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गोद दी गई तीसरी संतान के आधार पर नियुक्ति से वंचित क्यों : HC

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Published : Dec 11, 2020, 8:16 PM IST

राजस्थान हाई कोर्ट ने कृषि पर्यवेक्षक भर्ती-2018 में अभ्यर्थी की तीसरी संतान के गोद देने के बावजूद भी उसे नियुक्ति से वंचित करने पर कृषि आयुक्त और कर्मचारी चयन बोर्ड के सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता ने कृषि पर्यवेक्षक भर्ती-2018 में आवेदन किया था. इनके तीन संतान थी, लेकिन उसने एक संतान को गोद दे दिया है.

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गोद दी गई तीसरी संतान के आधार पर नियुक्ति से वंचित क्यों

जयपुर. राजस्थान हाई कोर्ट ने कृषि पर्यवेक्षक भर्ती-2018 में अभ्यर्थी की तीसरी संतान के गोद देने के बावजूद उसे नियुक्ति से वंचित करने पर कृषि आयुक्त और कर्मचारी चयन बोर्ड के सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. न्यायाधीश एसपी शर्मा ने यह आदेश बिशनसिंह की याचिका पर दिए हैं.

गोद दी गई तीसरी संतान के आधार पर नियुक्ति से वंचित क्यों

याचिका में अधिवक्ता रामप्रताप सैनी ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता ने कृषि पर्यवेक्षक भर्ती-2018 में आवेदन किया था. याचिकाकर्ता के तीन संतान थी, लेकिन उसने एक संतान को गोद दे दिया है. वहीं भर्ती में अधिक अंक आने के बावजूद दस्तावेज सत्यापन के दौरान उसे यह कहते हुए नियुक्ति देने से इनकार कर दिया कि उसके तीन संतान है.

याचिका में कहा गया है कि दत्तक अधिनियम के तहत गोद देने के बाद संतान गोद लेने वाले की मानी जाती है. ऐसे में याचिकाकर्ता को नियुक्ति देने से मना करना गलत है. इस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

शराब कारोबारियों की याचिका खारिज

राजस्थान हाई कोर्ट ने पिछले साल के मुकाबले शराब और बीयर की बिक्री दस फीसदी नहीं बढ़ाने पर शराब कारोबारियों पर जुर्माना लगाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है. न्यायाधीश पंकज भंडारी और न्यायाधीश मनोज कुमार व्यास की खंडपीठ ने यह आदेश सतवीर चौधरी और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए हैं. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि कारोबारी लाइसेंस की शर्ते मानने के लिए बाध्य है. यदि कुछ बंदिशें नहीं लगाई गई तो शराब का अवैध कारोबार बढ़ सकता है. वहीं याचिकाकर्ताओं ने कुछ तथ्य छिपाकर भी याचिकाएं पेश की है.

याचिका में कहा गया था कि आबकारी नीति-2020 में प्रावधान किया गया है कि दुकान संचालक को पिछले साल के मुकाबले दस फीसदी अधिक शराब और बीयर का बेचान करना है. यदि वह विभाग से तय मात्रा में शराब नहीं उठाता है, तो उस पर प्रति लीटर पेनल्टी वसूली जाएगी. याचिका में कहा गया कि शराब का कारोबार व्यापक पाबंदियों के साथ होता है, जिसमें बिक्री का निर्धारित समय, सूखा दिवस और विज्ञापन आदि पर पाबंदी भी होती है. इसके अलावा पेनल्टी का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 47 के भी खिलाफ है. वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि आबकारी नीति के प्रावधान को याचिका के बजाए उचित प्राधिकारी के समक्ष अपील में ही चुनौती दी जा सकती है.

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इसके अलावा याचिकाकर्ता लाइसेंस की शर्तो को मानने के लिए बाध्य हैं. सरकार ओर से कहा गया कि आबकारी नीति के तहत लाइसेंस फीस को दो भागों में बांटा गया है. एक भाग में सामान्य लाइसेंस फीस होती है, जबकि दूसरे भाग में कम शराब उठाने पर स्पेशल फीस वसूलने का प्रावधान है. यह प्रावधान शराब की कालाबाजारी रोकने के लिए किया गया है. इस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया है.

हाई कोर्ट ने आईसीडीएस निदेशक से मांगा जवाब

राजस्थान हाई कोर्ट ने महिला पर्यवेक्षक को पोषाहार सप्लाई में अनियमिता के संबंध में नौ साल बाद चार्जशीट देने पर अतिरिक्त महिला एवं बाल विकास सचिव और आईसीडीएस निदेशक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इसके साथ ही अदालत ने दी गई चार्जशीट में जांच करने पर रोक लगा दी है. न्यायाधीश एसपी शर्मा ने यह आदेश अनिता रसाल की ओर से दायर याचिका पर दिए है.

याचिका में अधिवक्ता आशीष सक्सैना ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता महिला एवं बाल विकास विभाग में पर्यवेक्षक पद पर कार्यरत है. विभाग ने गत 19 अक्टूबर को उसे यह कहते हुए चार्जशीट दी कि उसने वर्ष 2011 के कुछ महिनों में किशोरी बालिकाओं को पोषाहार सप्लाई नहीं किया. याचिका में कहा गया कि जिन महिनों को लेकर चार्जशीट दी गई है, उन महिनों में पोषाहार सप्लाई के लिखित आदेश नहीं थे. लिखित आदेश मिलने के बाद पोषाहार की पुन: सप्लाई शुरू कर दी गई थी.

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इसके अलावा घटना के नौ साल बाद चार्जशीट देना गलत है. लंबा समय बीतने के बाद दी गई चार्जशीट के मामले में संबंधित कार्मिक के पास संबंधित रिकॉर्ड भी नहीं रहता है. ऐसे में वह विभागीय जांच में अपना पक्ष नहीं रख सकता. इस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने चार्जशीट में जांच करने पर रोक लगाते हुए संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

विशेष एसीबी अदालत ने हेड कांसटेबल को सुनाई दो साल की सजा

एसीबी मामलों की विशेष अदालत क्रम-3 ने मारपीट के मामले में चालान पेश करने की एवज में पांच सौ रुपए की रिश्वत लेने वाले झुंझुनूं जिले के गुढ़ागौडजी थाने के तत्कालीन हेड कांसटेबल सूबेसिंह यादव को दो साल की सजा सुनाई है. अभियोजन पक्ष की ओर से अदालत को बताया गया कि गुढ़ागौडजी थाना इलाका निवासी रामनिवास ने गांव के व्यक्ति मांगीलाल के खिलाफ 18 जनवरी 2008 को मारपीट का मामला दर्ज कराया था, जिसकी जांच अभियुक्त हेड कांस्टेबल सूबेसिंह कर रहा था.

सूबेसिंह जांच के नाम पर मौका देखने आया और शिकायतकर्ता से जीप के किराए के नाम पर डेढ सौ रुपए ले गया. वहीं बाद में सूबेसिंह ने अदालत में मारपीट के आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र पेश करने के नाम पर पांच सौ रुपए की रिश्वत मांगी. सूबेसिंह ने शिकायतकर्ता को धमकाया कि यदि वह रिश्वत नहीं देना तो प्रकरण में एफआर पेश कर दी जाएगी. इसकी शिकायत करने पर एसीबी ने 28 जनवरी को अभियुक्त सूबेसिंह को पांच सौ रुपए लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया है.

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