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जन्माष्टमी स्पेशल: श्रीकृष्ण के बालपन से लेकर द्वारकाधीश तक की कहानी...संस्कृत विद्वान कलानाथ शास्त्री की जुबानी

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Published : Aug 22, 2019, 10:09 PM IST

ईटीवी भारत पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जानिए संस्कृत के जाने माने विद्वान कलानाथ शास्त्री से भगवान कान्हा के बालपन से लेकर द्वारधीश तक की कहानी...

Story of Shri Krishna, श्रीकृष्ण की कहानी

जयपुर. भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था. उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था. यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. भगवान श्री कृष्णा के अनेकों आयाम है. जिसके चलते श्री कृष्णा देश की आत्मा पर पांच हजार वर्ष से अधिक समय से बराबर छाए हुए है. माना जाता है कि श्रीकृष्ण के जितने रूप है वो किसी भी देवी देवता के इतने रूप नहीं है. जानिए कृष्ण के बालपन से लेकर द्वारकाधीश, राधा कृष्ण के रहस्य और उनके पटरानियां के बारे में.

कृष्ण का 'जगद्गुरू' रूप

पढ़ें- राजस्थान का ऐसा मंदिर...जहां जन्माष्टमी पर दी जाती है 21 तोपों की सलामी

संस्कृत के जाने माने विद्वान कलानाथ शास्त्री ने भगवान श्रीकृष्ण के बारे में बताया कि श्री कृष्णा के अनेकों रूप है. लेकिन उनको चार से पांच रूप में अधिक जाना गया है. पहला जगद्गुरू कृष्ण 'कृष्णम वंदे जगद्गुरुम' जिन्होंने गीता का अमर किया और योगीश्वर के रूप में जाने जाते है. दूसरा बालपन वाला जिसमें श्री कृष्ण का श्रृंगार, वात्सल्य और माधुरी देख सकते है. माखन चोर, मुरली मनोहर, गाय चराने वाले कृष्ण ने बालपन में जो लीलाएं की वो अधिक मधुर, सरस थी. जिनके कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ गयी थी.

कृष्ण का 'द्वारकाधीश' स्वरुप

तीसरा युवा अवस्था में नटनागर कृष्ण. जिन्होंने महारास रचाया और जब से राधा का स्वरूप सबने देखा. तब से नटनागर कृष्ण की पूजा होने लगी. राजधानी जयपुर के आराध्य गोविंद देव जी मंदिर में नटनागर कृष्ण राधा के साथ विराजमान है. चौथा उनका 'योद्धा' कृष्ण का है. जिन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन का रथ चलाया था और पूरे युद्ध का मार्गदर्शन किया था. साथ ही कौरवों और पांडवों के बीच में युद्ध ना हो इसके लिए श्री कृष्ण ने दोनों के बीच में संधि करवाने के लिए दुर्योधन के पास गए और युद्ध ना होने के लिए आग्रह किया. वही अंत में द्वारकाधीश कृष्ण थे जो अनेक पटरानियों के सम्राट से सुदामा को मालामाल कर दिया. द्वारकाधीश कृष्ण द्वारका में पूजे जाते है. द्वापर युग के अंत में हुए कृष्ण भगवान की महिमा अपरंपार थी और कृष्ण के अंत से कलयुग प्रारंभ हुआ.

'योद्धा' कृष्ण का स्वरुप

जानिए क्यों कहा जाता है श्री कृष्ण को 16 कलाओं अवतार
श्रीकृष्ण चंद्रवंशी है और आधी रात को जब चांद निकल रहा था, तब कृष्ण का जन्म हुआ था. वहीं राम सूर्यवंशी है और उनका जन्म जब सूर्य ऊपर चढ़ रहा था तब हुआ था. कृष्ण चंद्रवंशी है और चंद्र सोलह कलाओं के स्वामी है. इसलिए कृष्ण भी सोलह कलाओं के अवतार है. इसलिए कृष्ण में मधुरता भी थी, रसिकता, संगीत, युद्ध, क्रोध, शौर्य, ज्ञान, योग आदि सब था.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: राजस्थान के इस दरगाह पर बहती है गंगा जमुनी तहजीब की धारा...हिंदू-मुस्लिम मिलकर मनाते हैं जन्माष्टमी

राधा-कृष्ण का रहस्य
कृष्ण भगवान की अनेकों पटरानियां थी, लेकिन राधा उनकी पटरानी नहीं थी. राधा कृष्ण का संबंध अद्भुत है. राधा कृष्ण अद्भुत अटूट प्रेम, अंचल प्रेम के प्रतीत हैं. दोनों प्रेम के प्रतीक माने जाते है. राधा बरसाने की थी और कृष्ण ब्रज के थे. राधा गोपी थी और राधा ने अपना मन पूरी तरह से कृष्ण को दे दिया और कृष्ण भी राधा के प्रेम में रम गए थे. राधा कृष्ण का अद्भुत प्रेम ऐसा था कि कृष्ण भगवान ने अपने आप को न्यौछावर कर दिया.

Intro:जयपुर- भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की गणगोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। उनका जन्म द्वारपर युग मे हुआ था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान श्री कृष्णा के अनेकों आयाम है जिसके चलते श्री कृष्णा देश की आत्मा पर पांच हजार वर्ष से अधिक समय से बराबर छाए हुए है और माना जाता है कि श्री कृष्ण के जितने रूप है वो किसी भी देवी देवता के इतने रूप नहीं है। जानिए कृष्ण के बालपण से लेकर द्वारकाधीश, राधा कृष्ण के रहस्य और उनके पटरानियां के बारे में।


Body:संस्कृत के जाने माने विद्धवान कलानाथ शास्त्री ने बताया कि श्री कृष्णा के अनेकों रूप है लेकिन उनको चार से पांच रूप में अधिक जाना गया है। पहला जगद्गुरु कृष्ण कृष्णम वंदे जगद्गुरुम जिन्होंने गीता का अमर किया और योगीश्वर के रूप में जाने जाते है, दूसरा बालपन वाला जिसमें आप श्री कृष्ण का श्रृंगार, वात्सल्य और माधुरी देख सकते है। माखन चोर, मुरली मनोहर, गाय चराने वाले कृष्ण ने बालपण में जो लीलाएं की वो अधिक मधुर, सरस थी जिनके कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ गयी थी। तीसरा युवा अवस्था में नटनागर कृष्ण जिन्होंने महारास रचाया और जब से राधा का स्वरूप सबने देखा तब से नटनागर कृष्ण की पूजा होने लगी। राजधानी जयपुर के आराध्य गोविंद देव जी मंदिर में नटनागर कृष्ण राधा के साथ विराजमान है। चौथा उनका योद्धा कृष्ण का है जिन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन का रथ चलाया था और पूरे युद्ध का मार्गदर्शन किया था साथ ही कौरवों और पांडवो के बीच मे युद्ध ना हो इसके लिए श्री कृष्ण ने दोनो के बीच मे संधि करवाने के लिए दुर्योधन के पास गए और युद्ध ना होने के लिए आग्रह किया। वही अंत में द्वारधीश कृष्ण थे जो अनेक पटरानियों के सम्राट से सुदामा को मालामाल कर दिया। द्वारकाधीश कृष्ण द्वारका में पूजे जाते है। द्वापर युग के अंत मे हुए कृष्ण भगवान की महिमा अपरंपार थी और कृष्ण के अंत से कलयुग प्रारंभ हुआ।

जानिए क्यों कहा जाता है श्री कृष्ण को 16 कलाओं अवतार
श्री कृष्ण चंद्रवंशी है और आधी रात को जब चांद निकल रहा था तब कृष्ण का जन्म हुआ था। वही राम सूर्यवंशी है और उनका जन्म जब सूर्य ऊपर चढ़ रहा था तब हुआ था। कृष्ण चंद्रवंशी है और चंद्र सोलह कलाओं के स्वामी है इसलिए कृष्ण भी सोलह कलाओं के अवतार है। इसलिए कृष्ण में मधुरता भी थी, रसिकता, संगीत, युद्ध, क्रोध, शौर्य, ज्ञान, योग आदि सब था।

राधा कृष्ण का रहस्य
कृष्ण भगवान की अनेकों पटरानियां थी लेकिन राधा उनकी पटरानी नहीं थी। राधा कृष्ण का संबध अद्भुत है। राधा कृष्ण अद्भुत अटूट प्रेम, अंचल प्रेम के प्रतीत है। दोनो प्रेम के प्रतीक माने जाते है। राधा बरसाने की थी और कृष्ण बृज के थे। राधा गोपी थी और राधा ने अपना मन पूरी तरह से कृष्ण को दे दिया और कृष्ण भी राधा के प्रेम में रम गए थे। राधा कृष्ण का अदभुत प्रेम ऐसा था कि कृष्ण भगवान ने अपने आप को न्योछावर कर दिया।

इसमें वन टू वन है।


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