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हिंदी दिवस विशेष: विश्व विरासत जयपुर के परकोटा की हर गली हर बाजार में है हिन्दी की रंगत

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Published : Sep 12, 2020, 7:01 PM IST

Updated : Sep 14, 2020, 9:38 AM IST

आज हिंदी दिवस पर हम आपको ऐसे शहर से रूबरू करवाने जा रहे हैं जहां गलियों और बाजारों में देवनागरी की मिठास घुली है. उन रास्तों और मोहल्लों से रूबरू कराएंगे जहां की फिजा में हिन्दी खुशबू बसी हुई है. यहां की बसावट में ही मानों हिंदी बसी है. साथ ही जानेंगे शहर को लेकर राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भाषाविद कलानाथ शास्त्री के विचार.

The sweetness of Hindi has dissolved in the streets and markets of Parkota
परकोटे की गलियों और बाजारों में घुली है हिन्दी की मिठास

जयपुर. ऐसा शहर जहां सुंदर नगरों, हवेलियों और किलों की भरमार हो. जिसे जीत का नगर कहते हों और हर कोई उस नगर को कदमों से नापना चाहता हो. जहां के परकोटे की गुलाबी बसावट उसे वर्ल्ड हेरिटेज सिटी से नवाजती है और जिसे गुलाबी नगरी के नाम से जाना जाता है. यहां बात हो रही है जयपुर शहर की, जहां आज भी हिंदी जिंदा है. यहां के बाशिंदे आज भी हिंदी भाषा को सहेजे हुए हैं.

परकोटे की गलियों और बाजारों में घुली है हिन्दी की मिठास

गुलाबीनगरी की सिर्फ 'बैठो सा', 'आओ सा' जैसी बातें ही सुहावनी नहीं लगती बल्कि वहां के बाजारों, गलियों और रास्तों का हिंदी से अटूट प्रेम हर किसी को उसका मुरीद कर देगा. दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर देंगा. जयपुर यानी पुराना शहर परकोटा, जहां आज भी गुलाबी पत्थर पर बाज़ारों, गलियों और रास्तों के नाम सिर्फ और सिर्फ हिंदी में उकेरे हुए है. यहां तक की परकोटे में 50 हजार से अधिक दूकानों के नाम भी सिर्फ हिंदी में नाम लिखे है. जहां आज भी सालों से एकरूपता बरकरार है.

Even today, the names of shops are written in Hindi in the market of Parkote
परकोटे के बाजार में आज भी हिन्दी में लिखे हैं दुकानों के नाम

राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित देवर्षि कलानाथ शास्त्री ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि विश्वविख्यात गुलाबी नगरी का हेरिटेज के साथ हिंदी से भी विशेष रिश्ता रहा है जिसे वह आज भी निभा रहा है. इसकी चहारदीवारी के बाजारों, रास्तों और गलियों के नाम आज भी हिंदी में ही उकेरे हुए हैं और यही इस शहर की विशेष पहचान भी है.

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इसके साथ ही परकोटे के पुराने बाजारों और कॉलोनियों के नाम भी हिंदी में लिखे हुए हैं. जयपुर रियासत के समय से ही बाजारों और कपाटों के नाम देवनागरी लिपि में ही लिखे हुए हैं. सन 1942 में सर मिर्जा इस्माइल यहां दीवान बनकर आए थे. उन्होंने जयपुर के बाजारों और वहां स्थित दुकानों को एक रूप में रंगवा दिया. उस रंग के साथ दुकानों के नाम जो लिखे गए थे वह सफेद पट्टी पर देवनागरी में लिखे गए, जो आज भी परकोटे में यथावत है.

The names of the paths are also written in Hindi
रास्तों के नाम भी लिखे हैं हिन्दी में

हांलाकि बीच में जब अव्यवस्था होने लगी और दुकानों के नाम रोमन में लिखे जाने लगे थे. जबकि यहां के नाम, जातियां ये सब हिंदी में ही सही लिखी जाएगी. अंग्रजी में लिखने से तो समस्या उतपन्न हो जाएगी. खास बात यह है कि जिन दुकानों के नाम देवनागरी लिपि में उकेरे गए हैं वो सभी एक साइज, एक समान रूप से लिखे हुए हैं. लेकिन आज हिंदी दिवस मनाए जाने के बावजूद अंग्रेजी हम सब पर हावी हो रही है. ऐसे में हिंदी दिवस पर विचार करने का दिन है.

जयपुर और हिंदी का जुड़ाव बराबर रहा है. यहां के राजा अंग्रेजी के बहुत बड़े विद्वान हुआ करते थे किंतु वे हिंदी के हमेशा समर्थक रहे. जब स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था उस समय हिंदी के पक्ष में अनेक कार्य हुए. इसमें इतिहास का अद्भुत काम सितंबर सन 1942 में हिंदी साहित्य सम्मेलन हुआ. इसमें उस समय के सारे बड़े-बड़े विद्वानों ने हिस्सा लिया.

Names in Hindi are written on buildings
भवनों पर लिखे हैं हिन्दी में नाम

सन 1942 के हिंदी साहित्य सम्मेलन से हिंदी का प्रचार तेजी से हुआ. हिंदी की अनेक पाठशालाएं खुलीं. उस समय हिंदी अनिवार्य विषय नहीं बल्कि ऐच्छिक विषय हुआ करता था. लेकिन हिंदी का प्रसार हो इसके लिए बराबर जयपुर में आंदोलन होते रहे. ऐसे में जयपुर हिंदी विद्वानों के लिए प्रसिद्ध होने के साथ देवनागरी की गतिविधियों को लेकर भी विख्यात है. उन्होंने कहा कि अफसोस है कि नई पीढ़ी इससे महरूम हो रही है. वे अंग्रेजी की इस भूलभुलैया में खो रहे हैं. ऐसे में हिंदी दिवस पर फिर से याद करने की आवश्यकता है कि हमारे नाम, पते और विज्ञापन आदि हिंदी में ही हों क्योंकि गांव के लोग आज भी हिंदी ही समझते हैं.

आज भले ही सरकारी कामकाज और कार्यालयों में हिंदी की जगह अंग्रेजी भाषा ने ले ली हो लेकिन जयपुर का परकोटा आज भी देवनागरी लिपि को संजोए हुए है. चहारदीवारी की जितनी भी दुकानें, गली-मोहल्ले और बाजार हैं उनमें हिन्दी में सबकुछ लिखा हुआ है. ऐसे में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए देवनागरी का प्रचार-प्रसार बहुत आवश्यक है. हिंदी दिवस पर सभी को एकजुट होकर देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार का संकल्प लेना चाहिए.

Last Updated : Sep 14, 2020, 9:38 AM IST
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