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लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें ऐसी कि खुश नहीं छात्रनेता, राजनीतिक करियर पर लगा ग्रहण

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Published : Aug 23, 2022, 12:44 PM IST

Updated : Aug 24, 2022, 1:10 PM IST

लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें ऐसी हैं जिसे लेकर छात्र नेता अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. राजस्थान विवि के छात्रसंघ चुनावों में एक बार फिर प्रदेश में इसकी भूमिका पर चर्चा हो रही है.

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लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें ऐसी कि खुश नहीं छात्रनेता

जयपुर. छात्रनेता मानते हैं कि छात्रसंघ चुनाव में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों ने कइयों की राजनीतिक गाड़ी के टायर में कील का काम कर दिया है (Rajasthan Student Union Election 2022). नियमों के कारण छात्र राजनीति अब सालभर तक सिमट कर रह गई है. नियमों के जाल में सब फंस कर रह गए हैं. अब सर्वोच्च बॉडी के किसी भी पद पर चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी नियमों के चलते दोबारा चुनाव नहीं लड़ सकते जबकि 2005-06 से पहले छात्रनेता पांच से छह साल तक विश्वविद्यालय की राजनीति में सक्रिय रहते थे. वहीं 5000 रुपए में चुनाव लड़ना और उम्र की बाध्यता भी छात्र नेताओं के गले की फांस बन गया है. नतीजन अनुभव की कमी के कारण उन्हें छात्रसंघ चुनाव के आगे राजनीतिक पटल पर उचित सफलता नहीं मिल पाई.

2005-06 से पहले के छात्रसंघ अध्यक्ष विधायक, मंत्री और सांसद तक बने. इसके बाद छात्रसंघ चुनाव पर रोक लग गई और फिर 2009-10 में जब छात्र संघ चुनाव दोबारा शुरू हुए तो लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें लागू हुईं, जिसने छात्र राजनीति की शक्ल बदल कर रख दी. इसे अनुभव का अभाव ही कहेंगे कि छात्रसंघ चुनाव लड़कर अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने वाले छात्र नेता कभी विधानसभा तक नहीं पहुंच पाए.

लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें ऐसी कि खुश नहीं छात्रनेता

तब राजनीति में सुनहरा अध्याय लिखा - 2005-06 से पहले के छात्रसंघ चुनाव जीत कर निकले पदाधिकारियों ने प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में सुनहरा अध्याय लिखा. देश के संसद से लेकर प्रदेश की विधानसभा तक राजस्थान के अलग-अलग विश्वविद्यालयों से निकले छात्रसंघ अध्यक्ष और पदाधिकारियों का बोलबाला रहा है. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी, यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने भी छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. कैबिनेट मंत्री महेश जोशी, प्रताप सिंह खाचरियावास और पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा भी राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं. इसके अलावा राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे राजकुमार शर्मा भी विधायक हैं. वहीं महेंद्र चौधरी, पुष्पेन्द्र भारद्वाज, नगेन्द्र सिंह शेखावत, नरेश मीणा, मनीष यादव भी राजस्थान विश्वविद्यालय से ही निकले हैं.

मोदी सरकार में भी राजस्थान की छात्र राजनीति से निकले गजेंद्र सिंह शेखावत काबिज हैं. सांसद हनुमान बेनीवाल भी राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे. इनके अलावा राजस्थान विश्वविद्यालय से अध्यक्ष रहे कालीचरण सराफ, राजेन्द्र राठौड़ गत भाजपा सरकार में मंत्री और विधायक हैं. पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत भी राजस्थान विश्वविद्यालय में अध्यक्ष रहे चुके हैं वहीं चौमूं विधायक रामलाल शर्मा और आमेर विधायक सतीश पूनिया राजस्थान विश्वविद्यालय से महासचिव रह चुके हैं. वर्तमान में सांगानेर विधायक अशोक लाहोटी भी राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं. इसके अलावा बीजेपी में शामिल अखिलेश शुक्ला, प्रणवेंद्र शर्मा, श्याम शर्मा, जितेन्द्र श्रीमाली राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं.

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लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों से पहले बने अध्यक्ष
1. आदर्श किशोर सक्सेना1967-68
2. ज्ञान सिंह चौधरी1968-69
3. हुकुम सिंह 1969-70
4. भरत पंवार1970-71
5. विजय प्रभाकर1971-72
6. विमल चौधरी 1973-74
7. काली चरण सराफ1974-75
8. राजेंद्र राठौड़1978-79
9. महेश जोशी 1979-80
10. राजपाल सिंह शेखावत 1980-81
11. रघु शर्मा 1981-86
12. चंद्रशेखर 1986-89
13. प्रणवेंद्र शर्मा 1989-91
14. अखिल शुक्ला 1991-92
15. प्रताप सिंह खाचरियावास 1992-93
16. जितेंद्र श्रीमाली 1993-94
17. सोमेंद्र शर्मा 1994-95
18. महेंद्र चौधरी 1995-96
19. श्याम शर्मा 1996-97
20. हनुमान बेनीवाल1997-98
21. रणवीर सिंह गुढ़ा1998-99
22. राजकुमार शर्मा 1999-2000
23. अशोक लाहोटी 2000-01
24. नगेंद्र सिंह शेखावत 2001-02
25. पुष्पेंद्र भारद्वाज 2002-03
26. जितेंद्र मीणा 2003-04
27. राजपाल शर्मा 2004-05

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लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के साथ बने अध्यक्ष :
28. मनीष यादव 2010-11
29. प्रभा चौधरी 2011-12
30 राजेश मीणा 2012-13
31. काना राम जाट 2013-14
32. अनिल चौपड़ा 2014-15
33. सतवीर चौधरी 2015-16
34. अंकित धायल 2016-17
35. पवन यादव 2017-18
36. विनोद जाखड़ 2018-19
37. पूजा वर्मा 2019

ये हैं लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें जिससे बंधे हैं उम्मीदवार-

  • स्नातक कर रहे 17 से 22 वर्ष के बीच की आयु के छात्र चुनाव लड़ सकते हैं.
  • 4 वर्षीय पाठ्यक्रम में 17 से 23 वर्ष और 5 वर्षीय पाठ्यक्रम में 17 से 24 वर्ष तक विद्यार्थी चुनाव में भाग ले सकते हैं.
  • स्नातकोत्तर छात्रों के लिए वैध तरीके से चुनाव लड़ने की अधिकतम आयु सीमा 26 वर्ष है.
  • शोधार्थियों के लिए वैध रूप से चुनाव लड़ने की अधिकतम आयु सीमा 28 वर्ष है.
  • छात्र संघ चुनाव के लिए उम्मीदवार के खाते में किसी भी परिस्थिति में कोई शैक्षणिक बकाया चुनाव लड़ने की वर्ष में नहीं होना चाहिए.
  • उम्मीदवार की उपस्थिति का न्यूनतम प्रतिशत विश्वविद्यालय की ओर से निर्धारित किया गया हो या 75% उपस्थिति.
  • उम्मीदवार के पास पदाधिकारी के पद के लिए चुनाव लड़ने का एक हो मौका होगा और कार्यकारी सदस्य के पद पर चुनाव लड़ने के लिए दो अवसर होंगे.
  • उम्मीदवारों का पूर्व में कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए.
  • उम्मीदवार अपने महाविद्यालय विश्वविद्यालय का नियमित और पूर्णकालिक विद्यार्थियों होना चाहिए.
  • एक प्रत्याशी अधिकतम ₹5000 ही खर्च कर सकेगा.
  • प्रिंटेड पोस्टर-बैनर या प्रचार सामग्री के प्रयोग की अनुमति नहीं होगी.

न पोस्टर, न बैनर...ये कैसा चुनाव: पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और विधायक अशोक लाहोटी ने कहा कि छात्र संघ चुनाव अब क्लास मॉनिटर की तरह हो गए हैं. न पोस्टर लगा सकते हैं, न बैनर और न वोट मांग सकते हैं और एक झूठा सर्टिफिकेट लेते हैं कि ₹5000 चुनाव में खर्च हुए. उन्होंने कहा कि लिंगदोह कमेटी एक गाइडलाइन है, वो कोई रूल-रेगुलेशन नहीं. इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन बतौर ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी होने के चलते विचार कर सकता है. लाहोटी ने कहा कि छात्र राजनीति से निकले हुए अभी भी कुछ युवा विधायक मुकेश भाकर, रामनिवास गावड़िया, राजकुमार रौत जैसे नाम हैं, लेकिन ये वो नाम हैं जो छात्रसंघ अध्यक्ष नहीं रहे. ये जरूरी भी नहीं की छात्रसंघ अध्यक्ष रहने के बाद ही मुख्यधारा की राजनीति में मौका मिले, क्योंकि ये दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा हैं.

'फॉर्मल हो गए चुनाव': ग्रेटर नगर निगम में समिति चेयरमैन और पूर्व छात्र अध्यक्ष जितेंद्र श्रीमाली ने कहा कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें लागू होने के बाद छात्र संघ चुनाव केवल एक फॉर्मेलिटी बन कर रह गए हैं. नियमों के तहत किसी छात्र नेता पर एक मुकदमा दर्ज हो गया, तो चुनाव नहीं लड़ पाता. 5000 से ज्यादा चुनाव में खर्च नहीं कर सकता. ये इस तरह के नियम है जो छात्र राजनीति को कमजोर कर रहे हैं. यही वजह है कि जब से लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें लागू हुई हैं, विश्वविद्यालय में चुने हुए अध्यक्ष विधानसभा तक भी नहीं पहुंच पाए. जबकि पहले आयु सीमा और चुनाव एक बार लड़ने की बाध्यता नहीं थी. इससे छात्र जीवन में ही संघर्ष करते हुए राजनीति का अनुभव मिल जाता था. लेकिन अब छात्र नेता संघर्ष नहीं करते, ऐसे में उनमें लीडरशिप का गुण विकसित नहीं हो पाता. यही वजह है कि राजस्थान विश्वविद्यालय का कोई भी छात्रसंघ अध्यक्ष लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के बाद उभर कर नहीं आया.

Last Updated : Aug 24, 2022, 1:10 PM IST
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