कोटा. प्रदेश के कोटा जिले को शिक्षा नगरी के नाम से भी जाना जाता है. जिले में मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए बाहर के राज्यों और अन्य जिलों से लगभग दो लाख छात्र आते हैं, लेकिन लॉकडाउन के दौरान यहां के ज्यादातर छात्रों को उनके गृह राज्यों में भेजा गया है. जिससे अब ज्यादातर हॉस्टल सुनसान पड़े हुए हैं. जिससे हॉस्टल मालिकों और संचालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. जहां पहले एक महीने में हॉस्टल से लाखों रुपए की इनकम हो रही थी. अब यह हजारों भी नहीं बची है. कुछ हॉस्टल तो ऐसे हैं. जहां का रेवेन्यू शून्य ही हो गया है.
हर माह दे रहे 55 करोड़ की EMI...
चंबल हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष शुभम अग्रवाल का कहना है कि हमारे पास कोटा में 2 लाख बच्चों के रहने की व्यवस्था है. जिनमें से अधिकांश हॉस्टल में रहते हैं. कोटा शहर के अलग-अलग हिस्सों में तीन हजार हॉस्टल हैं. जिनके संचालकों पर 5,000 करोड़ का कर्जा है. करीब हर माह 55 से 60 करोड़ रुपये किश्त के रूप में जा रहे हैं. जो भी रेवेन्यू मिलता है, उसमें से 60 से 70 फीसदी EMI में ही चला जाता है.
कोचिंग शरू नहीं हुई तो भारी नुकसान होगा...
शुभम अग्रवाल के अनुसार कोचिंग संस्थानों के नहीं चलने से आज की तारीख में खर्चा निकालना मुश्किल हो गया है. हमारे यहां 3 से 4 साल पुराना स्टाफ है. उन्हें निकाल नहीं सकते हैं. किसी को आधी, किसी को 60 या 70 परसेंट सैलरी दे रहे हैं. अब तो एक ही आशा है कि कोटा में कोचिंग दोबारा शुरू हो, नहीं तो भारी नुकसान होगा.
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बर्बाद हो जाएंगे हॉस्टल मालिक...
कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि कोटा की कोचिंग संस्थानों में इस बार बच्चे नहीं आए, तो मान कर चलिए कि कोटा के कोचिंग और हॉस्टल वाले बर्बाद हो जाएंगे. कोटा के लिए कोचिंग शुरु होना बहुत जरूरी है. अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार से ही सारी उम्मीदें हैं.
दो लाख की जगह एक हजार बच्चे...
कोटा में राजीव गांधी, इंदिरा विहार, न्यू राजीव गांधी नगर, महावीर नगर, तलवंडी, लैंडमार्क सिटी, केरल सिटी, इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स, रोड नंबर 1, इंडस्ट्रीज एरिया और विज्ञान नगर में कोचिंग छात्रों के रहने के लिए हॉस्टल बने हुए हैं. हॉस्टल संचालक निर्मल अग्रवाल का कहना है कि जहां हॉस्टल्स में 80 से 90 फीसदी ऑक्यूपेंसी रहती थी. अब एक हॉस्टल में एक या दो बच्चे ही रह हैं. अधिकांश हॉस्टल में ताले लगे हुए हैं.
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50 हजार महीने का खर्चा...
शहर के कुछ हॉस्टल में इक्के दुक्के बच्चे रहते हैं. वहां भी रेवेन्यू और खर्चे में बड़ा अंतर है. इनकम से खर्चा 10 गुना हो रहा है. संचालकों का कहना है कि जहां पर हमें 1,000 रुपये मिल रहे हैं, वहां 10 हजार रुपये खर्चा हो रहा है. बिजली और पानी का बिल है. स्टाफ की सैलरी भी है. कुछ हॉस्टल में तो एक भी बच्चा नहीं है. एक हॉस्टल को 50 से 70 हजार रुपये का नुकसान हो रहा है.
10 हजार लोगों की नौकरी पर असर...
अधिकांश हॉस्टल में 10 से 15 जनों का स्टाफ कार्यरत रहता था. जिनमें 24 घंटे सिक्योरिटी गार्ड, कुक, खाना परोसने और हॉस्पिटैलिटी से जुड़े कार्मिक काम करते थे, लेकिन अब जब बच्चे ही हॉस्टल में नहीं हैं, तो हॉस्टल संचालकों ने इन लोगों को हटा दिया है. अधिकांश हॉस्टल में इक्के-दुक्के कर्मचारी ही कार्यरत हैं. कई हॉस्टल तो ऐसें हैं, जहां पर सभी कार्मिकों को हटा दिया गया है. केवल सिक्योरिटी गार्ड ही लगे हुए हैं. इनके अनुसार अनुमानित करीब 10 हजार से ज्यादा लोगों का रोजगार चला गया है.
किराएदार तो हैं, लेकिन रूम नहीं...
कोटा के अधिकांश हॉस्टल में सिंगल रूम ही बने हुए हैं. हॉस्टल मालिक आकाश गेरा का कहना है कि एक रूम में एक ही बच्चा रह सकता है. इसके चलते दूसरे लोगों को भी इन्हें किराए पर नहीं दिया जा सकता है. फैमिली वाले आते तो हैं, लेकिन उनके अनुसार बिल्डिंग नहीं बनी है. ऐसे में कोचिंग के बच्चों के अलावा दूसरे लोगों से इनकम भी नहीं हो सकती है.
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बिल्डिंग की मेंटेनेंस रुकी...
हॉस्टल संचालक राजकमल एरन का कहना है कि रेवेन्यू नहीं आने के चलते, बिल्डिंग की मेंटेनेंस भी नहीं हो पा रही है. कोचिंग एरिया के नजदीक ही अधिकांश हॉस्टल हैं. इसके चलते पूरा एरिया सुनसान रहता है. बच्चे भी सड़क पर नजर नहीं आते हैं. पूरे एरिया में रात को चोरों का खतरा बना रहता है. चोर गैंग बना कर आते हैं और सामानों को लगातार चुरा कर ले जा रहे हैं. ऐसे में प्रशासन को हॉस्टल संचालकों के बारे में सोचना चाहिए.