामीण
3 ग्रामीण
4 ग्रामीण
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