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Rajasthan High Court: जेडीए और निगम के अधिकारी हाजिर होकर पेश करें तथ्यात्मक रिपोर्ट

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Published : Nov 19, 2021, 9:00 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने सेठी कॉलोनी स्थित मनोचिकित्सा केंद्र की जमीन पर बसी चेतना कॉलोनी को हटाने के मामले में जेडीए और नगर निगम के अधिकारियों से 15 दिसंबर को तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है. अदालत ने कहा है कि संबंधित अधिकारी कोर्ट में आकर रिपोर्ट पेश करें.

Rajasthan High Court sought report
राजस्थान हाईकोर्ट ने मांगी रिपोर्ट

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने सेठी कॉलोनी स्थित मनोचिकित्सा केंद्र की जमीन पर बसी चेतना कॉलोनी को हटाने के मामले में जेडीए (Jaipur Development Authority) और नगर निगम (Municipal Corporation) के अधिकारियों से 15 दिसंबर को तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है. अदालत ने कहा है कि संबंधित अधिकारी कोर्ट में आकर रिपोर्ट पेश करें.

जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और न्यायाधीश विनोद कुमार भारवानी की खंडपीठ ने यह आदेश द्वारकेश भारद्वाज की अवमानना याचिका पर दिए. इसके साथ ही अदालत ने प्रार्थना पत्र पेश करने वाले 48 परिवारों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने को कहा है.

याचिका में कहा गया कि वर्ष 2016 में अदालत की ओर से आदेश के बावजूद अस्पताल की जमीन पर बसी बस्ती को नहीं हटाया गया है. वहीं सितंबर 2019 में अदालत ने बस्ती हटाने के लिए चार महीने का समय दिया था. दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि सर्वे के बाद कुल 372 परिवारों को पुनर्वास करने के लिए सूची तैयार की गई थी. इनमें से 99 परिवारों का पुनर्वास होना शेष है.

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वहीं बस्ती में रहने वाले 48 परिवारों की ओर से प्रार्थना पत्र पेश कर कहा गया कि सर्वे के दौरान उन्हें शामिल नहीं किया गया था. ऐसे में उनका संरक्षण किया जाना चाहिए. इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विमल चौधरी और अधिवक्ता योगेश टेलर ने कहा कि राज्य सरकार ने इनकी गलत गणना की है. राज्य सरकार की ओर से जितने परिवार बताए जा रहे हैं, वहां इतनी संख्या में लोग रह ही नहीं सकते हैं.

सरकार की ओर से पुनर्वास शुरू करने पर नए-नए नाम सामने आ रहे हैं. जबकि कोर्ट पहले ही तय कर चुका है कि सर्वे में किसी भी नए नाम को शामिल नहीं किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने जेडीए और निगम के अधिकारियों को हाजिर होकर तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश करने के आदेश देते हुए प्रार्थना पत्र पेश करने वाले परिवारों के खिलाफ कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है.

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