जोधपुर: जोधपुर (Jodhpur) के भीतरी शहर में जैन परिवार के लोग 9 पीढ़ियों से बही खाते बनाने का ही काम करते आ रहे हैं. इनकी बहियां पूरे मारवाड़ में जाती हैं. धनतेरस (Dhanteras) व पुष्य नक्षत्र (Pushya Naksthra) के दिन लोग मुहूर्त के हिसाब से अपने अपने प्रतिष्ठान के लिए बहियां खरीदते हैं.पिछले साल बहियों का मार्केट डाउन रहा. वजह महामारी कोरोना ही रही लेकिन इस बार थोडी उम्मीद बनी है. हालांकि डिमांड अब भी मंद है- डिजिटल इंडिया में कागजों की मांग ज्यादा नहीं है.
शहरी क्षेत्र में बंद हो गए प्रतिष्ठान
इस काम से जुड़े ललित जैन का कहना है- बीते दो सालों में जो लोग एक साथ कई फर्म से काम करते थे उन्होंने अपनी अतिरिक्त फर्में बंद कर दी है. इसके अलावा बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्र में प्रतिष्ठान बंद होने का असर भी हमारे काम पर आया है. यह माना जा रहा है कि तीस से चालीस फीसदी बिक्री में गिरावट रहेगी.
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ऐसी बनती है बही!
लाल कपड़े की दस्तरी पर आकर्षक सिलाई के साथ पीले पन्नों में बने बही (Bahi Khata) बेहद आकर्षक लगते हैं.आज से दो दशक पहले तक हर दुकान पर लाल बही नजर आती थी. इसके निर्माण में भी पूरी मेहनत लगती है. दस्तरी बनने के बाद पीले पन्नों के साथ फिर सिलाई होती है. बही के एक पन्ने को आठ सिलवटों में बांटा जाता है. जिसमें बांई तरफ व्यापारी की आवक और दांई तरफ खर्च का विवरण लिखा जाता है.
कंप्यूटर के दौर में दुकानों में पुराने मुनीम भी नहीं रहे तो बही भी लुप्त हो गई. ऐसे में लंबी बहियों की जगह रजिस्टर नुमा बहियां बनाए जाने लगी हैं. जिससे नए लोग भी इसका उपयोग कर सकें.